अल्लाह का न्याय

no justise no peace

 अल्लाह का न्याय

-ये लोग वे हैं कि मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर  दिलों उनके और कानों उनके और आँखों  उनकी के और ये लोग वे हैं बेखवर।। और पूरा दिया जावेगा हर जीव को जो कुछ किया है और वे अन्याय न किये जावेंगे।। मं0 3। सि0 14। सू016। आ0 108। 1113

समी0 -जब ख़ुदा ही ने मोहर लगा दी तो वे बिचारे विना अपराध मारे गये क्येांकि उनको पराधीन कर दिया, यह कितना बड़ा अपराध है ? और फिर कहते हैं कि जिसने जितना किया, उतना ही उसको दिया जायगा। न्यूनाधिक नहीं। भला ! उन्होंने स्वतंत्रता से पाप किये ही नहीं,किन्तु खुदा  के कराने से किये, पुनःउनका अपराध ही न हुआ, उनको फल न मिलना चाहिये। इसका फल खुदा  को मिलना उचित है। और जो पूरा दिया जाता है तो क्षमा किस बात की की जातीहै ? और जो क्षमा की जाती है तो न्याय उड़ जाता है। ऐसा गड़बड़ाध्याय ईश्वर का कभी नहीं हो सकता किन्तु निर्बुध्दि छोकरों का होता है |

-और किया हमने दोज़ख को वास्ते काफिरों  के घेरने वाला स्थान।।और हर आदमी को लगा दिया हमने उसको अमलनामा उसका बीच गर्दन उसकी के, और निकालेंगे हम वास्ते उसके दिन क़यामत के एक किताब कि देखेगा उसको खुला हुआ।। और बहुत मारे हमने कुफ्ररनून से पीछे नूह के।। मं0 4। सि0 15। सू0 17। आ0 8। 13। 171

समी0 -यदि काफि़र वे ही हैं कि जो कुरान, पैग़म्बर और करान के कहे खुदा, सातवें आसमान और नमाज आदि को न माने और उन्हीं के लिये दोज़ख होवे तो यह बात केवल पक्षपात की ठहरे, क्योंकि कुरान  ही के मानने वाले सब अच्छे और अन्य के मानने वाले सब बुरे कभी हो सकते हैं? यह बड़ी लड़कपन की बात है कि प्रत्येक की गर्दन में कर्मपुस्तक। हम तो किसी एक की भी गर्दनमें नही देखते। यदि इसका प्रयोजन कर्मों  का फल देना है तो फिर मनुष्यों के दिलों, नेत्रों आदि पर मोहर रखना और पापों का क्षमा करना क्या खेल मचाया है ? क़यामत की रात को किताब निकालेगा खुदा  तो आजकल वह किताब कहा है ? क्या साहूकार की बही समान लिखता रहता है। यहाँ यह विचारना चाहिये कि जो पर्वू जन्म नहींतो जीवों के कर्म  ही नहीं हो सकतेतो फिर कर्म की रेखा  क्या लिखी ? और जो  बिना कर्म के लिखी तो  उन पर अन्याय किया,क्योंकि बिना अच्छ-े बुरे कर्मां के उनको दुःख सुख क्यों दिया ? जो  कहो कि खुद़ा की मरजी, तो भी उसने अन्याय किया, अन्याय उसीको कहते हैं कि बिना बुरे-भले कर्म किये दुःख-सुखरूप फल न्यूनाधिक देने  और उस समय खुदा  ही किताब बांचेगा वा कोई सरिश्तेदार सुनावेगा.जो खुदा  ही ने दीर्घकाल सम्बन्धी जीवों  को विना अपराध मारा तो वह अन्यायकारी हो गया। जो अन्यायकारी होता है वह खुदा नहीं हो सकता  |

-और दिया हमने समूद को ऊंटनी प्रमाण।। और बहका जिसको बहका सके।। जिस दिन बुलावेंगे हम सब लोगों को साथ पेशवाओं उनके के बस जो कोई दिया गया अमलनामा उसका बीच दहिने हाथ उसके के।। मं0 4। सि0 15।सू0 17। आ0 59। 64।711

समी0 -वाह जी! जितनी खुदा की आश्चर्य निशानी हैं उनमें से एक ऊंटनी भी खुदा के होने में प्रमाण अथवा परीक्षा में साधक है। यदि खुदा ने शैतान को बहकाने का हुक्म दिया तो खुदा ही शैतान का सरदार और सब पाप कराने वाला ठहरा, ऐसे को खुदा कहना केवल कम समझ की बात है। जब क़यामत को अथार्त प्रलय ही में न्याय करन-े कराने के लिये पैग़म्बर और उनके उपदेश मानने वालों को खुदा बुलावेगा तो जब तक प्रलय न होगा तब तक सब दौड़ा सुपुर्द रहैं और दौड़ासुपुर्द सब को दुःखदायक है ,जब तक न्याय न किया जाय। इसलिये शीघ्र न्याय करना न्यायाधीश का उत्तम काम है। यह तो पोपांबाई का न्याय ठहरा। जैसे कोई न्यायाधीश कहे कि जब तक पचास वर्ष तक के चोर और साहूकार इकट्ठेन हों,तब तक उनको दंड वा प्रतिष्ठा न करनी चाहिये। वैसा ही यह हुआ कि एकतो पचास वर्ष तक दौड़ासुपुर्द रहा और एक आज ही पकड़ा गया। ऐसा न्याय काम का नहीं हो सकता। न्याय तो वेद और मनुस्मृति का’ देखो, जिसमें क्षण मात्र भी विलम्ब नहीं होता और अपने2 कर्मानुसार दंड वा प्रतिष्ठा सदा पाते रहते हैं। दूसरा पैग़म्बरों को गवाही के तुल्य रखने से ईश्वर की सर्वज्ञता की हानि है। भला! ऐसा पुस्तक ईश्वरकृत और ऐसे पुस्तक का उपदेश करने वाला ईश्वर कभी होसकता है ? कभी नहीं |

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