Atankvad and Nation Building
RV7.104 reiterated as AV8.4
Twins of: इन्द्रसोम इन्द्रवरुण:, इन्द्राग्नि:,मित्रवरुण: make great contributions in Nation Building. Here the role of इन्द्रसोम: has been described.
राष्ट्र निर्माण में इन्द्रसोम:, इन्द्रवरुण:, इन्द्राग्नि:,मित्रवरुण: का बड़ा योगदान होता है. इस स्थान पर इन्द्रसोम: पर वेदों का व्याख्यान पाया जाता है.
ऋषि: – मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ: । देवता:- (रक्षोघ्नं) इन्द्रासोमौ; 8, 16, 19-22 इन्द्र:; 9, 12-13 सोम:; 10-14 अग्नि:; 11 देवा:; 17 ग्रावाण:; 18 मरुत:; 23 (पूर्वार्धस्य) वसिष्ठाशी: (उत्तरार्धस्य) पृथिव्यन्तरिक्षे ।
त्रिष्टुप्, 1-6, 18,21,23 जगती; 7 जगतीत्रिष्टुप् वा; 25 अनुष्टुप्।
(हरिशरण जी सिद्धांतालंकार – मनोहर विद्यालंकार जी , ऋग्वेद के ऋषि: से साभार )
मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ: – तांड्य ब्राह्मण के अनुसार मित्रावरुण प्राण अपान हैं, इन को पूर्णरूप से सबल
बनाने वाला ऋषि मैत्रावरुणि है. यह वश करने वालों में श्रेष्ठ होने से ‘वसिष्ठ’हैं,अथवा उत्तम निवास शील होने से वसिष्ठहैं | ऐसा मानव जितेंद्रिय हो कर इस शरीर मे वास करता है. यही बात दूसरी प्रकार से ऐत्रेय में चक्षु और मन को मित्रावरुणि और इन को वश में रखनेवाले को वसिष्ठ बता कर उपदेश दिया है. प्रभु से प्रार्थना है कि ‘त्वायुजा पृतनायु रभिष्याम्’ तेरा साथी बन कर मैं प्रलोभनों की कामादि शत्रुओं की सेना पर विजय पा लूं. ‘ मा नो अग्ने अवीरते परादा दुर्वाससे’ हम वीर हों अयोग्य जीवनवास करने वाले न हों |
This Sookt of RV 7.104, due to the significance of Nation Building message in it
is found reiterated in Atharv Ved as AV8.4. IndraSomo इन्द्रसोम: is the operative term of this Sookt . In Nation Building SOMA correspond to the Staff Functions –the software of Planning – Voice of Civil Society reflected in Judiciary & Govt . INDRA corresponds to the hardware Line Functions the state organs of law enforcement Administration, Police and Defence services. Thus IndraSomo इन्द्रसोम: calls for their synergic operations of intelligence and law enforcement for Nation Building.
It is also noted that severe exemplary punishments are laid down for offenders. Only severe punishments act as true deterrents. Only then a king could proclaim as in Chandogyopanishad5.11 “ न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपो ननाहिताग्निर्नाविद्वान्न स्वाइरी स्वैरिणी कुत:.” There are no thieves in my kingdom, no greedy hoarders’ misers, no drunkards, nor those who do not perform Agnihotras, or uneducated persons without wisdom, nor sex offender men hence the question of female exploitation does not arise.
मेरे जनपद में न चोर हैं, न कृपण, न शराबी,न अग्निहोत्र न करने वाले हैं, न मूर्ख हैं , न व्यभिचारी (पुरुष) फिर व्यभिचारिणी स्त्री कहां.?
राष्ट्र निर्माणके लिए इन्द्रसोमो का वर्णन – सोम केवल न्यायोचित सर्वहितकारी मार्ग दर्शन कर सकता
है परन्तु उस का पालन कराने के लिए जितेंद्रिय राजा को इन्द्र के रूप में सोम के साथ जुड़ना आवश्यक हो जाता है.
(स्वामी समर्पणानान्द जी के ऋग्वेद मण्डल – मणि –सूत्र पर आधारित )
1.इन्द्रासोमा तपतं रक्ष उब्जतं न्यर्पयतं वृषणा तमोवृध: ।
परा शृणीतमचितो न्योषतं हतं नुदेथां नि शिशीतमत्रिण: ।। RV 7.104.1, AV8.4.1
सात्विक ज्ञान से प्रेरित पराक्रम द्वारा , तामसिक हृदय हीन,मूर्खों को तहस नहस कर दो. दूसरों का सर्वस्व खा जाने वालों को सर्वथा क्षीण कर दो.
Motivated with selfless intellect and strength of your valour, destroy and render ineffective, the heartless, lecherous, selfish, wicked elements from society that prosper by usurping the entire wealth of others.
2.इन्द्रासोमा समघशंसमभ्य1घं तपुर्ययस्तु चरुरग्निवाँ इव ।
ब्रह्मद्विषे क्रव्यादे घोरचक्षसे द्वेषो धत्तमनवायं किमीदिने ।। RV7.104.2, AV8.4.2
पापाभिलाषी जनों को अच्छी तरह से दबा दो.अग्नि पर रक्खी हवि की भांति उन्हें
संताप प्राप्त हो.असत्याचरण करने वाले, कच्चा मांस खाने की भयंकर दृष्टि से दूसरे के धनादि को हड़प कर जाने वालों पर सदैव द्वेष धारण करो.
3.इन्द्रासोमा दुष्कृतो वव्रे अन्तरनारम्भणे तमसि प्र विध्यतम् ।
यथा नात: पुनरेकश्चनोदयत् तद् वामस्तु सहसे मन्युमच्छव: ।। RV 7.104.3, AV8.4.3
दुष्कर्म करने वालों को जिन गुफाओं में वे छिपे हैं वहीं घोर अंधकार में ही बींध डालो.झां से एक भी फिर बाहर न आ पाए. तुम्हारा जगप्रसिद्ध बल क्रोध से युक्त हो कर उन्हे दबाने के लिए हो.
4.इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवो वधं सं पृथिव्या अघशंसाय तर्हणम् ।
उत तक्षतं स्वर्यं पर्वतेभ्यो येन रक्षो वावृधाना निजूर्वथ: ।। RV7.104.4, AV8.4.4
पापाभिलाषी पुरुष के विरुद्ध तुम द्यु से पृथिवी से विनाशकारी अस्त्र का प्रयोग करो.पर्वतों जैसे ऊंचे ऊंचे बादलों से भयङ्कर स्वर वाला शस्त्र उत्पन्न करो, जिस के द्वारा बढ़्ते हुए राक्षस को जला डालो.
5.इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर् युवमश्महन्मभि: ।
तपुर्वधेभिरजरेभिरत्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम् ।। RV7.104.5, AV8.4.5
सात्विक ऊर्जा और बल से इन को आकाश से लुढ़का दो.आग से तपे हुए पत्थरों की सी मार करने वाले कभी जीर्ण न होने वाले संतापकारी आग्नेय अस्त्रं द्वारा सर्वभक्षी पापियों की पसलियों को बींध दो, जिस से वे शब्दहीन हो कर चुप चाप दुनिया से चले जाएं.
6.इन्द्रासोमा परि वां भूतु विश्वत इयं मति: कक्ष्याश्वेव वाजिना ।
यां वां होत्रां परिहिनोमि मेधया इमा ब्रह्माणि नृपतीव जिन्वतम् ।। RV7.104.6, AV8.4.6
इंद्र- कर्मठ व्यक्तित्व और सोम- सात्विक बुद्धि द्वारा प्रेरित ज्ञान, दो बलवान घोड़ों को एक समान रथ में सुशोभित , राज्य के अनुकूल आदेशों को कार्यान्वित करने का साधन देखा जाता है.
7.प्रति स्मरेथां तुजयद्भिरेवैर्हतं द्रुहो रक्षसो भङ्गुरावत: ।
इन्द्रासोमा दुष्कृते मा सुगं भूद् यो न: कदा चिदभिदासति द्रुहा ।। RV7.104.7, AV8.4.7
इंद्र सोम अपने गति साधनों का स्मरण करो. राष्ट्र, समाज द्रोह करने वाले असुर नष्ट करो. समाज राष्ट्र को कष्ट पहुंचाने वाले जन दुष्कर्म कभी भी सुगमता से न कर सकें.
8.यो मा पाकेन मनसा चरन्तमभिचष्टे अनृतेभिर्वचोभि: ।
आप इव काशिना संगृभीता असन्नस्त्वासत इन्द्र वक्ता ।। RV7.104.8,AV8.4.8
शुद्ध मन से चलने वालों पर जो व्यक्ति झूठे वचनों द्वारा आरोप लगाता है, उस के वचन मुट्ठी में से जल की भांति निकल जाएं. झूठ बोलने वाला व्यक्ति सत्ता रहित हो जाए.
9.ये पाकशंसं विहरन्त एवैर्ये वा भद्रं दूषयन्ति स्वधाभि: ।
अहये वा तान् प्रददातु सोम आ वा दधातु निर्ऋतेरुपस्थे ।। RV7.104.9, AV8.4.9
जो दुष्ट हमारे भोजन को मिलावट से निस्सार, अथवा स्वादिष्ट किंतु हानि कारक बना कर अन्न को दूषित करते हैं, ऐसे ठग और शत्रु हीनता को प्राप्त हों उन का सामर्थ्य और व्यवस्था नष्ट कर दी जाए.
10.यो नो रसं दिप्सति पित्वो अग्ने यो अश्वानां यो गवां यस्तनूनाम् ।
रिपु स्तेन स्तेयकृद् दभ्रमेतु नि ष हीयतां तन्वा3 तना च ।। RV7.104.10, AV8.4.10
जो घोड़ों, गौओं की नसल बिगाड़ते हैं, गौ के दुग्ध को निस्सार करते हैं. वे मानवता के शत्रु और निक्रिष्ट, हीन लोग हैं. उन की सामर्थ्य और व्यवस्था का नाश कर देना चाहिए
11.पर: सो अस्तु तन्वा तना च तिस्र: पृथिवीरधो अस्तु विश्वा: ।
प्रति शुष्यन्तु यशो अस्य देवा यो नो दिवा दिप्सति यश्च नक्तम् ।। RV7.104.11, AV8.4.11
ऐसे दोषी जनों को देश से निष्कासित कारावास दण्ड देना चाहिए.
12.सुविज्ञानं चिकितुषे जनाय सच्चासच्च वचसी पस्पृधाते ।
तयोर्यत् सत्यं यतरदृजीयस्तदित् सोमोऽवति हन्त्यासत् ।। RV7.104.12, AV8.4.12
परंतु उन के दोष का निर्णय विज्ञान आधारित विद्वान पुरुषों द्वारा सत्य असत्य के विचार के आधार पर होना चाहिए.
13.न वा उ सोमो वृजिनं हिनोति न क्षत्रियं मिथुया धारयन्तम् ।
हन्ति रक्षो हन्त्यासद् वदन्तमुभाविन्द्रस्य प्रसितौ शयाते ।। RV7.104.13, AV8.4.13 सत्य और ज्ञान विज्ञान पर आधारित निर्णय स्वतंत्र न्याय के रक्षा करने वाले हों. वे किसी शक्ति,- धन इत्यादि के प्रलोभन से प्रभावित न हों.
14.यदि वाहमनृतदेव आस मोघं वा देवाँ अप्यूहे अग्ने ।
किमस्मभ्यं जातवेदो हृणीषे द्रोघवाचस्ते निर्ऋथं सचन्ताम् ।। 7.104.14,AV8.4.14
जो असत्याचरण का प्रचार करते हैं, जो वैदिक परम्पराओं के विरुद्ध प्रचार ,समाज में विद्रोह करते हैं , उन्हे समाज राष्ट्र के शत्रु के समान दण्डित किया जाना चाहिए. वे मृत्यु दण्ड के योग्य हैं
Those who propagate the untruth, or revolt against the traditional/ Vedic wisdom they should be treated as enemies of the society/ nation. They deserve death sentence.
15.अद्या मुरीय यदि यातुधानो अस्मि यदि वायुस्ततप पूरुषस्य ।
अधा स वीरैर्दशभिर्वि यूया यो मा मोघं यातुधानेत्याह ।। RV7.104.15, AV8.4.15
यदि मैंने स्वार्थवश धूर्ताचरण से समाज का अहित और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का दोषी हूं तो मै मृत्युदण्ड पाऊं.
If I have caused harm by sorcery/cheating in my self interest to life / health/property/ environments, I deserve to be dead.
16.यो मायातुं यातुधानेत्याह यो वा रक्षा: शुचिरस्मीत्याह ।
प्रजापीड़क और जोराजा को भी ना
There may those who are cheats and sorcerers themselves, but accuse me of being one. They deserve to be exposed as beings of very low character and should be given proper punishment.
17.प्र या जिगाति खर्गलेव नक्तमप द्रुहा तन्वं1 गूहमाना ।
वव्राँ अनन्ताँ अवसा पदीष्ट ग्रावाणो घ्नन्तु रक्षस उपब्दै: ।। RV7.104.17, AV 8.4.17
जो राक्षस स्वभाव वाला अपने को पवित्राचरण वाला बता कर असहाय सज्जन प्रजाजनों की हिंसा करता है वह निकृष्ट कर्म करता है, और मृत्यु दण्ड के योग्य है.
18.वि तिष्ठध्वं मरुतो विक्ष्विच्छत गृभायत रक्षस: सं पिनष्टन ।
वयो ये भूत्वी पतयन्ति नक्तभिर्ये वा रिपो दधिरे देवे अध्वरे ।। RV7.104.18, AV 8.4.18
It is the function of secret services to look for those culprits who conceal their wrong actions by flying like birds in darkness of night, and in their daily activities resort to violent activities.
19.प्र वर्तय दिवो अश्मानमिन्द्र सोमशितं मघवन् त्सं शिशाधि ।
प्राक्तादपाक्तादधरादुदक्तादभि जहि रक्षस: पर्वतेन ।। RV7.104.19, AV 8.4.19
.(Can we see a suggestion of a Drone like attacks here?
By intelligent innovative methods and adequate financial support, smart sharp weapons like thunder bolts from sky and all sides may rain on them to destroy them
20.एत उ त्ये पतयन्ति श्वयातव इन्द्रं दिप्सन्ति दिप्सवोऽदाभ्यम् ।
शिशीते शक्र: पिशुनेभ्यो वधं नूना सृजदशनिं यातुमद्भ्य: ।।RV 7.104.20, AV8.4 .20
These inhuman persons behave like hungry dogs and want to take on the might of invincible Nationalistic forces. They indeed have to be dealt with like mad dogs.
21.इन्द्रो यातूनामभवत् पराशरो हविर्मथीनामभ्याविवासताम् ।
अभीदु शक्र: परशुर्यथा वनं पात्रेव भिन्दन् त्सत एति रक्षस: ।। RV7.104.21, AV 8.4.21
ऐसी राक्षस वृत्ति वाले प्रजा पीड़क, आक्रामक, यज्ञ विध्वंसक तत्वों को आमूलनष्ट करना चाहिए .
22.उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोकयातुम् ।
सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र ।। RV7.104.22, AV 8.4.22
समाज से उल्लू की तरह रात्रि के अंधकार में छिप कर अथवा कर्कश स्वर से चीख कर भयभीत कर के हिंसा करने की , कुत्तों की तरह आपस में लड़ने झगड़ने, भेड़ियों की तरह दूसरों को काटने क्रूर व्यवहार करने की , चकवे –हन्स की तरह कामुक और समलैंगिक व्यवहार करने की ,गरुड़ की भंति अभिमानी जनों और गिद्ध की भांति लोभ राक्षसी वृत्तियों का उन्मूलन करो.
Destroy the evil spirit of indulging in criminal behaviors like owls by scaring innocent with their shrill noises in darkness and attack, fight and shout at each other like stray dogs, indulge in violence like wolves, exhibit strong sexual behavior like birds particularly homosexual traits of geese, exhibit greed like vultures and egoist proud behavior like golden eagle to eliminate from society.
23.मा नो रक्षो अभि नडयातुमावतामपोच्छतु मिथुना या किमीदिना ।
पृथिवी न: पार्थिवात् पात्वंहसोऽन्तरिक्षं दिव्यात् पात्वस्मान् ।। RV7.104.23, AV8.4.23
No terrorists and violence creators should ever be able to show their presence.
यातना पहुंचाने वाले, राक्षस आदि समा के शत्रु कोई भी हमारे निकट ना आ पावे.
24.इन्द्र जहि पुमांसं यातुधानमुत स्त्रियं मायया शाशदानाम् ।
विग्रीवासो मूरदेवा ऋदन्तु मा ते दृशन् त्सूर्यमुच्चरन्तम् ।। RV7.104.24, AV 8.4.24 प्रजा के शत्रुओं, कुटिल आचरण कर हिंसा करनेवालों को, चाहे वे पुरुष हों अथवा स्त्री मृत्यु दण्ड दो. अभिचार कर्म करने वाले दुष्ट जन ग्रीवा (गर्दन से ) रहित हो कर नाश को प्राप्त हों. वे आकाश में चढ़ते सूर्य को न देख पावें .
Those who commit heinous crimes and then murder, they should be hanged from neck to die. The justice should be meted out so expeditiously that they do not see another sun rise.
25.प्रति चक्ष्व वि चक्ष्वेन्द्रश्च सोम जागृतम् ।
रक्षोभ्यो वधमस्यतमशनिं यातुमद्भ्य: ।। RV7.104.25, AV 8.4.25
सुरक्षा अधिकार्यों को हिंसक समाज के शत्रुओं की गतिविधियों को सदैव ध्यानदे कर विवेचना करनी चाहिए और उन को नष्ट करने के लिए प्रभावशाली उपाय करने चाहिएं.
Intelligence and security agencies should be ever vigilant, and keep a close watch over all terrorist violence enacting elements, analyse their modus operendii and carry out effective operations to destroy them.
Writer – Subhodh Kumar