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Cows Nutrition and Food Security in Vedas

cows food

Cows Nutrition and Food Security 

RV 6.54

ऋषि: -भारद्वाजो बार्हस्पत्य: , देवता पूषा:

 

  1. सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2. समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का अत्योत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

3. पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं.

4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी प्राप्त हो.

Dedicated well managed care of the cows  provides excellent  quality of milk and ensure amiable speech and temperaments.

7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षितघर लौट आएं.

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9

उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए.

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.
10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करते हैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, on the other hand side by side we should also rectify if any mistakes have krept in our programs.  

 

  1. मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालने के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

 

Daily Procedures & Rituals in Goshala

 cow domestication

Daily Procedures & Rituals in Goshala         

वैदिक परम्परा में मानव जीवनोपयोगी उपदेश वेदों के आधार पर गृह्यसूत्रों  में भिन्न भिन्न संस्कार  में पाए जाते हैं. गौ को परिवार में एक सम्माननीय स्थान दिया जाता था. इस लिए गोपालन से सम्बंधित विषय  भी गृह्यसूत्रों और विधान ग्रन्थों  में मिलता है. इसी के आधार पर निम्न संकलन करने का प्रयास है.   

In Vedas knowledge on all topics in general, is often found dispersed at various places. That Vedic knowledge is concisely collated and provided as Sanskars/Procedure in the Sutra literature. In this chapter the procedures connected with cows, available in Shraut Sutras & Grihya Sutras are being furnished below: गोपालन विधि गृह्य , अग्नि पुराण और कृषि पाराशर के अनुसार

1-         Goyajna / Fumigation

2.         Releasing cows for grazing in pastures.

3.         Receiving cows on return, after grazing in Pastures

4.         Putting the Nose Ring on Young Bull शूलगव: PA3.8.1 शांख्यायन श्रौत सूत्र , ऋग्वेद सूक्त 1.114

5.         Releasing the selected Bull for servicing the herd.वृषोत्सर्ग PA3.9.1

6.         After calving Procedure

7.         Tattoo Marking the newborn calf, ( with final object of breed improvements, and avoiding inbreeding)

8.         Daily washing & drying on the string used for tying the calf & legs of cow during milking,( to emphasize the importance of Hygiene to control bacteria count)

9.         Darsh Pourn Maseshthi ( Training- evaluation of an integrated cow and agriculture system)

2.1.0.1        Fumigation Formulation (Daily Twice)

         गन्धैरभ्युक्षणं गवां गन्धैरभ्युक्षणं गवाम्‌।। गो0 गृ0 सू03-6-15

Goshala should be kept clean. Twice both times morning &

evening fumigation should be carried out.

गोशाला को नित्य स्वच्छ रखते हुए, प्रात: और सायं दो बार सुगंधित सामग्री

से गो शाला मे अग्निहोत्र करना चाहिए. 

अग्निपुराण 292(33) में गोशाला के लिए उपयुक्त सामग्री का विधान इस

प्रकार से मिलता है.

2.1.0.2.           बलप्रदा विषाणां स्यादगृहे नाशाय धूपिक:।

          देवदारु, वचा, मांसी, गुग्गुल, हिञ्गु सर्षपा:। अ0 पु0 292 (33)

Fumigate with Dev Daru देवदारु – (Himalyan Cedar) Vacha वच -(Sweet Flag Acorns Calamns) Jata Mansi जटामांसी (Indian Nard). Guggluगुग्गुल  (Indian Bdellium), Hing हींग  (Asafoetida) and Mustard सरसों के बीज ( all to gather in powder form)का चूर्ण अग्नि में आहुति से   पर्यावरण के सब रोगाणुओं को नष्ट करता है. to kill all air born & other organisms to cleanse the environment.

गो यज्ञ विषय ( गौएं कहीं भी हों, घर पर  अथवा  गोचर में )

According to RigVidhaan –ऋग्विधानके अनुसार

(गौयज्ञ / गन्धैरभ्युक्षणं)

2.1.0.4.       यस्तास्तु गोर्गोमयेन गुटिकानां सहस्रश: । हुत्वातां गामवाप्नोति घृतक्तानां हुताशने ॥ ऋग्विधान 2.34

गोमय ( गोबर)की गुटकियां  कंडे बना कर गौ घृत के साथ अग्निहोत्र में सहस्रों आहुति देने से उत्तम गौएं प्राप्त होती हैं.

 

He obtains cows by offering thousands of cow dung balls anointed with ghee in to Agnihotra fire.

2.1.2.0.

समाधि मनस्तेन विन्दते नैव गुह्यति ।

मयोभूर्वात इति तु गवां स्वत्ययने जपेत्‌ ॥ ऋग्विधान 4.104

यही  विषय पर अग्नि पुराण 259.94 में भी मिलता है;

‘मयोभूर्वात इत्येद्‌गवां स्वत्ययनं परम्‌ । शाम्बरीमिन्द्रजालं वा मायामेतेन वारयेत्‌ ॥अग्निपुराण 259.94  जपस्यैष विधि : प्रोक्तो हुते ज्ञेयो विशेषत: अग्निपुराण 259.96ब

इस के अनुसार गौ के मध्य में जिन मन्त्रों के जप का विधान है, जैसे ऋग्वेद10.169 ‘मयोभूर्वात’ RV10.169 का उन से यज्ञ अग्निहोत्र ही करना चाहिए

 RV10.169

4 शबरो कक्षीवतो । गाव: । त्रिष्टुप् ।

Rishi the seer of this sookt represents a person dedicated to constant hard work to create शबरो –strength and wealth- through कक्षीवत Industriousness using innovative technologies with involvement of Cows& Agriculture . This is the literal meaning of the name given to the seer – composer -of this verse in

Rig Veda.

 Title of this verse –Sookt is  “COW”.

2.1.2.1 .मयोभूर्वातो अभि वातूस्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् ।
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ।। RV10.169.1

Verdant bliss causing winds may waft over the cows. Feed for the Cows should provide them body building energy and disease resistance.  Cows should be provided with such good quality of water to drink that would be recommended as best potable water for humans. The soil of earth on which cows tread should be clean and sanitised free of infection and harmful organisms.

2.1.2.2.  या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्टया नामानि वेद ।

या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्य: पर्जन्य महि शर्म यच्छ ।। RV10.169.2

Cows are classified as per their looks and traits. (Modern Veterinary sciences categorize them as ‘phenotypes and genotypes’) Wise men know the usefulness of different categories of various cows and utilise these specific qualities for various applications and usefulness.

Rains fed pastures provide rich and pleasing environments for cows.

2.1.2.3. या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद ।
ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। RV10.169.3

Wise men are aware of the significance of cow’s milk and cow enabled food for physical body health, nutrition and disease resistance.  Wise men are aware of the intellect enhancing qualities of Cow’s milk that enables human mind to explore the entire universe in all its majesty. Our experts (Indras) should work in specialised institutions for development of cows to make available  house hold cows with excellent milk producing and prolonged calving qualities.

2.1.2.4. प्रजापतिर्महयमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदानो ।

शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ।। RV 10.169.4

Cows provide us with the continuity to join in growth of human society by building upon the attainments of our forefathers.

Cows have such great  importance for our welfare and should be firmly established in our homes and institutions for human wellbeing.

2.1.3.0 ‘आ गावो’ इती सूक्तेन गोष्ठगा लोकमातरः । उपतिष्ठेद्‌व्रन्तीश्च य इच्छेत्ता सदाक्षयाः ।। ऋग्विधान 2.112. सदैव गौ सम्पदा की समृद्धि हेतु  ऋग्वेदके सूक्त 6.28 ‘आ गावो अग्नमुत’ का नित्य पाठ

करना चाहिए अथवा यज्ञ अग्निहोत्र करना चाहिए

Whoever wishes always to have everlasting cows the mother of the world should

worship them with Rig Ved Sookt 6.28, while they are at home in Goshala in cow

pen  or Roaming about ( in pastures). As per RigVidhan 2-112

Rig Veda Book 6 Hymn 28 same as Atharv 4.21

गौः देवता, ऋषिः भरद्वाजो बार्हस्प्तत्य

2.1.3.1.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रत्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे|
प्रजावतीः पुरुरूपा इह सयुरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ||

For our health, welfare let the cows of all ages sizes & progeny come and stay in our home.

मेरे गोष्ठ  में  गौएं  आगई हैं  और उन्होंने मेरा कल्याण किया है, इसी प्रकार आगे  भी चर कर वे मेरे इस गोष्ठ में  लौट आया करें. हमें सदैव  आनंदित करती हुइ इस  गोष्ठ में रहें. अनेक बछडे बछियां दे कर और भी नाना प्रकार  से हमारी  समृद्धि  के साधन बनें.

2.1.3.2 इन्द्र यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद ददाति न स्वं मुषायति!

भूयो रयिभिदस्य वर्धयन्नभिन्ने ख्ल्ये नि ददाति देवयुम !! Prosperous cow owners, who simply share their services & knowledge in welfare of all, without withholding any portion selfishly for themselves, gradually grow in wealth & prosperity.

इस गोपालन के  यज्ञ द्वारा  वृषभ  इंद्र के स्वरूप में  अपने लिए कुछ भी ना  छुपाते हुवे (गोपालक यजमान के लिए))  अनेक  कल्याण दायक उत्पाद और शिक्षाप्रद ज्ञान  रूपि धन की बार बार वृद्धि करते हैं. (गोकृषि आधारित) उपलब्धियां कभी  क्षीण नहीं होती.

2.1.3.3 न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति | 

देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित ताभिः सचते गोपतिः सह ||ऋ6.28.3अथर्व4.21.3

Those cows whose owners give to all & share all the bounties of the cows, protect them  so they do not get hurt, get stolen or  suffer at the hands of unfriendly forces, stays with blessings of cows for all his life.

उसे (गोकृषि से उत्पन्न सम्पन्नता को) कोई चुरा नहीं सकता, धूर्तता से (आंख में धूल झोंकने वाला)  भी उस पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता. गौओं  के स्वामी में  इतनी बुद्धि होती है कि किसी प्रलोभन के वश भी वह अपनी सम्पन्नता को छोडना नहीं चाहता.

(यह आधुनिक विकास के नाम पर व्यापारी तथा स्वार्थी वर्ग द्वारा भूमि, गौ इत्यादि का स्वामित्व पाने के लिए धन के प्रलोभन से गोकृषि के स्वामी को अपनी जीवन शैली छुडाने  के प्रसंग में  हैं)
2.1.3 4. न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्क्ऋत्रमुप यन्ति ता अभि |
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः || ऋ6.28.4, अथर्व 4.21.4

These cows are not exposed to dusty battle field like or boisterous festivity like atmosphere, but they stroll fearlessly among peaceful environments. यह (गोकृषि आजीविका की) मानसिकता संस्कार युक्त , प्रशंसनीय और निर्भयता, आत्मविश्वास से युक्त होती है. इन संस्कारों को कुटिल हृदय वाले, संकीर्ण मानसिकता वाले , स्वार्थी बुद्धि विहीन जन प्राप्त नहीं करते. यह तो गौ के समीप विचरण करने की विशेष उपलब्द्धि है.

2.1.3.5. गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः |
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीदधृदा मनसा चिदिन्द्रम ||ऋ6.28.5, अथर्व 4.21.1

Cow’s milk & its products are the first promoters of good motivation of temperament to have the blessings of a blissful life. Cows indeed are thus the very fortune & prosperity of man to become victorious like Indra.

गौएं जैसे प्रथम (अपने बछडे के) ऐश्वर्य के लिए दुग्ध प्रदान करती हैं  वैसे ही गौओं द्वारा (दुग्ध और पङ्चगव्य से)  धरती, वाणी, इंद्रियां स्वशरीर प्रकृति पर्यावरण  और यजमान गोपालक परिवार  पोषित हो कर, वश मे रह्कर ऐसे सुशासित होते हैं जैसे इंद्र ही शासन कर रहा हो.

इस प्रकार हे बुद्धिमान जनों गौ स्वयम्‌ में ही  सम्पूर्ण ऐश्वर्य  का साधन इंद्र है.

2.1.3.6.यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित कृणुथा सुप्रतीकम | 

भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो वय उच्यते सभासु ||ऋ6.28.6, अथर्व4.21.6

Oh Cows, sweeten our life and environments by your bounties, bring us health and strength physical and emotional. Weaken the ugly and unfriendly.

हे गौओ तुम दुर्बल को हृष्ट पुष्ट बना देती हो, तुम भद्दे को सुडौल बनाती हो, तुम वाणी में मधुरता स्थापित करके घर को  कल्याणकारी  और सुखप्रद  बनाती हो,   तुम्हारे वृद्धिकारक दुग्ध और अन्न का महत्व  सभाओं में  कहा जाता है.

2.1.3.7. प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः |
मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः || ऋ6.28.7, अथर्व 4.21.7

May cows feeding in good pasture, enjoying clean life giving drinking water, have great progeny of calves and not face harm by thieves   hostile elements and diseases.

उत्तम संतान (बछडे बछडियों और गोपालकों  वाली) उत्तम घास वाले प्रदेश मे चमकती हुइ, उत्तम पेयस्थलों में शुद्धजल को पीती हुइ, व्यवस्था स्थापित हो. गौ पर अत्याचार, हिंसा करने वाला , चुराने वाला कोइ न हो. यह समाज और राजा का दायित्व है.

(भूमण्डल पर राजा रुद्र  का प्रतिनिधि होता है , इस मंत्र में देश की समृद्धि के लिए गोरक्षा  और उत्तम गौसम्वर्धन के लिए राजा के दायित्व का उपदेश है.)
2.1.3.8. उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्‌ |
उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये ||ऋ6.28.8

May cohabitation with good bulls be the source of vitality of these cows to render their bounties for us.

हर क्षेत्र में इंद्र अपना पौरुष इस परम ऐश्वर्य दायक वृषभ से ही प्राप्त करते हैं . पृथ्वी पर, वाणियों मे राजनीति मे हर क्षेत्र में वृषभ  का महत्व सब के ध्यान में रहना चाहिये.

2.1.4.0  यस्य नष्टं भवेत्किञ्च द्‌द्रव्यं गोर्द्विपदं धनम्‌ । नस्येद्वाध्वनि यो मोहात्संपूषन्‌ स जपेन्निशि ॥  ऋग्विधान 2.121. जिस का गोधन, परिवार जन, सम्पत्ति आदि की हानि  हो गयी  हो  वह  ‘सं पूषन’  से आरम्भ  होने वाले ऋग्वेद सूक्त 6.54 का रात्रि में जप करें

He whose possessions: a cow, a man, money be lost should mutter

the Rig Ved Sookt 6.54 beginning with सं पूषन्‌ at night .

RV 6.54

2.1.4.1 सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Oh Pushan –Lord of Nutrition- lead us to the wisdom with clarity about our nutrition.

हे पूषन देवता, हमारी  पोष्टिकता के लिये विस्तृत ज्ञान का उपदेश दो

2.1.4.2 समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूषन देवता के अनुसार गृहस्थों के लिए घरों मे गौपालन ही पौष्टिकता का सर्वोत्तम साधन है.

It is the divine wisdom that a house cow is the perfect strategy for best of nutrition.

2.1.4.3 पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3 गोपालन मं ग्याभन होने के कुछ समय पश्चात दूध की मात्रा कम हो सूख कर  कर पुन: संतानोत्पत्ति का चक्र क्रम पूषन व्यवस्था में कोइ व्यवधान नहीं हैं. 

The wheel of the chariot of nutrition by cows is never stuck in ground and comes to harm nor is there any trouble or suffering in its movement.( Cows go through a natural cycle of calving milk giving getting pregnant drying off and calving again. But no harm comes to the nutrition cycle and it does not suffer.)

2.1.4.4. यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

जो इस गोपालन यज्ञ में समर्पित भावना से गोसेवा करते हैं  उन की पौष्टिकता में कभी कमी नहीं होती और उन की समृद्धि निश्चित होती है.

Those who dedicate themselves to taking care of their cows appropriately are blessed immensely with great riches.

2.1.4.5. पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

हमें गोपालन का उत्तम ज्ञान विज्ञान और सुविधाएं प्राप्त हों जिस से हमारी पौष्टिकता और बल बना रहे

We pray to have the wisdom and means to protect and nurture our cows and horses appropriately to ensure good nutrition and strengths. ..

2.1.4.6. पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6

यजमान की गोसेवा और स्तुति के फलस्वरूप गो दुग्ध से उत्तम शिक्षित सुंदर वाणी और संस्कार प्राप्त होते हैं .

Dedicated well managed care of the cows provides excellent  quality of milk and ensure civilized amiable speech and temperaments.

2.1.4.7. माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

हमारी गौएं जो गोचर में स्वपोषन के लिए जाती हैं, किसी कुएं इत्यादि में गिर कर आहत न हों और सुरक्षित घर लौट आएं.(गोचर सुव्यवस्थित हों )

Cows as they go to pastures should be able to return safely without suffering any accidents there. (Pastures should be well managed to ensure safety of the foraging cows.)
2.1.4.8. शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

विद्वत्जनों से पौष्टिकता के बारे मे ज्ञानप्राप्त करें  जिस से निर्बलता दूर हो कर समृद्धि प्राप्त हो.

Learn the science of nutrition from experts to protect you from loss of vitality and have good life.

2.1.4.9. पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9 उत्तम शिक्षा द्वारा उपयुक्त आहार के नियमों का सदैव पालन कना चाहिए. (आहार संयम)

By good learning and education, in the observance of good nutritional habits one should never be lax.

2.1.4.10. परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

जहां हम अपने दक्षता पूर्ण कर्म से पौष्टिकता के लिए उत्तम गोपालन और खाद्यान्न का प्रबंध करतेहैं,वहां हमें साथ साथ जो पीछे कुछ त्रुटि  के कारण अनिष्ट हो गया हो तो उसे भी सुधारने का कार्य करें.

On one hand while we exercise all our knowledge and skills in the management and production of excellent nutritive food products, onthe other hand side by side we should also rectify if any mistakes

have crept in our programs.

2.1.5.0        मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपालन के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए ‘माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌’ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम’ &  ‘वचोविदम्‌’  –  Rigvidhaan 2.187   

RV 8.101.15

 माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।। 8.101.15

 

RV8.101.16

वचोविदं वाचमुदीरयन्ती विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम्।

देवीं देवेभ्य: पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेता: ।।ऋ 8.101.16

Tying of bells  गौ के घण्टी बांधना

2-1-2   गृहादिग्नाशाय  एष धूपो गँवा हित:।

          घंटाचैव गँवा कार्या धूपानेन धूपिता।। अग्नि पु. 292 (34)

After wards a bell should be tied around the necks of the cows toward off evil spirits. (It is now confirmed by modern science that proper ultrasonic waves have a significant role in controlling air borne viruses).

2.2–Releasing Cows For Feeding in Pastures.

 Pasture Feeding was a very well organised and managed activity according to our scriptures, Cows should  feed themselves freely in  good pastures.

Modern scientific investigations have endorsed this ancient Indian belief. The products of Pasture grass fed cows according to Vedas and Shastras provide complete nutrition for body and more importantly for the development of proper mental and intellectual qualities. Raw fresh from cow’s udders Milk, its  curd and Butter  were known to prevent all Self Degenerating human body diseases and also acted as remedies for most of  such  human diseases

According to modern science, the  actions of solar radiations are the only known source of the  mysterious “Activator X”  the precursors through which host of vitamin A and D like substances, provide  nutritive actions  for the human beings.

 Modern medicine uses vitamin D additives, as the main ingredient for preventing loss of tissue regulatory functions of human body. Chronic Calcium metabolism disorders, which lead to Osteoporosis and inveterate skin problems like Psoriasis are caused by inadequate solar radiation exposures and not getting Cow’s Milk.. Inadequate natural vitamin D is also linked to cancer of colon, prostate, breast and ovaries due to inability of the human body to regulate cell growth. Vitamin D metabolism also regulates insulin secretion in pancreas and thus has a role in controlling incidence of Diabetes type 2.

But only natural Vitamin D as found in Sun’s rays and cow’s milk is most effective. The efficacy of artificially produced and used as an additive is often a commercial tactics of very little proven efficacy..

Diseases and conditions caused by Vitamin D deficiency

1.   Osteoporoses- due to impaired calcium absorption.

2.   Impaired cell growth-due to disturbed cell growth regulation resulting in cancers.

3.   Rickets -in children  (a bone wasting disease.)

4.   Type2 Diabetes -due to impaired insulin Production.

5.   Schizophrenia

6.   Fibromyalgia

7 Skin troubles like Psoriasis

The above note is based on “The Healing Power of sunlight and vitamin D” based on Dr. Michael Holick researches, Truth Publishing Public Release Document dated May 18th 2004.

Buffaloes Milk contains no natural vitamin D. It is not surprising that Indian Dairy Milk, which is nearly 80% buffalo milk, is totally devoid of natural Vitamin D. No amount of artificial Vitamin D additives in Dairy products, can replace natural vitamin D present in Cow’s milk. It is therefore not surprising that urban population in India, which depends literally on Dairy milk is suffering from all the vitamin D deficiency diseases listed above. The addition of synthetic Vitamin D to Dairy milk has not proved its effectiveness in replacing natural solar radiation activated milk of a cow.

Only Pasture fed cow’s milk and its products contain -Conjugated Linoleic Acid-CLA. Such milk also  has a very high proportion of Omega 3 to Omega 6. This makes only grass fed cowsङ milk act as protection and medicine against all self-degenerating diseases in Human body. These self degenerating diseases are such as Obesity, Cardiac problems, Diabetes, Arteriosclerosis, cancer etc. This explains the importance of pasture feeding. Latest researches carried out in University of Wisconsin and the NIH Bethesda in USA have confirmed this.

( Appendices have been provided giving up-to-date scientific information on these topics)

 

Grihya Sutras describe the following Mantras to be recited when releasing cows for grazing.

2-2-1   इमा मे विश्वतो वीर्यो भव इन्द्रश्च रक्षतम्‌।

          पूषञस्त्वं पर्यावर्तानष्टा आयन्तु नो गृहान्‌।। मं ब्रा 1.8.1  गो भिल गृह0 सूक्त 3-6-1

Oh Cow as you go out to graze in pastures, let  this be the provider of Vigor for you  to motivate the world for its sustenance and nutrition, without  you causing any  damage to the environments while grazing, and come back to your home safely.

2.3     Receiving the cows back after grazing.

 Recite the following:-

2-3-1   प्रत्यागता: चरणभूमितो गृहागता गा:।

          इमा मधुमती र्मह्य, मनष्टा:, पयसा सह।

गाव आज्यस्य मातर इहेमा: सन्तु भूयसीः।। Go Gr Su 3-6-1Mantra Brahman 1-8-2

Here returns from pastures, leaden with milk full of nutrients, fats, satisfied by roaming freely for our good fortune.

2-3-2   आगावों अग्मन्नुत भद्रमक्रन् त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे।प्रजावती: पुरुरुपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वी रुषसो दुहानाः ।। RV 6-28-1

Welcome to cows making pleasant sounds, laden with nourishing milk, bearing and supporting lot of progeny, of various colors, and with good record of high productivities.

2-3-3 परिपूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्‌। पुनर्नो नष्टमाजतु।। RV 6.54.10

Let Pusha the protector not only push you from behind but from  also from all sides, to  hold our cows in protection from any fatalities.

  2.4.1 About Heifers बछियों के बारे में

2.4.1.1  RV 3-55-16 Raise heifers without stress and separately

          आ धेनवो धुन्यन्तामशिश्वीः  सबर्दुधाः शशया अप्रदुग्धाः।  नव्यानव्या युवतयो भवन्तिर्महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ  3-55-16

With potential to meet our expectations of providing their bounties, the indolent looking , unstrained with hard work stress free young  heifers  ie  without any offspring , turn in to daily milk providing  excellent cows, by the blessing of gods.( There also a message here that heifers should be  segregated from milk giving cows and raised under stress free conditions.)

2 .4.2 Putting Nose Ring on Young Bulls. नासाभेद ककिलमानकथनम 

2-4-2-1           चतुर्थे ब्दे तृतीय ब्दे यदा वत्सो दृढो भवेत।

          तदा नासाऽस्य भेत्तत्वा नैव प्राग् दुर्बलस्य च।।पाराशर कृषीशासनम।।16।।

In the 4th year or 3rd year never less than three years depending upon good body condition, the male calve is to be fitted with a nose ring by piercing the nose.

(Breeding Soundness Evaluation formed a very elaborate system in directives given. Visible physical features of body, including shape and size of testicles, the past records of productivity of the lineage were all considered. Inbreeding was avoided by observing elaborate systems of pedigree recognition and tattoo marking the new born calves.

2.4.2..2      नासाभेद ककीलमानकथनम्‌।।

          नासाभेदन कीलस्तु खदिरो बाथ शैशप:।।

          द्वादशाञ्गुलक: कार्य स्तज्ज्ञै स्तैर्नस एव स:।।   पाराशर कृषीशासनम्‌।।17।।

The needle for nose piercing should me made of wood of khair (Accacia) Khair or Shisham (Dalberfia Sissoo Rokb. About 12 anguls (Nine inches) long. Only an experienced person should perform the operation.

 2. 5    Releasing Bull for servicing the Herd. वृषोत्सर्

2.5.0 Avoid inbreeding वृषभ दूसरे कुल मे कार्य करे

2.5.0.1 RV 3.55.17

यदन्यासु वृषभो रोरवीति सो अन्यस्मिन यूथ नि दधातिरेतः।

स हि क्षपवान्त्स भगः स राज महद् देवानामसुरत्वमेकम्  ।। ऋ 3.55.17

The  roaring breeding bull is all powerful and very able, but this bull roars and  deposits its semen in a different herd, this is very important tradition of nature.

यह वृषभ अत्यन्त सामर्थ्यवान है, परन्तु इसे अपना वीर्य दूसरे वंश में जा कर स्थापित करना है। यह देवताओं का एक बड़ा महत्वशाली विधान है।

 

2.5.1    कार्त्तिक्यां पौर्णमास्याञ रेवत्या वा ऽऽश्रवयुजस्य।  पास्कर गृह सूत्र  3-9-3

Bulls should be released on full moon of kartik or revati Nakshatra of Ashwin month.

2-5-2

       मधये गवाञ सुसमिद्धमग्निं कृत्वाऽऽज्य संस्कृत्य  हरितिरिति षट् जुहोति प्रतिमन्त्रम्‌।। पागृसू 3-9-4

 

Perform Agnihotra, among the cows with Yajurved Mantras as given here,. Use Cow Ghee for the Agnihotra. 

    (वोषट् VOUSHUT is an offering in to the sacred  fire while standing, whereas SWAHA is an offering made while sitting. This point is to be noted that among the cows these offerings  made in to the fire may be given while standing.)

वृषोत्सर्ग यज्ञ- आहुतियां

 2.5.2.1   इह  रतिः    स्वाहा    ।। पागृस 3.9.4.1

 

इह   रमध्वं   स्वाहा  ।। पागृसू 3.9.4.2

 

इह   धृतिः     स्वाहा ।। पागृसू 3.9.4.3

 

इह स्वधृतिः    स्वाहा   ।।पागृसू 3.9.4.4

 

उपसृजन् धरुणं  मात्रे धरुणो मातरं धयन् स्वाहा 

 ।। पागृसू 3.9.4.5

 

2.5.5.2        3.9.4.6 रायस्पोषमस्मासुदीधरत्  स्वाहा 

।।पागृसू 3.9.4.6

गोशाला यज्ञ

2.5.3Yaju 3.5 भूर्भुवः स्वः द्यौरिव भूम्ना पृथिवी वरिम्णा

    तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे ।। यजु 3।5

 

2.5.4 Yaju3.6 समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोदयतिथिम् । आस्मिन् हव्या जुहोतन ।। यजु 3।1

 

2.5.5Yaju3.2 सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे ।। यजु3।2

 

2.5.6Yaju3.3 तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्द्धयामसि । बृहच्छोचायविष्ठ्य ।।यजु3।3

 

2.5.7Yaju 3.4 उप त्वाग्ने हविष्मतीचीर्यन्तु हर्यत ।जुषस्य समिधो मम।। यजु3।4

 

2.5.8Yaju3.6 आयं गौः पृश्निक्रमीदसदन् मातर पुरः । पितर च प्रयन्त्स्वः।। यजु3।6

 

2.5.9Yaju3.7 अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती । व्यख्यन् महिषो दिवम् ।। यजु3।7

 

2.5.10Yaju3.9 अग्निर्ज्ज्योतिर्ज्ज्योतिरग्निः  स्वाहा

                     सूर्यो ज्योतिर्ज्ज्योतिः सूर्य्यः स्वाहा ।

                     अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा ।

                     सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वच्चः स्वाहा ।

                     ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्योतिः स्वाहा ।। यजु

3।9

 2.5.11Yaju3.10 सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

                             जुषाणोऽग्निर्वेतु  स्वाहा  ।

                             सजुर्देवेन सवित्रासजूरुषसेन्द्रवत्या  ।

                             जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ।।यजु 3।10

 2.5.12Yaju3.21रेवतीमध्वमस्मिनयोनावस्मिनगोष्ठेऽस्मिंल्लोकेऽस्मिन् क्षये ।  इहैव    स्त    मापगात   ।। यजु3।21

2.5.13Yaju3.22 संहितासि विश्वरूप्यूर्जा माविश गौपत्येन ।  उपत्वाग्ने    दिवेदिवे दोषावस्तर्द्धिया वयम्‌। नमो  भरन्तऽएमसि    ।।यजु3।22

2.5.14Yaju3.23 राजन्तमध्वराणा  ग़ोपांमृतस्य दीदिवम्  । वर्द्धमानं  स्वे   दमे ।। यजु3।23

2.5.15Yaju3.24 नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव ।सचस्वा नः   स्वस्तये    ।।यजु3।24

2.5.16Yaju3.35 तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो  नः   प्रचोदयात्‌।।यजु3।35

2.5.18 RV6.54.5 पूषा गा अन्वेतु नः पूषा रक्षत्वर्वतः।  पूषावाजं सनोतु नः   ।। ऋ 6.54.5

2-5-19     After the  Agnihota Rudra Jap is recited.

  रूद्रान्

 जपित्वैकवर्णंं  द्विवर्णंवा यो वा यूथं छादयति यं वा यूथं छादये द्रोहतिो वैव स्यात्‌। सर्वाण्ग़ैरुपतो जीववत्साया: पयस्विन्य: पुत्रो यूथे च रुप स्वित्तम: स्यात मलङ्कृत्य यूथे मुख्याश्च तस्त्रो वत्सतर्यस्ताश्चालञ्कृत्य-एतं युवानं पतिं वो ददामि तेन क्रीडन्तीश्चरथ प्रिये ||

यजुर्वेद 16 के मंत्रों से  रुद्र जप करे

          मा न: साप्तजनुषा ऽसुभगा रायस्पोषेण समिषा मदेमेत्येतयै वोत्सृजेरन्‌।। पागृसू 3-9-6

Rig Vidhan of lays down Rudra jap as consisting of Rigved 1.43 and 1.114, 2.33  and 7.46 chapters. is recited.

 ऋ1.43RV1.43

 

  1. Shankaayan shraut sootra prescribes recitation of this hymn in Shoolgava Ceremony to ward off ailments and troubles of domestic animals- cows, horses, and also family.

 

  1. Ashwalayan Grih sootra prescribes hymn for attaining powers and achieving one’s desires.

 

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

। रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप् । ऋ1.43RV1.43 रु द्र

The seer of this hymn here is Kanw-Super intelligent – one who listens to everything very attentively. That is the reason that his every action is based on proper analysis and appropriate. Actions under him are known for beauty, charm, grace, grandeur, sublimity.  He

personifies venerable sublime Enlightenment, Intelligence, Resolution and Determination.

रुद्र:, मित्रावरुणौ च, 7-9सोम:। गायत्री, 9 अनुष्टुप्

1.कद्रुद्राय प्रचेतसे मीळहुष्टमाय तव्यसे ।

वोचेम शंतमं हृदे ।। RV1.43.1

Let us invoke in the intellect to promote in our hearts the shower of blessings of  the great Rudra for  our well being For providing healthy disease free life, and to give comfort to our hearts, wise men tell about the appropriate actions to be taken and precautions observed for ensuring disease free healthy life at different times and situations.

हम बड़े बुद्धिमान् (अभीष्टों के लिएअत्यन्त मेघ  बरसाने वाले महाबली रुद्र के लिए हृदय से  अत्यन्त सुख देने वाले किस (वचन) को कहें?

( रुद्र परमात्मा की वह शक्ति है जिस का विकास बिजली की गरज के समान चमत्कारी होता है रुद्र मनुष्यों के लिए वर्षा इत्यादि के द्वारा वायुमंडल से और वनस्पतियों द्वारा रोग को नाश करने वाली औषधियों को देने वाले हैं भयंकर होने पर भी रुद्र  अपने आर्य्य उपासकों के लिए अत्यन्त मृदु हैं ।) संहिता- शिवनाथ आहिताग्नि से

रोग रहित स्वस्थ जीवन के हेतु, बुद्धिमान जन,  रुद्र के रोगाणुओं को नष्ट करने और हमारे स्वास्थ्य के लिए भिन्न भिन्न  परिस्थितियों में भिन्न भिन्न समय पर हमारे आचार व्यवहारका उपदेश करते हैं.

2.यथा नो अदिति: करत् पश्वे नृभ्यो यथा गवे ।

यथा तोकाय रुद्रियम् ।।RV  1.43.2

By which the environments may be (induced) to grant the gifts of Rudra to our animals, our people, our cows and our progeny.Like what a mother of new born desires, like what a keeper of cows desires, like what a king desires for his people, like what a farmer desires while working with soil on the farm the divine wisdom of Rudra (about sanitation and destroying of disease carrying germs pathogens )  may be made available to preserve the health and wellbeing. (of all).

जिस के द्वारा हमारे पशु, गौ, समाज, सन्तान सब  रुद्र सम्बन्धित भेषज से निरोग स्वस्थ हों। माता जिस  प्रकार अपने नवजात शिषु के लिए , सूर्य पृथ्वी और  वनस्पति के लिए उत्तम, राजा अपनी  प्रजा और गौवों के कल्याण के लिए  स्वास्थ्य प्रद  रोग रहित  परिस्थितियां बनाते हैं, उस रुद्र का विशेष ज्ञान उपलब्ध कराना चाहिए. 

3.यथा नो मित्रो वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।

यथा विश्वे सजोषस: ।। 1.43.3

May we learn to get familiar with the मित्रः  probiotics the  health giving nutritive,वरुण „ – the omnipresent microorganisms like viruses, and the रुद्रः disease  destroying agents , for our good health. Where all natural elements are friendly and provide disease free healthy environments, they by Rudra render all our habitat safe and healthy.

जिस से  हम को मित्र वरुण रुद्र सब देवता समान प्रीति वाले हों समस्त प्राकृतिक सम्पदाएं, पर्यावरण, रुद्र कि कृपा से रोग रहित स्वास्थ्य प्रद हमारे मित्र वत हों

4.गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम् ।

तच्छंयो: सुम्नमीमहे ।। 1.43.4

Rudra  bless us  through the gaathpatim  traditional folklore wisdom to avoid disease and maintain healthy environments  for a peaceful society and  jalaash bheshajam to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

HHWilson in his Ved Bhashya comments on jalashbheshajamas follows ” he who has medicament conferring delight; from ja,one born and lasa, happiness; an unusual word except in a compound form, as abhlasha, which is of current use; or it may mean , sprung fromwater( jala), all vegetables depending over water for their growth.and temperaments  pure and  jalaash bheshajam ability to turn waters in to medicines for our total wellbeing.

(This makes clear reference to jalaash   being specially treated   water endowed with enhanced medicinal curative properties .  Modern scientists of Biophysics call such water ‘activated water’. This water is being increasingly prepared in Biodynamic Agriculture of Rudolph Steiner and Compost Tea preparations. Activated water being made by electronic devices is increasingly finding use for drinking purposes. Dairy industry is using Activated Water to enhance milk production of the cows by more than 20%. Ganges water in its pristine purity is the naturally formed jalaash i.e. Activated Water and is well known for its innumerable divine qualities.)

(This is clear reference to jalaash   being a preparation of what modern scientists of Biophysics call activated water)

(हम)स्तुति के पालक यज्ञ के स्वामी सुख रूप औषधि से युक्त रुद्र से उस रोग शान्ति (और) सुख को मांगते हैं । जलाष विषय- महान वैज्ञानिक न्यूटन ने कहा था कि वह अपने वैज्ञानिक अनुसन्धान करते हुए ऐसा अनुभव करता है कि वह प्रकृति के एक विशाल समुद्र के तट पर केवल छोटे छोटे पत्थरों से एक बालक की तरह खेल रहा है वेदों मे ऋषियों के विज्ञानकी जान कारी इतनी विस्मय कारी है कि आधुनिक विज्ञान सचमुच में  अभी छोटे छोटे पत्थरों से ही खेल रहा है। जलाष के सन्दर्भ में यही कहा जा सकता है। पवित्र गंगा जल में रोग नाशक तत्व क्या हैं और गंगा जल किस प्रकार  सामान्य पानी से भिन्न है यह अभी तक विश्व भर के वैज्ञानिक पता नहीं कर सके  हैं। आधुनिक विज्ञान Activated Water के  विस्मयकारी  परिणामों का अभी अध्ययन कर रहा है। अधिकांश वैज्ञानिक इसे pseudo science की संज्ञा देते हैं। परन्तु होम्यो पैथी और ओस्ट्रियन वैज्ञानिक रुडोल्फ़ स्टाइनर के बायोडायनमिक पदार्थों की उपयोगिता अब अमेरिका की सरकारी कृषि नीति में आते हैं।

जलाष शब्द पर विभिन्न वेद भाष्य, निरुक्त इत्यादि  ग्रन्थों  बहुत कम ज्ञान  मिलता है। Monier Williams के अनुसार जलाष से mechanically subdued water अर्थ बनता है। इस प्रकार कृष्टी द्वारा उपचारित जल को जलाष कहा जा सकता है इस प्रकार उपचारित जल को Activated Waterकहा जाता है। यही वैदिक भाषा में जलाष कहलाता है। विशेषगोमूत्ररूपेण जलेन। जलाषमिति उदकनामसु पठितम्‌। जलाष को रुद्र संबन्धी भेषज के लिए अन्यत्र भी श्रुति में कहा गया है—“गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्” ( 1434 कौ0 सू0(31/11) विनियोग के अनुसार बिना मुख वाले फ़ोड़े फुन्सी आदि व्रणों को गोमूत्र से धो कर उस का उपलेप करना चाहिए। गो मूत्र इस प्रकार रोगों की अव्यर्थ महोषधि है यहा तक कि उस का नियमित सेवन कुष्ट आदि के घावों को भी ठीक कर देता है। आयुर्वेद में इस के गुणवर्णन करते हुए लिखा है–शूल गुल्मोदरानाहकण्ड्वक्षि-मुख्रोजित्‌।” तथा  कासं सकुष्ठ-जठरकेइमिपाण्डुरोगान् गोमूत्रमेकमपि पीतमपाकरोति (भाव नि0 मूत्र वर्ग 4)

रुद्र के प्रभाव से हमारा पेय जल ओषधि रूप बने, और समाज में उच्च विचारो के प्रचार  से जीवन सुख शांति मय बने. ( पेय के लिए शुद्ध पवित्र ओषधि गंगा जल उपलब्ध रहे) 

5.य: शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते ।

श्रेष्ठो देवानां वसु: ।। 1.43.5

Establish the ever dazzling golden sun to provide the best naturally available health ensuring gifts. (Recognize the supreme position of ever dazzling golden sun as protector and enabler of entire life and habitat on this planet.

(Modern science has come to the conclusion that Solar energy is the supreme source of disinfection, provider of Vitamin D, and photosynthesis to create carotenoids and numerous nutritive elements for life.

Modern science confirms that solar light is the most sustainable sanitizer. Solar radiations only by photosynthesis are the precursor of Vitamin D, Essential Fatty Acids and Carotenoids the best natural antioxidants that ensure disease free healthy life. It is now realized that  newer diseases such as Cardiac heart problems, diabetes, eye problems cataract, age related macular degeneration are spreading like epidemics in the community due to non availability of good cow milk and organic food )

देदीप्यमान सूर्य के प्रभाव से समस्त  वसु: -निवास,गो दुग्ध इत्यादि उत्तम वीर्य प्रदाता  हो कर श्रेष्ठ साधन प्रदान करें.

(आधुनिक विज्ञान मानता है कि प्रात:कालीन सूर्य नमस्कार सूर्य अर्चना का मानव स्वास्थ्य पर विटामिन डी द्वारा  और सूर्य के प्रभाव से वनस्पति, हरे चारे पर पोषित गो दुग्ध मे ओषधि गुण प्राप्त होते हैं. आधुनिक जीवन शैलि मे सूर्य भगवानसे दूर रह कर, गौओं को गोचर में  हरे चारे से वन्चित रखने से ही समाज में सब मधुमेह, हृदय, नेत्र रोग  इत्यादि महामारि की तरह फैल रहे हैं )

6.शं नो करत्यर्वते सुगं मेषाय मेष्ये ।

नृभ्यो नारिभ्यो गवे ।। 1.43.6

Sun  similarly provides beneficial effects to  all the domestic animals the  sheep, goats,  kings , community and cows with health providing healthy  peace loving temperaments. Natural straight path is the right and easy path to follow for health and welfare of all, in all matters of living connected with families of horses,  meshaaya  small rumens animals , men,  women and cows.

(It is interesting to note here that Veda is classifying horses and goats, sheep etc separately from Humans and Cows in that order, for welfare in management practices. Cows occupy the highest position in this order of priorities, Horses, Goats, Sheep, Men Women and then Cows. Cows were not bracketed with animals but were treated in the category of human beings and placed above humans. It is also noted that Buffalo was not admitted as a domesticated animal. This is a clue to how cow gets elevated to the status of universal mother in Indian tradition.)

उसी प्रकार उत्तम सूर्य ज्योति से सब भेड,बकरियां, राजा, प्रजा, गौएं सुख शांति प्रदाता हों.

7.अस्मे सोम श्रियमधि नि धेहि शतस्य नृणाम् ।

महि श्रवस्तुविनृम्णम् ।। 1.43.7

For the entire community ensure availability of excellent cow milk and cow enabled organic food to provide excellent intellects and peace loving temperaments.

समस्त समाज के लिए उत्तम गोदुग्ध और गो आधारित जैविक कृषि  द्वारा उपलब्ध अन्न से कुशाग्र बुद्धि, और सौम्य पकृति के समाजका निर्माण करो.

 

8.मा न: सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।

आ न इन्दो वाजे भज ।। 1.43.8

Develop the strength to defeat the antisocial, selfish, consumerist, non charitable, greedy, selfish life styles from community.

असमाजिक विचारों,प्रवृत्तियों, अयज्ञशीलता, अदानशीलता, भोगवादिता के उन्मूलन की शक्ति  सामर्थ्य उत्पन्न करो.

9. यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन् धामन्नृतस्य ।

मूर्धा नाभा सोम वेन आभूषन्ती: सोम वेद: ।। 1.43.9

Thus by establishing Vedas in the mind and temperament of the society excellent peaceful world may evolve.

जिस से समस्त प्रजा की मूर्धा चेतना अमृत मयि वेदों के उपदेशों  से आभूषित हो कर अत्युत्तम संसार समाज का निर्माण करें.

Rudra Jap रुद्र जप RV2.33 12 to 15

कुमारश्चित्‌ पितरं वन्दमानं प्रति ननानाम रुद्रोपयन्तम्‌ |   

गृणीषे स्तुतस्त्वंं भेषजा रास्यस्मे ।। 2.33.12

या वो भेषजा मरुत: शुचीनि या श्ंतमावृषणो या मयोभु।

यानि मनुरवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि ।। 2.33.13

परि णो हेतीरुद्रस्य वृज्या: परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।

अव स्थिरामघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ ।। 2.33.14

एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि ।

हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीरा: ।। 2.33.15

RV7.46

ऋषि: मैत्रावरणिर्वासिष्ट देवता रुद्र: : 

इमा रुद्राय स्थिरधन्वने गिरः क्षिप्रेषवे देवाय स्वधाव्ने।

अषाळ्हाय सहमानाय वेधसे तिग्मायुधाय भरता शृणोतु नः।। ७.०४६.०१

स हि क्षयेण क्षम्यस्य जन्मनः साम्राज्येन दिव्यस्य चेतति।

अवन्नवन्तीरुप नो दुरश्चरानमीवो रुद्र जासु नो भव।। ७.०४६.०२

या ते दिद्युदवसृष्टा दिवस्परि क्ष्मया चरति परि सा वृणक्तु नः।

सहस्रं ते स्वपिवात भेषजा मा नस्तोकेषु तनयेषु रीरिषः।। ७.०४६.०३

मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य।

आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।। ७.०४६.०४

Afterwards with recitation of the following mantras the young Bull along with at least four young heifers is marked with decorations and released.

To prevent inbreeding, for the group of cows, which one bull will cover, Vedas and Grihya Sutra, talk at length about pedigree, Phenotypes (the physical features) and Genotypes (the genetic traits with regard to producing good quantity of milk, cool and social temperaments of the cows, hardiness etc  and the  different breeds. Selection of the bull is also  decided by giving due considerations of Size Match. These instructions are given at one place in Grihya Sutras.

 Complete text of Paraskar Grihya Sutram (HariHar Bhashyam) is reproduced below:-

HariHar Bhashyanam हरिहर भाष्य-‘रुद्रान…जेरन्’।

रूद्रान्नामस्त इत्यधयायाम्नातान् जपित्वा जपधर्मेण पठित्वा

अत्र शूलगवातिदेशप्राप्तोऽपि रुद्र जपविधिः प्रथमोत्तमानुवाकजअविकल्पनिवृत्यर्थः जपावसरज्ञापनार्थो वा। तन्न। अपूर्व एवायम्, जप्यत्वेनाप्राप्तत्वात्‌। प्रकृतौ हि रुद्राणां पशूपस्थाने करणत्वेन विहितत्वात्‌। एक एव शुक्लादिवर्णो रूपं यस्य स एक वर्ण: तम्‌। अथवा द्वो वर्णौ यस्य स द्विवर्ण: तं वृणम्‌। एवं वर्ण विशेष नियमम भिधाायाध्‌ुना वृषस्य परिमाण विशेष नियममाह-यो वृषो यूथं कृत्स्नं वर्ग छादयति स्वपरिमाणेनाधा: करोति तं वा यं वृषं यूथं वर्गश्च्छादयेत् अधा: कुर्यात् तं वा यूथादधिकपरिमाणं वा न्यूनपरिमाणं वेत्यर्थ:। रोहितो लोहित एव वा य: स्यात्, एवकारेण लोहितस्य एकवर्णद्विवर्णाभ्यां प्राशस्त्यमुच्यते, पुन: कीदृक्? सवैञ्गैरूपेत: समन्वित: न पुनर्हीनांगोऽधिकांगो वा, तथा जीवा: प्राणवन्तो वत्सा: प्रसूतिर्यस्या: सा जीववत्सा तस्या गौ: पुत्रा:। तथा पयः क्षीरं ¤É½Ö±É विद्यते यस्याः सा पयस्विनी तस्या गोः पुत्रः। तथा यूथे वर्गे विषये रूपमस्यास्तीति रूपस्वी अतिशयेन रूपस्वी रूपस्वित्तम: वृण: स्यात् तमुक्तगुण विशिष्टं वृषमलंकृत्य वस्त्रमाल्यानुलेपहेमपट्टिकाग्रैवेयकघण्टादिभिर्वृषोचितभूषणैर्भूषयित्वा न केवलं वृषमात्रं ताश्च वत्सतरीरप्यलंकृत्य, कीदृशी:? या: यूथे स्ववर्गे मुख्या: गुणै: श्रेष्ठा वत्सतर्य: कति? चतस्र चतु:सञ्ख्योपेतास्ता:, एवं युवानमित्येतयर्चा उत्सृजेरन् त्यजेयुः।। पा गृ सूक्त 3-9-6

नभ्यस्तमभिमन्त्रायते मयोभूरित्य नुवाकरोषेण।। पा गृ स् 3-9-7

This is followed by recitation of RigVed 10-169  Go Sukta of four mantras (which is as follows) while releasing the young bull with the cows

2.5-20  RV 10-169

RV 10-169-1            मयोभूर्वातो अभिवातूस्रा। ऊर्जस्वतीरोषधाीरा रिशन्ताम।

                   पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ।। ऋ 10.169.1

                  

2.5.21

RV 10.169.2 या: सरूपा विरूपा एक रूपा या सामग्निरि ष्टया नामानि वेद।

                     यअङ्गिरसस्तपसेह  चक्रुस्ताभ्यः पर्जन्य महि शर्मयच्छ।।  ऋ 10.169.2 

2.5.22

RV10.69.3     या देवेषु तन्व मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद।

ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।। ऋ 10.169.3     

2.5.23

RV 10.169.4 प्रजापति र्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदान:।

         शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम।।  ऋ 10.169.4

Finally the following mantras are recited while giving offerings into yagyani.

 तत् पश्चाद इन मत्रों से आहुति दें

  2-5-24

shukla yaju 18-45 to 50

समुद्रोऽसि नभस्वानार्द्रदानुः शम्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            मारुतोऽसि मरुतां गणः श्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा ।

            अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छ्म्भूर्मयोभूरसि मा वाहि स्वाहा।। यजु 18-45

 

            यास्ते अग्ने सूर्यो रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभिः।

            ताभिर्नो  अऽद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि स्वाह ।। यजु 18-46

 

            या वो देवाः सूर्ये रुचो गोष्वेषु य रुचः ।

            इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचं नो धत्त बृहस्प्ते ।।यजु 18-47

           

            रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुच$ राजसु नस्कृधि ।

            रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम्  ।।  यजु 18-48

 

            तत्व यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।

            अहेड्मानो वरुणेह बोध्यरुश$ स मा न आयुः प्रमोषीः स्वाहा ।। यजु 18-49

 

           स्वर्ण धर्मः स्वाहा स्वर्णार्कः स्वाहा स्वर्ण शुक्रः स्वाहा

            स्वर्ण ज्योतिः स्वाहा स्वर्ण सूर्य्यस्वाहा ।। यजु 18-50

        

 

 

2.2.6       Procedure on calving  पुष्टि कर्म

पृष्टिकाम: प्रथम जातस्य वत्सस्य प्राङ्गमातु: प्रलेहनाज्जिह्वया ललाट मुल्लिमह्य निगिरेद् गवा ञ श्लेष्मा सीति।।3।।      गोपालन विधान-गोभिल गृह सूक्त3।6।3

First thing a cow does on delivering a calf is to lick the new born with her tongue starting from its face, to clean it and swallows all the coverings. She may be helped in this operation by the persons attending to her.

पुष्टिकाम एव संप्रजातासु निशायांगोष्ठेऽग्निमुपसमाधाय विलयनं जुहुयात् संगृहाणेति ।।4।।

गो0 गृ 0सू0 3।6।4

For the protection and providing strength to the newborn and mother, (if it is night time a fire should be lit. Also homa/Agnihotra should  be performed by  giving special oblation of cowsङ milk mixed with curd while reciting the following mantra.

2-6-1   संग्रहण संगृहाण ये जाता: पशवो मम।

पूषैषां शर्म यच्छतु यथा जीवन्तो अप्ययात। मंब्रा 1।8।4

Significance of the cow licking the newly born is to clean and to help the calf  to gain in strength to stand up. The   fire is made in the vicinity, (Agnihotra Fire performs this function automatically) for protection from stray  predator attackers.

 Fumigated environment provides, to calf and calving cow for better health. It is for modern science to investigate the beneficial effects of making specific oblations of cow milk mixed with curds into fire.

This homa is also part of Darsh Pourn Maseshthi  and is known by the same title Pushti karan by Sannaya Havi- सान्नाय हवि (milk + curd) mixture in दर्शपोर्ण मासेष्टिख्र्. This clearly confirms the link of दर्शपोर्णमासेष्टि in every day life

 

2.7 Tatoo Marking the New Born

 ( for good breeding practice)

Vedas and subsequent Indian traditions show remarkable scientific understanding of genetics. Vedas very clearly say that the same considerations of GOTRA apply to Cows as to Human beings for maintaining good progeny. To avoid inbreeding the inbreeding   coefficient of less than unity is planned, by Heterozygous mating. A six generations gap, in mating is planned to achieve this by the  system of Gotras and Sapinda considerations. By the seventh generation, inbreeding coefficient drops to below unity.

 Modern Veterinary Science confirms that for every one percent increase in the inbreeding coefficient the milk yield among cows registers a drop of up to 10%. Lack of importance given to the Breeding Bulls has been one of the main reasons for declining milk yields and population of good  Indian Cows. The other reasons are lack of adequate feed, clean drinking water , sanitary condition of the cows and love and affection practiced in the care of cows.

          2.7.1 AV6.141.2 लोहितेन स्वधितिना मिथुनं कर्णयोः कृधि।

             अकर्तामश्विना लक्ष्म तदस्तु प्रजया बहु ।। अथर्व वेद 6-141-2

 

2.7-2   पुष्टि काम एव संजाता स्वौदुम्बरेणासिना वत्स मिथुन योर्लक्षणं

करोति पुञसएवाग्रेऽथ स्रिया भुवनमसि साहस्रमिति। गो0 गृ0 सू0 3-6-5

For improvements of the cows by recognizing, their traits for further strengthening breed of the future  progeny, relevant marks are tattooed on the ears of the new born, by an instrument made of copper.

(Asper BhavPrakash Nighantu Udumbar also means copper).

 Then recite “भुवनमसि साहस्रमिति”* as given here.

 

     2.7.3  या फाल्गुन्या उत्तरामावस्या सा रे वत्या संपद्यते तस्याम ङ्कलक्षणनि।।

          शाञ्खायन गृह सूत्र

Falgun month amavasya Revati Nakhatra is recommended as the appropriate season for carrying out identification branding of cattle.

 

 

2.7.4 भुवनसि साहस्रमिन्द्राय त्वा सृमोऽददात् अक्षतमरिष्टमिलान्दनम्

गापोषणमसि गापोषस्येशिषे सहस्रपोषाय त्वा।

सहस्रपोषणमसि साहस्रपोषस्येशिषे सहस्र पोषाय त्वा।। मंब्राह्मण् 1.8.5

 

2.7.5   लोहितेन  स्वधिातिना मिथुनं कर्णयो: कृतम।

          यावतीनां यावतीनां व ऐषमो लक्षणकारिषम्‌।

          भूयसीनां भूयसीनां व उत्तरांमुत्तरां रूह्ममाम् क्रियासम्‌।। मंब्रा 1.8.6

Sanitation in Milking

2.8  Washing the string used for tying the legs of cow  at milking time

 

                         तन्त्री प्रसार्य्यमाणांबद्धवत्साञ्चानुमंन्त्रयेतेयंतन्त्रीगवांमातेती ।

    गो0ग़ृ0 सू0  3।6।7

Washing and /drying of the string used for tying the calves and legs of the cows during milking.

2.8.1   इयं तत्री  गँवा माता सवत्सानां निवेशनी।

          सा न: पयस्वती दुहा उत्तरा मुत्तरां समाम्‌।। मं0 ब्राह्मण 1-8-7

With this mantra the string should be washed and hung to dry every day for milking the cows.

2.8.2  तत्रै तान्यहरहः कृत्यानि भवन्ति ।  गो0गृ0सू03।6।8

2.8.3  निष्कालनप्रवेषने त्न्त्री विहरणमिति । गो0गृ0सू03।6।9

2.8.4  गोयज्ञे पायसश्चुरुः । गो0गृ0सू0 3।6।10

Modern Dairy Industry is very concerned about in house hygiene and cleanliness. But no control is exercised in this matter at the place where the cattle is kept, fed and milked. The result is that the milk collected by the Dairy Industry all over the world and not only in India, is very unhygienic, with extremely high Total Bacteria Counts. Good clean Raw milk never spoils. It  will get sour and settle as curds, like in making of Cheese. The Dairy Industry therefore has to Pasteurize all the Milk, before it can be handled any further. Natural Milk contains the microorganisms which are pathogenic, and keep the raw milk clean. But external bacteria on entering raw milk, introduce mainly disease carrying germs in it. By Pasteurization all the germs and Bacteria in the milk are destroyed. In the process of sanitizing the milk from disease carrying bacteria which get introduced due to unhygienic handling, all the health giving disease preventing enzymes present in the natural milk are also lost. The Pasteurized milk is there fore ‘Dead milk’ without the qualities  of nutrition , disease prevention and promoter of mental intellectual qualities, with which it is associated in our Vedic Indian Traditions.

There is a very strong world wide movement for promotion of Raw and Organic Milk. In fact all Cheese in Western countries is made only from Raw Milk.

  Our Vedic tradition go very deep on this subject of producing clean milk, by following the definite systems laid down as below.

  1. 1.    It ensured cleanliness of environment by fumigation/Homa as above twice a day.
  2. 2.     Elaborate directives on planning of cow shelter, with considerations of Ventilation, Natural Sun light by orientation of the shelters and  Clean Floors etc.
  3. 3.     For the  persons milking the cows and looking after the cows proper behavior to provide affectionate care.
  4. 4.    Requirements about the good clean hands of the milking men to keep the च्bacterial infectionछ to utmost minimum is  laid down.  Here it has laid down the instruction to use only clean string, for the handling of cows and calf by the milk men, by washing it daily.
  5. 5.    There was a scheme to milk the cows three times a day. This had two very specific advantages. One the fresh from Udders Raw milk was available three times a day. Two with three times milking, the Udder stress is reduced. This practice is accepted to increase the milk yield by cows by up to 10%.

These are the daily procedures to be followed in Gopalan as explained above:

1.Keep cows under very clean and peaceful     environments.

2.Allow cows to have daily outing to self feed in well managed pastures.

3.Keep the young calves behind.

4. On return after their  daily outings, receive , collect and manage them properly.

5. More attention is required to be paid to the nutrition and health of the young ones.

6. Arrange for proper selection and raising of Breeding Bulls.

7. Identify all young ones by tattoo marking for preventing inbreeding and breed improvement.

8. For GoYagnas Cow milk cooked rice, Cow Ghee , Milk and Curds should be used.

2.9  Darsh Pourn Maseshti

         दर्शपोर्णमासेष्टि 

From the above elaborate and detailed ritualistic tradition it is seen that Breeding,  was considered and observed as the most important area of animal husbandry and covered all aspects as per modern scientific practice.

Functioning of the elaborate वृषोत्सर्ग procedure described here, also points to the existence of a central community based institutional system which operated as a community resource center. This institution played the role of Monitoring the skills and practices followed for  Promoting, Training  and Educating the community by dissemination of good knowledge and Skills in all aspects related to Pastoral livelihood and life support activities, involving.

            1.Animal husbandry,

2.Agriculture  related areas like

  a. Selection and Preservation of Quality Seed

  b. Seed Banks for next harvests,

  c. Inspection of farm implements like tools, carts,

  d. Community decisions on health , feed strategies for cows

   e .Disposal of non productive not fit for domestic purposes cattle etc.

All these activities formed the subject of a community base yagna called Darshpournmaseshti. 

.Modern concept of Krishi Vigyan Kendras could evolve to play this role.

 The rituals of दर्शपोर्णमासेष्टि  Darsh Pourn Maseshti, are  seen as the Vedic system of modern management like ISO 9000, covering entire Macroeconomic activities of the society.

This calls for a very scholarly study in to the institution of this tradition for the  Indian Cows and Sustainable Organic Agriculture.

2.10    COW practices according to PANINI ( circa 500 B.C).

 

2.9.0 Terms and nomenclature prevalent related to Cows, Milk preparations

2.9.1.0 Practices relating to breeding, Identification of herds, Judging Age of cattle,

 

 

Cows domestication in Vedas

domestication of cows

Cows domestication in Vedas AV12.4

AV Sukta12.4 अथर्व वेद 12-4 सूक्त -वशा गौ ,ऋषि- कश्यप:

4.1.0.1 AV 12.4.1 अथर्व 12-4-1 On Donating a cow

गौ दान  किस को

ददामीत्येव ब्रूयादनु चैनामभुत्सत।

वशां  ब्रह्मभ्यो याचद्भ्यस्तत्प्रजावदपत्यवत्‌ || अथर्व 12.4.1

Cows should be given in keeping of learned persons

(veterinarians) who have noble temperaments.

गौओं को ब्राह्मण वृत्ति के पशु पालन  वैज्ञानिकों के ही दायित्व में देना  चाहिए ।

4.1.0.2 AV 12-4-2 Curse of a sick Cow दुःखी गौ का श्राप

प्रजया स वि क्रीणीते पशुभिश्चोप दस्यति।

य आर्षेयेभ्यो याचभ्दयो देवानां  गां न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-2

Those who do not give cows in the keeping of such

virtuous persons to bring about improvements in the

cows, merely trade and do no service for society.

They  suffer from curse of unhappy cows.

जो लोग कुशल कार्य कर्ताओं की सहायता से गौ संवर्द्धन  का कार्य

नहीं करते, वे केवल व्यापार वृत्ति से कार्य कराते हैं। वे दुखी  गौ के

श्राप के भोगी होते हैं।

4.1.0.3 AV 12-4-3 Underfed Cow’s Curse

दुःखी गौ का श्राप

कूटयास्य सं शीर्य-ते श्लोणया काटमर्दति।

बण्ड्या दह्य-ते गृहाः काणया दीयते स्वम् ।। अथर्व 12-4-3

Society that trades in unhealthy cows gets destroyed

By  curse of unhappy cows.

जो समाज गौ को व्यापार मान  कर चलाते हैं, वे दुखी गौ के श्राप से

नष्ट हो जाते हैं।

4.1.0.4 AV12-4-4 same as above फिर वही

विलोहितो अधिष्ठानाच्छद्विक्लिदुर्नाम विन्दति गोपतिम् ।

तथा वशायाः संविद्यं दुरदभ्ना  ह्युच्यसे ।। अथर्व12-4-4

Miserly person’s looking after the cows neglect their

Feed and health. Cows suffer bleeding and such

ailments which become incurable.

कंजूस गोपालक की गौ,रक्त  स्राव जैसे असाध्य रोगों से ग्रसित हो

कर नष्ट  हो जाती हैं।

4.1.0.5 AV 12-4-5 Foot and mouth disease

मुंह खुरपका

पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम विंदति|

अनामनात्सं शीर्यन्ते या मुखेनोपजिघ्रति ।। अथर्व 12-4-5

By sniffing her feet/ place where cow puts her feet, A

disease ‘Wiklindu’ is contracted that finally destroys

the cow. ( The obvious reference is to the contagious

Foot and mouth disease)

गौ अपने  खुर सूंघने  से मुंह खुर पका रोग से ग्रस्त हो कर नष्ट हो

जाती  है।

4.1.0.6 AV12-4-6 Do not make Cut marks on Cow

ears

गौ की पहचान के लिए कान मत काटो

यो अस्याः कर्णावास्कुनोत्या स देवेषु वृश्चते ।

लक्ष्मं कुर्व इति मन्यते कनीयः कृणुते स्वम् ।। अथर्व 12-4-6

Those persons who make cut marks on cow’s ears for

Identification, are as if cutting short their own wealth.

गौ की पहचान के लिए  के कान नहीं काटने  चाहिएं।

4.1.0.7 AV 12-4-7 Do not cut COW Hair गौ के बाल नही

काटे  जाते

यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति ।

ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च धातुको वृकः ।। अथर्व 12-4-7

Those who cut hair of a cow for any reasons, are

Cursed  to suffer in life.

जो किसी तांन्त्रिक कार्य के लिए गौ के बाल लेते हैं उन को श्राप

लगता है।

4.1.0.8 AV 12-4-8 Protect Cows from attack by birds गौ को कौए इत्यादि पक्षियों से बचाएं

यदस्या गोपतौ सत्या लोम ध्वाङ्क्षो अजीहिडत् ।

ततः कुमारः म्रियन्ते  यक्ष्मो विन्दत्यनामनात् ।। अथर्व 12-4-8

If crows are allowed to attack a cow, the lazy care

taker of  cows will suffer from tuberculosis.

( Lazy persons attract Tuberculosis)

जो चरवाहा गौ को कौए जैसे पक्षियों से नहीं बचाता , उस आलसी

को  क्षय रोग होगा । (आलस्य के कारण क्षय रोग होता है)

4.1.0.9 AV12-4-9 Cow Dung and Urine

गोबर गोमूत्र

यदस्याः पल्पूलनं  शकृद्दासी समस्यति ।

ततोऽपरूपं जायते तस्मादव्येष्यदेनसः ।। अथर्व 12-4-9

Throwing away in to waste the Cow Dung and Cow

Urine disfigures the society.

गोबर गोमूत्र व्यर्थ करने  से समाज के रूप की सुन्दरता नष्ट हो जाती

है ।

VETERINARY SERVICES

पशु चिकित्सा सेवाएं

4.1.0.10 AV 12-4-10 Cow Protection गौ सुरक्षा

जायमानाभि जायते  देवान्त्सब्राह्मणान्वशा ।

तस्माद ब्रह्मभ्यो देयैषा तदाहुः स्वस्य गोपनम् ।। अथर्व 12-4-10

Cow should always be under the care of

Knowledgeable persons having altruistic attitudes.

This  is the best form of COW PROTECTION

गौपालन  में ब्राह्मण वृत्ति के कुशल गोपालकों से ही गौ सुरक्षित

रहती है।

4.1.0.11 AV12-4-11 No Cow protection is cruelty

गौ की असुरक्षा अपराध है

य एनां  वनिमायन्ति तेषां देवकृता वशा।

ब्रह्मज्येयं तदब्रुवन्य एना निप्रयायते ।। अथर्व 12-4-11

Not providing cow in to proper hands for care is

cruelty to cows.

गौ को ब्राह्मण वृत्ति के लोगों के हाथ न देना गौ पर  अत्याचार है।

4.1.0.12 AV 12-4-12 Same again वही विषय

य आर्षेयेभ्यो या चद्भयो देवानां गां न  दित्सति ।

आ स देवेषु वृश्चते ब्राह्मणानां  च मन्यते ।। अथर्व 12-4-12

Not providing the cows with such care, destroys good

traditions of society.

गौवों को ऐसी सुरक्षा न  देने  से सामाजिक परम्पराओं का  नाश

होता है।

4.1.0.13 AV 12-4-13 pre parturition post parturition

care

दूध से हटी गर्भिनी गौ सेवा विषय

यो अस्य स्याद् वशाभोगो अन्यामिच्छेत तर्हि सः ।

हिंस्ते अदत्ता पुरुषं याचितां च न  दित्सति ।। अथर्व 12-4-13

Productive cows can be kept for the immediate

benefits but unproductive cows must be given for

care by selfless persons.

बाखड़ी, गर्भिणी, दूध से सूखी गौ को निस्वार्थ सेवा चाहिए।

4.1.0.14 AV 12-4-14 Same as above वही विषय फिर

यथा शेवधिर्निहितो  ब्राह्मणानां  तथा वशा ।

तामेतदच्छायन्ति  यस्मिन्कस्मिंश्च जायते ।। अथर्व 12-4-14

Like the protection to be provided for hidden

treasures, such cows must be provided with due

protection .

( Modern science calls it Pre parturition & post

parturition- a 90 days regime two months or more

before calving and at least one week after calving

care under best hands)

जैसे किसी कोष की सुरक्षा की जाती है, उसी प्रकार विद्वान  कुशल

हाथों से बाखड़ी, कम/बिना  दूध की गर्भवती गौ की सुरक्षा होती है।

4.1.0.15 AV 12-4-15 denial of this service is cruelty to Cows

यह गौ सेवा उप्लब्ध न होना  गौ पर अत्याचार है

तस्मेतदच्छायन्ति  यद् ब्राह्मणा अभि ।

यथैनानन्यस्मिञ्जिनीयादेवास्या निरोधनम् ।। अथर्व 12-4-15

It is the duty of selfless good persons (veterinarians)

To provide this service. Denial of this service is cruelty towards Cows.

गौ वंश की ऐसी सेवा समाज का दायित्व है। इस सेवा का प्रबंध  न

होना  गौ पर अत्याचार है।

Importance of Veterinary Services गो विज्ञान  का महत्व

4.1.0.16 AV 12-4-16 Increase of Cows and identification

गो वंश विस्तार और उसे चिह्नित  करना

चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा सती ।

वशां च विद्यान्नारद ब्राह्मणास्तह्येर्ष्याः ।। अथर्व 12-4-16

Up to three years of age a heifer moves around with

its mother. Then it Caves and has to be given an

identity and  donated to a deserving good household.

तीन  वर्ष तक की उस्रिया माता के संग रहती है। बछ्ड़ा देने  पर उस

का नामकरण करके किसी उपयुक्त परिवार को दान  की जाती है

4.1.0.17 AV 12-4-17 Nonobservance of such practice

Is not in best interests of society

ऐसे गोदान न करना समाज कल्याण हित में नही होता

य एनामवशामाह देवानां निहितं निधिम् ।

उभौ तस्मै भवाशर्वौ परिक्रम्येषुमस्यतः ।। अथर्व 12-4-17

Those who realize the wealth in cow’s udders and

milk, but do not share these cows with population, are

doing great disservice to welfare of the community.

जो गौ के दुग्ध का महत्व जानते हुए भी ऐसे गोदान नहीं करते वे

समाज के लिए कल्याण कारी नहीं सिद्ध होते

4.1.0.18 AV 12-4-18 Same again वही विषय फिर

यो अस्या ऊधो न  वेदाथो अस्या स्तनानुत ।

उभयेनैवास्मै दुहे दातुं चेदशकद्वशाम् । । अथर्व 12-4-18

Even ignorant persons if they donate cows for

Spreading them, do a great community service.

अविद्वान  लोग भी जो गोदान  से गौ संवर्द्धन  करने  के लिए यथा

समय गौ सेवा के लिए गौ दान  करते हैं, वे समाज सेवा का बड़ा

काम करते हैं

4.1.0.19 AV 12-4-19 Same again वही विषय फिर

दुर दभ्नैनमा शये याचितां च ना  दित्सति।

नास्मै कामाः समृध्यन्ते  यामदत्त्वा चिकीर्षति ।। अथर्व 12-4-19

Motivated by selfish considerations those who do not

Lend their cows at appropriate times for proper care

by experts, make their cows suffer and are in the end

not able to derive the benefits they were trying to

protect in the first place .

बाखड़ी गर्भ वती गौ की विशेष सेवा के लिए जो लोग अपनी  गौओं

को विशेषज्ञों के पास दान रूप से नही भेजते, उन  की गौएं कष्ट में

रहती हैं और जो लाभ अपेक्षित था वह नहीं मिलता।

4.1.0.20 AV 12-4-20  

Provide Vet experts honorable place

गो चिकित्सकों का आदर करो

देवा वशामयाचन्मुखं कृत्वा ब्राह्मणम् ।

तेषां सर्वेषामददद्धेडं न्येति मानुषः ।। अथर्व 12-4-20

Veterarian’s offer  for providing help to community to

take care of Cows should be gratefully accepted .

Ignoring the Vet Services angers the Vet Experts

पशु चिकित्सक गो सेवा के लिए उत्सुक रहते हैं। उन  सेवा ने  लेने

पर वे  क्रुद्ध होते हैं।

4.1.0.21 AV 12-4-21 Veterinarians पशु चिकित्सक

हेडं पशूनां न्येति ब्राह्मणेभ्योऽददद्वशाम् ।

देवानां निहितं भागं मर्त्यश्चेन्निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-21

Veterinarians are to be made available to serve cows.

By not taking  their services properly even the cows

are put to great  discomfort.

गौ सेवा के लिए प्रशिक्षित जन गोसेवा अवसर की प्रतीक्षा में  उत्सुक

रहते हैं। उन  की सेवा न  लेने  से गौ को भी बहुत पीड़ा होती है।

4.1.0.22 AV 12-4-22 Veterinary help

पशु चिकित्सा दायित्व

यदन्ये  शतं याचेयुर्ब्राह्मणा गोपतिं वशाम्‌।

अथैनां  देवा अब्रुवन्नेवं ह विदुषो वशा ।। अथर्व 12-4-22

Hundreds of people seek help from veterinarians, and

All their cows are said to belong to him.

बहुत से लोग अपनी  गौएं पशु चिकित्सक के पास ले जाते हैं। वे सब

गौ उस चिकित्सक की कही जाती हैं।

4.1.0.23 AV12-4-23 Expert Vet Services

कुशल पशु चिकित्सक सेवा

य एवं विदुषेऽदत्त्वाथान्येभ्यो ददद्वशाम् ।

दुर्गा तस्मा अधिष्ठाने पृथिवी सहदेवता ।। अथर्व 12-4-23

Those who do not take help of trained Vets and go to

Seek help from illiterates, cause lot of misery and loss

to society.

जो लोग विद्वान  पशुचिकित्सकों को छोड़ कर अविद्वानों  के पास

जाते हैं, वे समाज में दुःख का कारण होते हैं।

4.1.0.24 AV 12.4.24 Ignoring Vet help

पशु चिकित्सा न लेना

देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे अजायत ।

तामेतां विद्यान्नारदः सह देवै रुदाजत ।। अथर्व 12-4-24

First time pregnant cow needs extra care. House

Holders may think of such cows to be their blessing

and feel that it can take care of itself on its own as a

routine.

पहली बार गर्भ वती को गृह स्वामी अपना  सौभाग्य समझ कर यह

सोच लेता है कि सब अपने  से ठीक होगा। यह ग़लती है

4.1.0.25 AV 12-4-25 Continued वही विषय

अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम्‌।

ब्राह्मणैश्च याचितामथैनां निप्रियायते ।। अथर्व 12-4-25

Ignoring the expert Vet help those who confine such cows to their family out of misplaced affection, unknowingly cause harm to their cows and bring damage to the interests of their family.

विशेषज्ञों की सहायता न  ले कर ये गो स्वामी गौ और अपने  परिवार का और गौ का अहित करता है।

4.1.0.26 AV 12-4-26

अग्नीषोमाभ्यां कामाय मित्राय वरुणाय च ।

तेभ्यो याचन्ति  ब्राह्मणास्तेष्वा वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-26

Knowledge, Skills, Expert help, Implements and Resources all are needed for proper care. Ignoring this is a retrograde step.

विद्वत्ता, ज्ञान , हर प्रकार के संसाधन  उपयुक्त  स्थान  और समय पर उपलब्ध रहने  चाहिएं।

इन  सब पर ध्यान न  देना  समाज में पिछड़ापन  बढ़ाता है।

PASTURE FEEDING गोचर विषय

4.1.0.27 AV 12.4.27 Time to release Cows for Pastures प्रातः काल गोचर

यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयाद्दचः स्वयम् ।

चरेदस्य तावद्गोषु नास्यं श्रुत्वा गृहे वसेत् ।। अथर्व 12-4-27

Morning strains of mantras when heard being recited at Agnihotras indicates the time to release cows to go to pastures for self feeding.

प्रातः कालीन मंत्रो के पाठ की ध्वनि  जब सुनाई देती है, तब जानिए कि गौओं को गोचर में जाने  का समय हो चला

4.1.0.28 AV 12-4-28 Stall feeding is harmful घर में गौ को बंध कर मत रखो

यो अस्या ऋचउपश्रुत्याथ गोष्वचीचरत् ।

आयुश्च तस्य भूतिं च देवा वृश्चन्ति  हीडिताः ।। अथर्व 12-4-28

One who keeps Cows at home to feed even after hearing the morning mantra patha suffers in life.

जो प्रातःकाल मंत्र ध्वनि  सुनने  के पश्चात भी गौ को अपने  घर पर बांध कर खिलाता है, वह जीवन  मे दुख पाता है।

4.1.0.29 AV 12.4.29 Time to stay in Pastures गोचर में रहने  का समय

वशां चरन्ति  बहुधा देवानां निहितो निधिः ।

आविष्कृणुष्व रूपाणि यदा स्थाम जिघांसति ।। अथर्व 12- 4-29

As long as the cows like to feed in pastures they represent community assets. When cows want to retreat from pastures they indicate it by many signs.

गोचर में गौएं समाज की धरोहर के रूप में रहती हैं।जब वे पुन: अपने  गृह स्वामी के स्थान  जाना  चाहती हैं, स्वयम् संकेत करती हैं।

4.1.0.30 AV 12-4-30

आविरात्मानं कृणुते यदास्त्थाम जिघांसति।

अथो ह ब्रह्मभ्यो वशा याञ्च्याय कृणुते मन:।। अथर्व 12-4-30

Cow herself indicates the time for her to go back to her home for help from her master

जब गोचर से गृह स्वामी के पास जाने  का समय होता है गौ स्वयम् ऐसे संकेत देती है।

4.1.0.31 AV 12-4-31Cow’s desires are to be complied , गौ के अनुकूल आचरण हो

मनसा सं कल्पयति तद्देवाँ अपि गच्छति ।

ततो ह ब्रह्माभ्यो  वशामुपप्रयन्ति  याचितुम् ।। अथर्व 12-4-31

When Cows want to leave pastures to return to their homes, their desires should be complied with. ( It is the udder stress when it is full of milk, that prompts cow to return to her master for milking her and feeding her calf)

गौ के घर लौटने  के संकेत पर दूध दुहने  के लिए गौ को गृह स्वामी के यहां ले जाना चाहिए।

4.1.0.32 AV 12-4-32 Cow’s Blessings गौ के आशीर्वाद

स्वधाकारेण पितृभ्यो यज्ञेन  देवताभ्यः ।

दानेन  राजन्यो  वशाया मातुर्हेडं न गच्छति ।। अथर्व 12-4-32

Cows blessings flow by long life  and  presence of  elders in Society, Ajya for havi in yagyas, for the Society by her bounties (organic agriculture).

पितरों को अपने  स्वरूप से, ब्राह्मणों को यज्ञ में आज्य की हवि से,राज्य को अपनी  उपलब्धियों से धन्य  करती हैं।

4.1.0.33 AV 12-4-33 Cows belong to the learned गौ बुद्धिजीवियों की होती है

वशा माता राजन्यस्य तथा संभूतमग्रशः ।

तस्या आहुरनर्पणं यद ब्रह्मभ्यः प्रदीयते ।। अथर्व 12-4-33

Cow on first priority provides for protecting the welfare of society like a

mother does. But Cow really belongs to the Veterinarian intellectuals, who

provide for its  upkeep.

गौ सामाज को सर्व प्रथम माता कि तरह संरक्षण प्रदान  करती है।

परन्तु वास्तव में विद्वान  बुद्धिजीवि ही गौ को सुरक्षा प्रदान  करते

हैं।

4.1.0.34 AV12-4-34 Gross treatment of Cows a Crime गाव से दुर्व्यवहार अपराध है

यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्त्रुचो अग्नये ।

एवा ह ब्रह्मभ्यो वशग्नय आ वृश्चतेऽददत् ।। अथर्व 12-4-34

Like Ajya havi dropping outside the fire is a crime, not providing the cows

with good Veterinary care is also a crime.

जैसे यज्ञाग्नि  से बाहर स्रुवा से आज्य गिराना  अपराध है, उसी प्रकार गौ को पशु चिकित्सक की

सेवा से दूर रखना  भी एक अपराध है।

4.1.0.35 AV 12-4-35 Productive cow fulfils all needs दुधारु गौ सम्पन्नता प्रदान करती है

पुरोडाशवत्सा सुदुधा लोकेऽस्मा उप तिष्ठति

सस्मै सर्वान्कामान्वशा  प्रददुशषे  दुह ।। अथर्व 12-4-35

Productive Cows fulfill all needs of the society

सवत्सा दुधारु गौ सब कामानाएं पूर्ण करती है

4.1.0.36 AV 12-4-36 Denying provision of cows leads to hell गो सेवा न  करना नरक देता है

सर्वान्कामान्ययमराज्ये वशा प्रददुशे दुहे  ।

अथहुर्नारकं लोकं निरुन्धा नस्य याचिताम् ।। अथर्व 12-4-36

Not making provision for good cows, denying cow products to the needy,

turns the society in to a living hell

गो सेवा से यम राज के यहां भी सब इच्छा पूरी होती हैं, परन्तु  गौ की  सेवा न  करने  से नरक

से छुटकारा नहीं मिलता।

4.1.0.37 AV 12-4-37 Cows denied mating are angry cows

गौ को वृषभ आवश्यक है

प्रवीयमाना  चरति क्रुद्धा गोपतये वशा ।

वेहतं मा मन्यमानो  मृत्योः पाशेषु बध्यताम् ।। अथर्व 12-4-37

Denial of breeding to good cows makes them infertile makes cows angry

and curse the keepers to Death.

(Modern practice of artificial insemination is known to  cause infertility. This

is a challenge for modern Dairy Practice.))

गौ को वृषभ का सहवास न  मिलने  पर गौ क्रोधित और बांझ होने

लगती  हैं। (क्रित्रिम गर्भाधान में गौ बांझ होने लगती हैं )

4.1.0.38 AV 12-4-38 Cow Breeding facility

गौ प्रजनन व्यवस्था

यो वेहतं मन्यमानो ऽमा च पचते वशा ।

अप्यस्य पुत्रान्‌ पौत्रांश्च याचयते बृहस्पति ।। 12-4-38

Neglect of breeding a good cow makes the coming  generation of society in

to beggars

जिस समाज में गौ प्रजनन सुव्यवस्थित नहीं होता वहां के लोग भीख मांगते हैं।

Pasture Significance गोचर महत्व

4.1.0.39 AV 12-4-39 Pastures should have free access गोचर महत्व

महदेषाव तपति चरन्ति  गोषु गौरपि ।

अथो ह गोपतये वशाददुषे विषं दुहे ।। अथर्व 12-4-39

Barriers in pastures angers the cows, the milk from such cows is likened to

poison. (महदेषाव – Big barriers)

(This fact is fully supported by latest dairy

science researches. Only milk of green forage fed cows is rich Essential

Fatty acids-Omega3 & Omega 6 and has much lower saturated fat content

and is rich with all Carotenoids. This is confirmed by the researches

shown here.)

Advice to Teachers on education from Vedas

gurukul

RV 3 .12 Advice to Teachers on education

Devtaa: Indragni = Self motivated & Fired with invincible spirit to always successfully achieve his goal.

देवता:-इन्द्राग्नि: = उत्साह और ऊर्जा से  पूर्ण सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्ति

Create fire in their belly to be ultimate Doers.

ऋषि: गाथिनो विश्वामित्र:

प्रभु का गायन करने वाला सब  के साथ बन्धुत्व को अनुभव करता है और ‘ सखायस्त्वा वृणीमहे हम सब परस्पर सखा बन कर ही प्रभुका वरण कर सकते हैं यही भावना सभी से स्नेह करने वाला प्राणीमात्र का मित्र‘विश्वामित्र’ बना देती है.

शिक्षकों को उपदेश = विद्यार्थियों में (इन्द्राग्नि: ) उत्साह पूर्वक सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्तित्व बनाएं

1.इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम | 
अस्य पातं धियेषिता ||ऋ3.12.1

To successfully lead their life, instil among your wards the students the temperaments of Self motivation fired with invincible spirit to always successfully achieve their  goals, and develop   physical and mental strengths with excellence of speech, intelligence & competence.

अस्य सुतं- इन बच्चों की (जीवन में), पातं – रक्षाके लिए, इन्द्राग्नी – जीवन में उत्साह पूर्वक कर्मपरायणता जैसे इंद्र के गुण और शरीर में अपने खान पान जीवन शैली से  ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसी अग्नि की स्थापना करने के लिए , आ गतं- आ कर,गीर्भिर्नो – उत्तम वाणियों द्वारा, धियेषिता – उत्तम  बुद्धि के विकसित करें.

Social Community Responsibility 
2. इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः | 
अया पातमिमं सुतम ||ऋ3.12.2

Develop sense of responsibility & temperaments to evolve knowledge creation and execute projects for community welfare.

इन्द्राग्नी के प्रभाव से चेतना और बुद्धि के विकास से समस्त संसार के पालन का प्रबंध उपलब्ध करवाओ.

Seminars-Workshops
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे | 
ता सोमस्येह तृम्पताम || ऋ3.12.3

Hold seminars of experts to focus on current problems to arrive at consensus solutions and adopt them

कविच्छदा- विद्वानों के सत्संग से  , यज्ञस्य- धर्मसम्बंधी व्यवहार से , तृम्पताम- सब के सुख के लिए, इन्द्रमग्निं- समस्याओं को भस्म करने की योजना के  निर्णयों को, वृणे- स्वीकार करें.

Develop Problem Solving Talents

तोशा वृत्रहणा हुवे सजित्वानापराजिता | 

इन्द्राग्नी वाजसातमा ||ऋ3.12.4

Develop talents to develop fail safe solutions to problems, and ability to balance the allocation of resources for (R&D) knowledge development and execution of the projects.

वृत्र हणा- समस्याओं के दूर करने के लिए , तोशा – नाश कारक बाधाओं का , सजित्वानापराजिता –  विज्ञान शील पराजित न होने वाले प्रगति शील समाधानों द्वारा , वाजसातमा हुवे – समस्त ज्ञान विज्ञान के साधनों  और ऊर्जा की शक्तियों को प्राथमिकता के अनुसार महत्व दें.

Recognize the talented   
5.प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः | 
इन्द्राग्नी इष आ वृणे || ऋ3.12.5

Give recognition to research projects that propose strategies for growth and welfare of socity by participatory democratic processes.

वामर्चन्त्य – इन निर्णयों योजनाओं को कार्यान्वित करने वाले  दोनों -विद्वत्‌जन और प्रशासनीय कार्य कर्ता,  नीथाविदो- नम्रनिवेदन से , उक्थिनः उल्लेख के योग्य हैं.

Effectiveness of strategy  

6. इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम | 
साकमेकेन कर्मणा ||ऋ3.12.6

A single strategy implementation should be able to relegate the situations that bring harm to (90%) most of the community

एक ही सफल योजना के कार्यान्वित करने से अधिकांश (90%) समाज के कष्टों का निवारण सम्भव होता है.

Well conceived strategies 
7. इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः | 
ऋतस्य पथ्या अनु || ऋ3.12.7

To follow well meditated, fair and just strategies in all situations in short term and long term.

अपसस्पर्युप- कर्म मार्ग में सब ओर और समीप से, ‘ प्र यन्ति धीतय:’ बुद्धिमत्ता पूर्वक   ‘ऋतस्य पथ्या अनु’ सत्य मार्ग का अनुसरण करें

Staff & Line Function

8. इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च | 
युवोरप्तूर्य्यं हितम्‌ || ऋ3.12.8

To cultivate both the staff functions and line functions- the planners and executors should perform in tandem to implement all projects efficiently.

योजना आयोग और  कृयान्वन पक्ष  राजाऔर शासन  एक दूसरे के पूरक  बन के समस्त योजनाओं को शीघ्रता से सफल बनाते हैं .

Staff & Line Function

9.इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः | 
तद्वां चेति प्र वीर्य्यम्‌ ||ऋ3.12.9

राजा और शासन दोनों के पराक्रम और कर्मण्यता से सूर्य की ज्योति से प्रकाशित दिन के समान उज्वल समृद्ध समाज/राष्ट्र का निर्माण सम्भव है |

By the joint dedicated efforts of planning and executive immense welfare and prosperity of the community is possible.

Vedas on Nutrition Science

veda and nutrition

Vedas on Nutrition Science (part 1)

Rig Ved, 2-40 add RV1-187,RV5.48

AV 3.24, AV 2-26

अन्न विषयः RV1/187

भोजन से पूर्व प्रार्थना

अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः ।

मम दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ।।

यजु 11-83

Oh  Mighty provider of our food- our Chef provide us with food that is free from any harmful organisms and that provides great strength.

Oh provider of food, I and my cattle both should be satiated with your food and good measure of energy.

   About FOOD

ऋषिः अगस्त्यो मैत्रावरुणि-।-देवता -अन्नम्

Annam RV Rig Veda Book 1 Hymn 187

पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम | 
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1

(यस्य) जिस का(त्रित:) मन वचन कर्म से (वि,ओजसा)विविध प्रकार के पराक्रम तथा उपाय से (विपर्वम)अङ्ग उपाङ्गों से पूर्ण जैसे काट, छांट, बीन, छील, पीस कर(वृत्रम) स्वीकार करने योग्य धन, यहां पर धन से अन्न के सन्दर्भ मे तात्पर्य लें,खाने के योग्य (अर्दयत) प्राप्त करे, (नु) शीघ्र अन्न के संदर्भ मे ताज़ा,जैसे  दुग्ध के संदर्भ मे धारोष्ण बासी पुराना रखा हुवा नही     (पितुम) ओषधि रूप अन्न(मह:) बहुत (धर्माणम) गुणकारी स्वभाव वाले अन्न होते हैं  (तविषीम)  जिन के गुणों की  (स्तोषम) प्रशंसा करते हैं.( Freshly harvested- not artificially treated for extended shelf life)
स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वाववृमहे | 

अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2

(स्वादो) स्वादु(पितो)पान करने योग्य जलादि पदार्थ (मधो) मधु के समान (High Brix number)( त्वा) ऐसे पेय पदार्थों को  (वयम) हम सब  (ववृमहे) ग्रहण करें(अस्माकम) इस अन्नपान के दान से (अविता) हमारे शरीर, मस्तिष्क की सुरक्षा,वृद्धि  (भव) सम्भव हो.
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः | 
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः || ऋ1/187/3

(पितो)अन्न व्यापक कराने वाला परमात्मन(मयोभू: )सुख की भावना कराने वाले (अद्विषेण्य) किसी से द्वेष न करने वाले, सब को एक जैसा अन्न उपलब्ध करवाने वालेवाले,हमारे लिए (सुशेव:)सुंदर और सुख युक्त (अद्वया:) जिस मे द्वंद्व भाव न रखने वाला (सखा) वह मित्र आप, हे परमात्मन (शिवाभि:) सुखकारिणी वह अन्न (ऊतिभि:)रक्षा , तृप्ति, वृद्धि, तेज (न:) हम लोगो के लिए (शिव:) सुखकारी (उप,आ, चर) समीप अच्छे प्रकार से प्राप्त कराइये,( Zero Food Miles)
तव त्ये  पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः | 
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4

(पितो)अन्नव्यापिन परमात्मा (तव ) उस अन्न के बीच जो (रसा: ) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छह (मीठा,खट्टा,लवण,कटु चरपरा,तिक्त कडुवा और कषाय कसैला) (दिवि) अंतरिक्षा  मे (वाताइव) पवनों के समान (श्रिता) आश्रय को प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे

(रजांसि)लोकलोकांतरों को  ( अनु, विष्ठिता: ) पीछे प्रविष्ट होते हैं.( Diet should consist of all natural tastes and colors of eatables)
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो | 
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5

(पितो) अन्नव्यापौ पालक परमात्मन (ददत)देतेहुवे (तव) आप के जो अन्न वा(त्ये) वे पूर्वोक्त रस हैं (स्वादिष्ट)अतीव स्वादुयुक्त(पितो)पालक अन्नव्यापक परमात्मन (तव)आप के  उस अन्न के सहित  (ते) वे रस (रसानाम)मधुरादि रसों के बीच (स्वाद्मान:)अतीव स्वादु(तुविग्रौवाइव)जिन का प्रबल गला (develops good vocal faculties) उन जीवो के समान (प्रेरते)प्रेरणा देते अर्थात जीवों को प्रीति उत्पन्न कराते हैं.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम् | 
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत् ||ऋ1/187/6

(पितो) अन्नव्यापी पालनहार परमेश्वर (तव) जिस आप की  (अवसा) कृपा  से सूर्य (अहिम)मेघ को (अबधीत) हन्ता है (केतुना)विज्ञान से जो (चारु)श्रेष्ठ तर (अकारि)किया जाता है वह (महानाम)महात्मा पूज्य (मन)मन(त्वे)आप में (हितम) धरा है,प्रसन्न है ( Suggesting possible artificial rains)

यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् | 
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7

(पितो) हमारा पोषण करने वाला  (यत) जब यह (अद:)  अन्न(अजगन) प्राप्त होता है (विवस्व) गुणवान(मघोपितो) स्वादिष्ट अन्न (अत्र,चित)(पर्वतानाम) पर्वतों से उर्वरकता युक्त (न: भक्षायअरमगम्या)  हमारे खाने के लिए उप्लब्ध हो

यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे | 
वातपे पीव  इद्भव || ऋ1/187/8

(वातापे) भौतिक शरीर (अपाम ओषधीनाम्)  तरल जल ओषधी पदार्थ इत्यादि (यतआरिशामहे पीब:) जो हम खाते हैं पी कर (इत भव) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट  करें.

यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे | 
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9

(सोम) बुद्धि पूर्वक (गवाशिर: यवाशिर: भजामहे) गौ दुग्ध यव वनस्पति इत्यादि का भोजन जब हम गृहण करते हैं(ते) से (यत वातापे पीब: इत भव) जो हम पी कर गृहण करते हैं (खाना भी पी कर गृहण होता है)हमारे शरीर को स्वस्थ ह्रष्ट पुष्ट करे.

करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः | 
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10

(ओषधे)(करम्भ: ) (उदारथि: )( वृक्क: )(पीब: ) (भव)

( वातापे) (पीब: ) (इत) (भव) जठराग्नि को प्रदीप्त करने और पवन आदि से मुक्ति प्राप्त हो.

तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम | 
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11

(पितो) (तम) (त्वा) (वचोभि: ) (गाव: )(न) (वयम) (हव्या) (सषूदिम)(देवेभ्य: )( सधमादम) (त्वा) (अस्मभ्यम)(सदमाधम) (त्वा) जैसे गौ इत्यादि तृण घास खा कर रस दूध देती हैं उसी प्रकार अन्नदि से श्रेष्ठ भाग ग्रहण करा के आनन्द से सब रहें.

RV2.40

Rishi: Gritasamad, Devta  SomaPushano

 2-40

ऋषिः गृत्समद् भार्गवः शौनकः  देवताः सोमापूषणौः

( Note: The Rishi of this Sukta-Chapter- is Gritsamad- The Intelligent one who wants to bring cheerfulness around. The Devta- Topic- is SomaPushna-  intelligent Nutritional Strategies i.e. the science of Nutrition )

सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।

जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिः ।।  2-40-1

Nutritionists are the generators of ‘wealth’  through Nutritive food. From good food comes  intellect that  generate riches and activities on  the earth and outer space. From its very inception they are the guardians of sustainability of this earth.

अथ सौम्यम् ।अन्नं वै सोमोऽन्नेनैव तत्प्रजापतिः पुनरात्मानमाप्याययतान्नमेनमुपसमावर्ततान्नमनुक्रमात्मनोऽकुरुतान्नेनोऽ एवैष एतदाप्यायतेऽन्नमेनमुपसमावर्तते ऽन्नमनुकमात्मनः कुरुते। शतपथ 3918

तद्यत्सारस्वतमनु भवति  वाग्वै सरस्वत्यन्नं सोमस्तस्माद्यो वाचा पसाम्यन्नादोहैव भवति। शतपथ 3919

 2.  इमाव देवौ जायमानौ जुषन्ते मौ तमांसि गूहतामजुष्टा 

आभ्यामिन्द्रः पक्वामामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुस्रियासु ।।  2-40-2

In their very beginning the gloom of lack of nutrition is dispelled by emergence of milk in young immature females. (Mothers, Cows, and rains from clouds)

3. सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम् 

विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वमथो वृषणा पञ्चरश्मिम् ।।  2-40-3

( Human body is likened to  a chariot with five controlling reins- the five PrAAnas पञ्च प्राण- अपान,व्यान,उदान, समान और मन) Nutrition makes a strong performing  creative  person  ( likened to a वृषभ  a performing bull), who manages the available  resources  to enable movements on this earth and beyond ( Outer Space) ( There is reference to a possible space vehicle equipped with seven wheels or perhaps booster rockets?

4. दिव्यन्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे 

तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे ।।    2-40-4

The resulting activities from good nutrition give rise to desirable and much sought after health, wealth , fame  and progeny on this earth and  for control over outer space.

5. विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति 

सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतनः जयेम ।।   2-40-5

While on one hand it has a role in creating the existing situations in life, on the other hand it is guided  by its wisdom to take measures for  correcting any unbalances, to defeat destructive forces.

6. धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयि सोमो रयिपतिर्दधातु 

अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद् वदेम विदथे सुवीरः ।।

RV 2-40-6

May the supreme nutrition provider पूषा and †ÖפüŸµÖ- Sun, feed our intellects ( Can we see a link with Omega 3 and solar radiation for brain development ?), and  give us  wisdom to have  health wealth, wisdom, progeny and shun unsustainable activities to bring welfare to the entire society.

Vedas on Nutrition  ( Part 2)

1.   तयो रिद् घृतवतत्पयो विप्राः रिहन्ति धीतिभिः।

गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे ।।   1-22-14

घृतवतत्पयो घृत  तत् पयः  Fats and milk bearing those fats गन्धर्वस्य –gandharwas are the mythical characters existing in the space between earthly humans ( untouched by civil reflective  behaviors, emotions, feelings) and heavenly Dewataas. Gandharwas are said to sustain the society by providing life sustaining strategies. गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे  – In the footsteps of civilized high position persons- the intelligent persons partake of fats and fat bearing milk very cautiously.

AV3.24

ऋषि: भृगु , देवता: वनस्पति: प्रजापति:

 वनस्पति: Agriculture produce

1. पयस्वतीरोषधय: पयस्वन्मामकं वच:। अथो पयस्वतीनामा भरेsहं  सहस्रश: ॥ अथर्व 3.24.1

Speak about growing such produce that has nutritional and medicinal qualities, and fill its thousands of bags in warehouses.

उस (अन्न) की (उत्पादन की) बात करो जो पौष्टिक और ओषधि है. सहस्रों बोरों मे उस का भंडारण करो

2. वेदाहं पयस्वन्वतं चकार धान्यं बहु । सम्भृत्वा नाम यो देवस्त्वं वयं हवामहेयोयो अयज्वानो गृहे ॥ अथर्व 3.24.2

Spread knowledge about growing such food in abundant quantities.  Ensure that everybody has equal access to such food like Nature’s bounties. If some persons engage in storage of food (to cause shortages and deprive public access) food stuff from their warehouses should be ordered for public distribution.

उस ज्ञान का विस्तार करो जिस के द्वारा इस प्रकार का उत्तम अन्न बहुलता से उत्पन्न किया जा सके . जिस प्रकार सब को समान रूप से प्रकृति की सब वस्तुएं सम्भरण देवता द्वारा उपलब्ध रहती हैं उसी प्रकार यह अन्न भी सब को समान रूप से उपलब्ध रहना चाहिए. जिन स्वार्थी (अयज्वन जनों – यज्ञ न करने वाले) के घरों में इस अन्न का  भंडार हो उसे सब साधारण जनों को उपलब्ध करो.  

3. इमा या: पञ्च  प्रदिशो मानवी: पञ्च कृष्टय: । वृष्टे शापं नदीरिवेह स्फातिं समावहान्‌ ॥ अथर्व 3.24.3

All sections of society at all times and in all situations should have access to food in the same manner as rivers make available waters after rains.

(पञ्च प्रदेश पञ्च मानव) सब  समाज –ब्राह्मण ,क्षत्री ,वैश्य,शूद्र, निषाद, सब परिस्थितियों दिशाओं पूर्व,पश्चिम, दक्षिण, उत्तर और मध्य स्थान अंतरिक्ष ( पृथ्वी से ऊपर यान इत्यादि)  में इस अन्न की समृद्धि को ऐसे प्राप्त करें जैसे वर्षा के पश्चात नदियां  समान रूप से ज;ल सब को प्रदान करती हैं.

4. उदुत्सं शतधारं सहस्रधारमक्षितम्‌ । एवास्माकेदं धान्यं सहस्रधारमक्षितम्‌ ॥ अथर्व 3.24.4

Like hundreds and thousands of perennial streams this flow of food supply should be perennial and none exhausting.

बारहमासी अविरल बहने वाले सहस्रों झरनों की तरह  यह अन्न के स्रोत भी अविरल और कभी क्षीण न होने वाले हों

5. शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर । कृतस्य कार्यस्य  चेह स्फातिं समावह ॥ अथर्व 3.24.5

Hundreds of Farm hands feed thousands of mouths. Only this kind of public welfare strategy brings progress and prosperity in the society. (Earn by hundred hands and distribute in charity by thousand hands. Only such temperaments sustain a healthy society)

सौ हाथों वाले कृषक जन सहस्र जनों के लिए यह उपलब्ध करें .इस प्रकार की मगल वर्षा से समाज की वृद्धि और उन्नति हो. ( सौ हाथों से कमा और हज़ार हाथों से दान कर ,इसी वृत्ति से समाज का कल्याण होता है )

 

6. तिस्रो मात्रा गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्या: । तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि ॥ अथर्व 3.24.6

Divide the revenues from Food production into seven parts. Three parts should be devoted to education, research and public services, four parts should be the share of housewives that run the households, if any surplus is conceived  the eighth part shall go to enrich the nation to build its strengthen.

इस उत्पादन के तीन भाग शिक्षा कार्य कौशल और अनुसंधान के लिए प्रयोग में लाए जाएं, चार भाग गृह पत्नियों को परिवार के पालन हेतु उपलब्ध होना चाहिए. यदि कुछ अधिक उपलब्धि हो तो आठवां भाग राष्ट्र को उन्नत बनाने में प्रयोग किया जाए.

7. उपोहश्च समूहश्च क्षत्तारौ ते प्रजापते । ताविहा वहतां स्फातिं बहुं भूमानमक्षितं ॥अथर्व3.24.7

Farmers that produce the food and administrator that control utilization of the farmers’ bounties are like the two wheel of the carriage that takes a nation forward.  Their coordinated efforts can ensure that food supplies are always available in right quantities. 

खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले और उस से  प्राप्त धन का सदुपयोग करने वाले दो समूह इस समाज को सुचारु रूप से चलाने वाले दो सारथी हैं.

वे दोनों समृद्धि को लाएं, हमारा अन्न विपुल हो, सदैव वर्द्धनशील हो और कभी समाप्त न हो.          

Gambling & Vedas

dice and mahabharat

Gambling & Vedas

 RV 10.34

ऋ 10.34

प्रावेषा मा बृहतो मादयंति प्रवातेजा इरिणे वर्वृताना: !

सोमस्येव मौजवतस्य भक्षो विभीदको जागृविर्मह्यमच्छान् !! ऋ10/34/1

Rolling of dice on the board attract me like rolling of water down the desert . I get drunk like imbibing sweet wine at the sight of these rolling dice. These dice though made of विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds, are indeed alive and indeed speak to me and lead me astray.

 

न मा मिमेथ न जिहीळ एषा शिवा सखिभ्य उत मह्यमासीत्‌ |
अक्षस्याहमेकपरस्य हेतोरनुव्रतामप जायामरोधम्‌ || ऋ10.34.2

Here is my wife who never treats me with disrespect, nor shows her being ashamed of my ugly behavior, has been a well wisher  and a great help to me and my family/friends. I have   even abandoned such a loving wife, for love these Dice.
द्वेष्टि श्वश्रूरप जाया रुणद्धि न नाथितो विन्दते मर्डितारम |
अश्वस्येव जरतो वस्न्यस्य नाहं विन्दामि कितवस्य भोगम || ऋ10.34.3

Even his wife deserts a gambler. Even his mother in law  despises him.  Even as he begs for  no body lends him any help. A gambler becomes useless like an old horse, and receives neither comfort nor respect.
अन्ये जायां परि मृशन्त्यस्य यस्यागृधद्वेदने वाज्यक्षः |
पिता माता भ्रातर एनमाहुर्न जानीमो नयता बद्धमेतम || ऋ10.34.4

When the covetous eyes of Dice corner the wealth of a gambler, the winners drag his wife by her hair, and even the close relations of the gambler stand as mute witness to the spectacle.
यदादीध्ये न दविषाण्येभिः परायद्भ्योSव हीये सखिभ्यः |
न्युप्ताश्च बभ्रवो वाचमक्रतँ  एमीदेषां निष्कृतं जारिणीव || ऋ10.34.5

When I make a resolution to desist from gambling in future, my friends taunt me. And these rolling multicolored Dice become so irresistible that I run to them like an adulterous woman.
सभामेति कितवः पृच्छमानो जेष्यामीति तन्वाशूशुजानः |
अक्षासो अस्य वि तिरन्ति कामं परतिदीव्ने दधत आ कृतानि ||  ऋ10.34.6

An able bodied person covets  the wealth of a rich man and enters the casino  to win attracted by the  stacked tokens plied in front of his opponent.
अक्षास इदङ्‌कुशिनो नितोदिनो निकृत्वानस्तपनास्तापयिष्णवः |
कुमारदेष्णा जयतः पुनर्हणो मध्वासम्पृक्ताः कितवस्य बर्हणा ||ऋ10.34.7

For the loser these Dice  act like sharp weapons giving immense pain like those from physical injuries. On loss of everything even the members of his family suffer great discomfort. For the winner these Dice bring good news like the birth of his son, but the looser is completely ruined.
त्रिपञ्चाशः क्रीळति व्रात एषां देव इव सविता सत्यधर्मा |
उग्रस्य चिन्मन्यवे ना नमन्ते राजा चिदेभ्योनम इत कर्णोति || ऋ10.34.8

The dice play their own independent game and are a law un to themselves. They bow not before wrath of the mighty . Even King pays them homage.

नीचा वर्तन्त उपरि स्फुरन्त्यहस्तासो हस्तवन्तं सहन्ते |
दिव्या अङ्‌गारा इरिणे नयुप्ताः शीताः सन्तो हर्दयं निर्दहन्ति || ऋ10.34.9

They jump up and down , without any hands they overpower.  They are cold to touch but for the loser they are hot like burning ambers.
जाया तप्यते कितवस्य हीना माता पुत्रस्य चरतः क्व स्वित |
ऋणावा बिभ्यद धनमिच्छमानोSन्येषामस्तमुप नक्तमेति ||R10.34.10

The gamester is abandoned by his family. In debt ever in  fear he wanders, Anxious for wealth , he enters strange households at night to plunder.
स्त्रियं दृष्ट्वाय कितवं ततापा Sन्येषां जायांसुकृतं च योनिम |
पूर्वाह्णे अश्वान युजुजे हि बभ्रून्‌ त्सो अग्नेरन्ते वृषलः पपाद || ऋ10.34.11

He suffers pain at seeing happy households and women folk. But in the afternoon he again reverts to the game of dice, and is reduced in  penury to warm himself in the cold of night , by open fire.
यो वः सेनानीर्महतो गणस्य राजा वरातस्य परथमोबभूव |
तस्मै कृणोमि न धना रुणध्मि दशाहं  प्राचीस्तदृतं वदामि || ऋ10.34.12

He raises his empty hands in salutation of the dice and prays to the dice for their mercy  to win in the game.
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः |
तत्र गावः कितव तत्र जाया तन्मे विचष्टे सवितायमर्यः || ऋ10.34.13

Vedas give the wise counsel thus: Game of Dice is not for YOU. Perform the divine work of a farmer with family your household with cows, and bounties of nature.  Rejoice in the riches of your labor.
मित्रं कृणुध्वं खलु मृळता नो मा नो घोरेण चरताभि  धृष्णु |
नि वो नु मन्युर्विशतामरातिरन्यो बभ्रूणां प्रसितौ न्वस्तु ||ऋ10.34.14

Gamester now wiser, tells the dice not to entice and bewitch him any more  . He tells the dice to allow him to be friends with himself and bring grace upon his own life.

He asks  the dice to destroy his enemies by holding them under their spell. And tells  the brown seeds to instead   play useful role by their  (medicinal) properties for welfare of society.

Here reference is made to विभीतक – Terminalia Belerica बहेडा – wood or seeds of which the dice used to be made . These brown  herb seeds areबहेड, which are used as dice are instead  put to the excellent medicinal use as essential component of Ayurvedic medicine Triphala. त्रिफला , that consists of हरड, बहेडा, आमला.

Dealing with corrupt persons

corrupt people

Dealing with corrupt persons  AV3.9

1.   कर्शफस्य विशफस्य द्यौः पिता पृथिवी माता  ।

यथाभिचक्र देवास्तथाप कृणुता पुनः  । ।AV3.9.1

हाथ पेर से काम करके  जीने वाले और बिना हाथ पेर के अपना जीवन  चलाने  वालों दोनो को प्रकृति ने समान रूप से जन्म दिया है. यह  प्रकृति का चक्र है जो इसी प्रकार से चलता रहता है.

2.   अश्रेष्माणो अधारयन्तथा तन्मनुना कृतं  ।

कृणोमि वध्रि विष्कन्धं मुष्काबर्हो गवां इव  । । AV3.9.2

(अश्रेष्माण: ) त्रिदोश रहित अनासक्त दयालु  मनन करनेवाले विचारशील जन ही (अधारयन) पालन पोषन करते हैं.   (विष्किन्धम्‌) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक सभी विघ्नों को (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जनों से मुक्त करने के लिए  उद्दन्ड पशुओं को जैसे मुष्टिका और बाहुबल से बधिया निर्वीर्य किया जाता है वैसे ही इन तत्वों को समाज में निर्वीर्य करो.

3.   पिशङ्गे सूत्रे खृगलं तदा बध्नन्ति वेधसः  ।

श्रवस्युं शुष्मं काबवं वध्रिं कृण्वन्तु बन्धुरः  । । AV3.9.3

(श्रवस्युम्‌) – (श्रवस्युम्‌) लोकैषणा यश को अपने साथ जोड़ने की कामना करने  वालों को . (शुष्मम्‌) वित्तैषणा – धन की कामना से शोषण करने वालों,(काबवम्‌) जीवन को अनुराग युक्त पुत्रैषणा पित्र मोह से ग्रसित क्रूर लोगों को (वेधस: ) विधि विधान जानने वाले ज्ञानी जन भिन्न भिन्न – नीतियों के कवच से (बध्रिम्‌ कृण्वन्तु) बधिया करो – उन  के प्रभाव को निष्फल करो .

4.   येना श्रवस्यवश्चरथ देवा इवासुरमायया  ।

शुनां कपिरिव दूषणो बन्धुरा काबवस्य च  । ।AV3.9.4

असुरों के समान मायावी छल कपट से अनुचित साधनों से अपनी कीर्ति और सम्पत्ति को चाहने वाले देशद्रोही क्रूर जन जो देवताओं के समान विचर रहे हैं उन क्रूर प्राणियों के बीच उत्पात मचा कर उन्हें आपस में ऐसे लड़ा  दो जैसे कुत्तों के बीच में उत्पाती बन्दर के आने से होता है.

5.    दुष्ट्यै हि त्वा भत्स्यामि दूषयिष्यामि काबवं  ।

उदाशवो रथा इव शपथेभिः सरिष्यथ  । । AV3.9.5

दुष्ट क्रूर  विघ्नकारी जनों को बांधकर ही तुम प्रगति के कार्य की योजना की शपथ ले कर तीव्र गति वाले अश्वो से युक्त रथों  से अपने मार्ग पर अग्रसर हो सकोगे.

6.   एकशतं विष्कन्धानि विष्ठिता पृथिवीं अनु  ।

तेषां त्वां अग्रे उज्जहरुर्मणिं विष्कन्धदूषणं  । । AV3.9.6

एक सौ एक (विष्किन्धानि ) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक रोक लगाने वाले (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जन जो पृथ्वी पर स्थापित है उन  से मुक्त करने के लिए (तेषाम्‌‌ अग्रे )  उन के बीच मुख्याधिकारी (ऊज्जहरुर्मणिं) शिरोमणि अधिष्ठाता नियुक्त क्रो जो (विष्किंधदूषणम्‌) विघ्नकारी जनों के प्रदूषन को दूर करे |

गृहस्थ के दायित्व

vedic householder

Duties of a Householder  

गृहस्थ के दायित्व – दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय  

अथर्व 6.122,

पञ्च महायज्ञ विषय

1.   एतं भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य  ।

अस्माभिर्दत्तं जरसः परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम  । ।AV6.122.1

Wise man perceives that the bounties provided by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate their bounties in welfare and charity of family and society- by performing various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well trained progeny.)

संसार का विश्वकर्मा के रूप में परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है. बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है.    इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होता है.  ( यजुर्वेद का उपदेश “ईशा वास्यमिदँ  सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्‌” भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं. हम केवल प्रतिशासकTrustee हैं,  इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की  इस देन को संसार,समाज,परिवार  के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को समर्पण करना ही है.)

भूत यज्ञ

2.   ततं तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन  ।

अबन्ध्वेके ददतः प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव  । ।AV6.122.2

Those who live by the ideals of their virtuous parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing for the society and environments as also take care and provide good education to their orphaned brothers,  make their own destiny to be part of a happy society and have a happy family life.

जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते  हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .

जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.

अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ

3.   अन्वारभेथां अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते  ।

यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां  । ।AV6.122.3

This is an enjoined duty of the house holders to share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for latently sharing with environments and to the innumerable diverse living creatures.

दम्पतियों का  (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण मे लगाएं

यज्ञमय जीवन

4.   यज्ञं यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः  ।

उपहूता अग्ने जरसः परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम  । ।AV6.122.4

By setting an example of following a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing his duties towards environments, society and family development of an appropriate temperament   takes place. That ensures a peaceful heaven like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life for the old elderly retired persons.

तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन  करने से उत्पन्न  मानसिकता के विकास द्वारा  जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता  है. ऐसी व्यवस्था में, दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष  से स्वीकृत होती है.

परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम सन्तति व्यवस्था)

5.   शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि  ।

यत्काम इदं अभिषिञ्चामि वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे  । ।AV6.122.5

Bring up your children to develop virtuous, pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for sustaining a good society.

पुत्रियों का  शुद्ध पवित्र पालन कर के  उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान्‌ -स्वस्थ जीवन शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि  हो.(इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य  पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ पौष्टिक आहार के  संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत  स्वयं गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज  कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व  बताया है.)

स्वतंत्रता-परतंत्रता

 

slavery

 

स्वंत्रता-परतंत्रता 

लेखक- स्वामी विष्वअंग् जी  , ऋषि उद्यान – अजयमेरू नगरी  

व्यक्तियों के अनेको सम्बन्ध होते है,जैसे माता-पिता के साथ, पति-पत्नी के साथ, सांस-बहु के साथ, श्वशुर-बहु के साथ, भाई-बहन के साथ, गुरु-शिष्य के साथ, पडोसी के साथ, व्यापारी-सेवक के साथ, समाज के साथ………….इस प्रकार अलग-अलग अन्रको सम्बन्ध है | इन संबंधो के साथ रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति चाहते या न चाहते हुए अनेको कार्य करता है | ऐसा प्रतीत होता है की सारा जीवन पराधीनता से युक्त है | फिर भी यह कहा जाता है की मनुष्य स्वतंत्र है अर्थात करने, न करने या अन्यथा करने में स्वतंत्र है | क्या हम पराधीन है या स्वाधीन है ? अर्थात परतंत्र है या स्वतंत्र है ? यद्यपि  नासमझ व्यक्ति को लगता है की हम तो परतंत्र है, परन्तु ऐसा नहीं है, क्यों की पराधीन होता है तो स्वाधीन भी तो होता है | सर्व प्रथम यह समझना चाइये की स्वाधीनता-स्वतंत्रता किसे कहते है, और पराधीनता-परतंत्रता किसे कहते है ?

जैसा की स्वतंत्रता के विषय में कहा जाता है की करने, न करने या अन्यथा करने में मनुष्य स्वतंत्र है | ठीक इसके विपरीत करने, न करने या अन्यथा करने में परतंत्र है अर्थात मनुष्य अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकता | परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है, क्यों की मनुष्य अपनी इच्छा से बहोत कुछ करता है | जब वह बहोत कुछ अपनी इच्छा से कर रहा होता है तब स्वतंत्र होकर ही कर रहा होता है | इससे यह पता लगता है की मनुष्य स्वतंत्र है और जब-जब वह अन्यों के आश्रित होकर करता है तब-तब वह परतंत्र होता है | परन्तु यह परतंत्र किसे व्यवस्था के लिए होता है | व्यवस्थाए अलग-अलग होती है | जिस प्रकार हमारे अलग-अलग सम्बन्ध है, तो हमारी व्यवस्थाए भी अलग-अलग होंगी | व्यवस्था को बनाये रखने के लिए मनुष्य को परतंत्र बनाना पड़ता है | इसका यह अभिप्राय नहीं है की मनुष्य परतंत्र हो गया | केवल उस व्यवस्था को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए परतंत्र हुआ है, उससे मनुष्य स्वाभाव से परतंत्र नहीं हुआ | वह व्यवस्था के लिए परतंत्र होता हुआ भी स्वतन्त्र ही रहता है | क्यों की मनुष्य का स्वभाव ही स्वतंत्र रहना है | यहाँ यह समझना चाइये की मनुष्य अपने यथार्थ ज्ञान, विवेक से व्यवस्था को इसलिए स्वीकार करता है की जिससे, उसे सुख विशेष मिलता है | उस सुख-विशेष को समझ कर जानकर अपनी इच्छा से, अपनी स्वतंत्रता से, उस व्यवास्स्था के लिए परतंत्रता को स्वीकार करता है |

यदि मनुष्य यथार्थ ज्ञान-विवेक नहीं रखता अर्थात मूर्खता-अज्ञान रूपी अविद्या से ग्रस्त रहता है, तो उसे व्यवस्था से सुख-विशेष मिलेंगा, यह बोध ही नहीं रहता, इसलिए वह व्यवस्था चाहे माता-पिता, गुरु-आचार्य, पुलिस, समझ या राष्ट्र की व्यवस्था हो, उसको भंग करता है, और दुःख विशेष को प्राप्त करता है | ऐसे-ऐसे स्थानों में मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है | यहाँ स्वतंत्रता का उपयोग तो कर रहे है, परन्तु उस स्वतंत्रता से मनुष्य को दुःख-विशेष प्राप्त हो रहा है | ऐसी स्वतंत्रता से दुःख ही मिलेंगा | इसलिए मनुष्य को समझना चाइये की स्वंत्रता और परतंत्रता क्या है ? अर्थात स्वतंत्रता से सुख और परतंत्रता से दुःख मिलता है ? क्या यही स्वतंत्रता या परतंत्रता है ? यदि ऐसा माना जाए तो स्वतंत्रता से सुख और दुःख दोनों मिलते है और परतंत्रता से भी सुख और दुःख दोनों मिलते है | इसलिए मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता को समझकर-जानकार उसका सदुपयोग करना चाइये |

मनुष्य स्वतंत्रता का दुरूपयोग तब कर सकता है जब उसके पास यथार्थ ज्ञान-विवेक होंगा | यथार्थ ज्ञान वेद आदि सत्य शास्त्रों के अध्यन करने से या उनको पढ़े हुए विद्वानों के माध्यम से या और किसी भी माध्यम से जानकारी प्राप्त करने से मनुष्य को हो जाता है | यथार्थ ज्ञान से मनुष्य अपने स्वतंत्रता का सदुपयोग करता है | कहा, कब, किस परिस्थिति में स्वतंत्र रहकर सुख लिया जायेंगा और कहा, कब, किस परिस्थिति में अन्यों के आधीन परतंत्र रहकर भी सुख लिया जायेंगा, यही मनुष्य की बुद्धिमता है | यदि मनुष्य के पास बुद्धि-ज्ञान नहीं है अर्थात मूर्खता-अविद्या है, तो स्वतंत्र होता हुआ भी अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करता हुआ सर्वत्र दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | इसका यह भी अर्थ नहीं लेना चाइये की परतंत्र रहता हुआ सुख ही लेता रहेंगा हाँ ! यदि अविद्या से ग्रस्त रहकर परतंत्रता को स्वीकार करता है, तो दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | परन्तु यथार्थ-ज्ञान-विद्या से युक्त रहेंगा, तो चाहे स्वतंत्र रहे चाहे परतंत्र रहे, दोनों की स्तिथियो में सदा सुखी ही रहेंगा | इसलिए विद्या-युक्त स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों ही लाभकारी है | परन्तु ध्यान रहे मनुष्य स्वभाव से स्वतंत्र है, परतंत्र नहीं |

भारत की बेटी

bharat ki beti

भारत की बेटी

जननी नाम से पवित्र, दूसरा कौनसा है नाम |

माँ नाम से निर्मल, कौनसा है दूसरा है नाम ||

आज की किशोरी ही भविष्य की आधारशिला है | संतान उत्पत्ति की अर्थात श्रेष्ट संतान उत्पत्ति की और राष्ट्र गौरव की, क्यों की जब कोई युवती स्वयं निर्णय लेने लग जाती है अर्थात यह आयु १६ से १८ की होती है और इसी आयु में वह निर्णय लेनी की क्षमता प्राप्त करती है | यही से उसके भावी संतान का भविष्य शुरू हो जाता है | यही संतान उत्पत्ति का विज्ञान है | इतिहास इस बात का साक्षी है – शिवाजी,श्री कृष्ण, श्री राम, प्रलहाद , रावण, पांडव, आदि की | ऐसी हजारो बेटियों ने राष्ट्र रक्षक, राष्ट्र निर्माण, तो एक  ओर  दुष्ट,विनाशक            संतान को  उत्तपन किया | जिस स्त्री में संतान गर्भ में आने से पहले ही अर्थात अपनी युवा अवस्था में स्त्री जिस विचारों का चिंतन करती रहेंगी वहाँ पर उसी विचारों से प्रभावित वैसी ही विचारों वाली आत्मा का गर्भ में प्रवेश होंगा और वह संतान जन्मजात उसी प्रवृति का पोषक होंगी | वह चाहे तो रावण जैसी संतान को भी जन्म दे सकती है और चाहे तो कृष्ण जैसी योद्धा संतान को भी उत्तपन कर राष्ट्र रक्षा या राष्ट्र निर्माण कर देश की सेवा कर  सकती है | घर बैठे नारी समाज की, देश की सेवा कर सकती है | पर इसके लिए आवश्यकता है तपस्या – दूसरों के प्रति त्याग और सेवा ही तपस्या है | पर दुःख की बात है की ऐसे जीवन का महत्व आज नहीं रहा | ऐसे जीवन को आज निचले स्तर से देखा जाता है |

आज पाश्चात्य सभ्यता हर क्षण इतनी हावी हो रही है, की हमारे संस्कार प्राय: उनके समक्ष नष्ट हो रहे है | आज की शिक्षा, आज के रहन सहन, आज के विचार, हमारे संस्कार रपी धरोवर को नष्ट करते चले जा रहे है | भविष्य के इस आधारशिला  किशोरी के भटकते हुए जीवन का कौन जिम्मेदार है ? उसके ओर उठने वाली पाशविक दृष्टी का कौन जिम्मेदार है ? घर से भागकर प्रेमविवाह करने का कौन जिम्मेदार है ? उसके बिना विवाह माँ बनाने का कौन जिम्मेदार है ? उसके मर्यादाहीन होने का कौन जिम्मेदार है ? उसके अभिभावक व वह स्वयं ?

हम निश्चित कह सकते है, युवा पीढ़ी के अनुशासनहीनता के लिए, तपस्या हिन् जीवन के लिए, भोगमय जीवन के लिए जिम्मेदार उसकी पूर्व पीढ़ी अर्थात माता-पिता ही है | हम इसे सिद्ध भी कर सकते है | नारी गर्भ से संतान इस धरती पर आती है, पर इसके लिए उसे किसी योगदान की आवश्यकता होती है ओर वह योगदान देने वाले होते है उसके अपने माता-पिता | उच्चा संस्कारो के बिज को संतानों में अंकुरित करना होता है | अंकुरित करने के लिए किसे न किसे खाद, जल ओर अन्य पोषक तत्व तो देने ही होंगे, तभी तो उच्चा संस्कारो का भिज अंकुरित होंगा | इस आधुनिकता को देखते हुए यह बड़ा जटिल लगता है, क्यों की तप करना कोई साधारण कार्य नहीं है | यह कोई एक दो दिन में होनेवाला चमत्कार भी नहीं है | पीढ़िय बिगड़ने में लगी है, तो पीढ़िय सुधरने में भी लगेंगी | इसलिए आज के युवा पीढ़ी को माता-पिता से संस्कार न भी मिले हो, तो कोई बात नहीं, तो उनका कोई दोष भी नहीं है यह नष्टता पीढियों से चली आ रही है |

अब तो इसे अंकुरित करने की जिज्ञासा युवा पीढ़ी में होनी चाइये | निरंतर जागृति से संस्कार रूपी बिज अंकुरित होकर एक दिन वट वृक्ष निश्चित होंगा | सीता, सावित्री, मदालसा, गार्गी, सुलभा, मैत्री, अरुंधती, अन्नपुर्णा, संध्या, अनुसया, शाण्डिली, दमयंती, रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई आदि हजारो युवतियों, नारियो ज्ञान की ओर पवित्रता की उन उचाइयो को छु लिया था | इन बेटियों के जीवन से यह बात भी झूठी सभीत होती है, की स्त्रियों को पड़ने का अधिकार नहीं था | क्यों की मदालसा, सुलभा, गार्गी आदि उच्चस्तरीय पंडित, विद्वान, ब्रह्मज्ञानी थी जिन्हें शास्त्रार्थ में हराना जनक जैसे विद्वान को भी अशक्य था |

वैदिक संस्कृति के अनुसार स्त्रीजीवन की महानता माता का पद प्राप्त करने में है, ओर महाभाग्यशाली होना है ज्ञानी, योद्धा, दानी, त्यागी, तपस्वी, पुत्र-पुत्री की माता कहलाना में | रोटी बनाना, व्यापार करना, नौकरी करना, घर चलाना अलग बात है और औरो के लिए जीना, संसार के कल्याण की चाह रखकर संतान का निर्माण, राष्ट्र निर्माण, समाज निर्माण, धर्मं  रक्षा करना अलग बात है | एक नारी प्रसव पीड़ा सहन करती है, अगर उस प्रसव पीड़ा से राष्ट्र उन्नति नहीं हुई, लोक कल्याण नहीं हुआ,अन्याय नष्ट नहीं हुवा, आभाव दूर नहीं हुवा, अज्ञानियों का अज्ञान दूर नहीं हुवा, दुखियो को दुःख दूर नहीं हुवा, तो फिर क्या हुवा ? किस काम का है उत्सव ? किस काम का हुवा यह जन्म ? प्रसव पीड़ा तो दूर हुई पर नई पीड़ा बड गयी अपनी भी ओर दूसरो की भी |

आचार विचार जहा नष्ट होते है, संतान वहा भ्रष्ट होती है | संतानों के भ्रष्ट होने से संस्कार नष्ट हो जाते है | संस्कारो के नष्ट होने से, राष्ट्र गरिमा खो देता है |राष्ट्र गरिमा खो जाने से मनुष्य अपनी  पहचान भी खो जाती है

नाम मात्र ही माँ न बन, त्याग प्रेम से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, पवित्रता से बने तू माता ||

शरीर से तू माँ न बन, नारीत्व से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, संस्कारो से बने तू माता ||

दूध पिलाने से माँ न बन, व्रत स्वाध्याय से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, प्रार्थनाओ से बने तू माता ||

भोजन वस्त्रों से ही माँ न बन, मातृत्व से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, आचरण से बने तू माता ||

पढने पढाने से ही माँ न बन, सुप्रवृतियो से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, तपस्या से बने तू माता ||

पाशविक तृष्णा से ही माँ न बन, सु विचारों से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, संयम से बने तू  माता ||

अधर्म से तू माँ न बन, धर्मं से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, सतीत्व से बने तू माता ||

अपने लिए माँ न बन, विश्व सेवा के लिए बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, जाबाज़ विरो से बने तू माता ||