अधिकतर कार्यों को आरम्भ करने से पहले मुसलमान बिस्मिल्लाह का पढ़ना आवश्यक समझते हैं कुरान के अधिकतर अध्यायों की शुरुआत भी बिस्मिल्लाह से ही हुयी है आइये जानते हैं बिस्मिल्लाह के कुछ चमत्कारों के बारे में
तफसीर ए जलालैन ने इसके बारे में जो दिया है वो पढ़िए :
बिस्मिल्लाह के गुण :
- मुस्लिम की रिवायत है कि जिस खाने पर बिस्मिल्लाह नहीं पढी जाती उसमें शैतान का हिस्सा होता है .
- अबू दाऊद की रिवायत है कि आप की मजलिस मै किसी सहाबी ने बगैर बिस्मिल्लाह खाना शुरू कर दिया आखिर में जब याद आया तो बिस्मिल्लाह कहा तो आं हजरत को यह देख कर हंसी आ गयी और फरमाया कि शैतान ने जो कुछ खाया था इनके बिस्मिल्लाह पढ़ते ही खड़े हो कर सब उल्टी कर दिया . अल बल्गाह में अपना वाकया फरमाया है कि एक दोस्त खाना खाने लगे तो उन के हाथ से रोटी का टुकडा छूट कर दूर तक लटकता चला गया जिससे सभी को ताज्जुब हुआ और अगले रोज़ मोहल्ले में किसी के सर पर खबीस आकर बोला कि कल हमने फलां सख्स से एक टुकड़ा छीना था मगर आखिरकार इसने हमसे ले ही लिया .
- तिर्मज़ी की रिवायत हजरत अली से है कि शौचालय में जाने के वक्त बिस्मिल्लाह पढने से जिन्नात व शैतान की नज़र इसके आवरण (गुप्तांगों ) तक नहीं पहुँचती है .
इमाम राजी ने तफसीर कबीर में लिखा है कि हजरत दुश्मन के मुकाबले जंग में पर जमाए खड़े हैं और जहर हलाहल की एक शीशी पीस करके ……. दीन की सराकत का इम्तिहान लेना चाहते हैं आपने पूरी शीशी बिस्मिल्लाह पढ़ कर पी ली लेकिन इसकी बरकत से आप पर जहर का मामूली असर भी नहीं हुआ .
लेकिन आप कहेंगे कि इस तरह के ताशीर (प्रभावोत्पादकता) आपका मशाहरा (the act of disagreeing angrily) चूँकि हमको नहीं होता इसलिये यह वाकयात गलत बे बुनियाद खुशफहमी पर बनी मालूम होते है .सुबात यह है कि किसी चीज की ताशीर के लिए इस बात व शरायत का मुहैया होना और मुआना व रुकावटों का दूर होना दोनों बातें जरुरी होती हैं .
अजलह मर्ज़ और हसूल सेहत के लिए सिर्फ दो दुआ कारगर नहीं हो सकतीं ताव कतीकाह नुकसानदेह चीजों और बद परहेजों से बिलकुल नहीं बचा जाए यहाँ भी साफ़ नीयत ईमान का मिल अगर शरायत ताशीर हैं तो रयाकारी बद्फह्मी तोहमत व खयालात बद आत्कादी गैर मुआयना भी है दोनों ही मकर मज्मुई तोर पर अगर मौशर होते हों तो भी क्या इश्काल (संदेह ) रह जाता है (हक्कानी )
- इब्ने अहमद बन मुसी अपनी तफसीर में जाबर बन से रिवायत करते हैं कि बिस्मिल्लाह जब नाजिल हुयी तो बादल पूर्वी दिशा में दौड़ने लगे हवा रुक गयी समन्दरों में जोश हुआ जानवर कान खड़े करके सुनने लगे और अल्लाह ने अपनी महानता की कसम खायी कि बिस्मिल्लाह जिस चीज पर पढी जायेगी मैं इस में जरुर बरकत दूंगा .
- पण्डित देवप्रकाश जी ने जो लिखा जो लिखते हैं :
पाठकों के मनोरंजन के लिए इस आयत के साथ जोड़े चमत्कार लिख देते हैं :
इब्ने कसीर ने लिखा हजरत दाउद फरमाते हैं कि जब ये आयत बिस्मिल्लाह उतरी बादल पूर्व की और छंट गए हवा रुक गयी समुद्र ठहर गया ,जानवरों ने कान लगा लिया शिअतान पर आकाश से आग के शोले गिर इत्यादि (इब्ने कसीर जिल्द १ पृष्ट २४)
अबू दाउद से उद्धृत किया है की नबी (मुहम्मद) के सामने एक व्यक्ति ने बिना बिस्मिल्लाह पढ़े खाना खाया . जब भोजन का एक ग्रास शेष रहा तो उसने बिस्मिल्लाह पढी तो शैतान ने जो कुछ खाया था खड़े होकर उल्टी कर दी .सहीह मुस्लिम से उद्धृत किया है कि जिस भोजन पर बिस्मिल्ल्लाह नहीं पढ़ा जाता उसमें शैतान भागीदार हो जाता है .
तिरमिजी ने हजरत अली से उद्धृत किया है कि जब कोई व्यक्ति शौचायल में जाकर बिस्मिल्लाह पढता है तो इससे उसके गुप्तांगों व जिन्नों की आँखों के मध्य यह कलाम पर्दा बंद जाता है . तफसीर हक्कानी जिल्द १ पृष्ठ १७ न जाने ये जिन्न पखाने में मुसलामानों के पीछे क्यों जाते हैं .
इस तरह की बातों पर कोई भी विवेकशील व्यक्ति यकीन नहीं कर सकता . इन सब बातें वास्तविकता से परे हैं और अंधविश्वासों को बढ़ाने वाली हैं . पहले भी लोग बिस्मिल्लाह बिना पढ़े खाते थे और आज भी बिना बिस्मिल्लाह पढ़े खाते हैं लेकिन आज तक तो किसी की रोटी को किसी शैतान ने नहीं छीना न ही किसी को शौचालय में शैतान के होने का आभास हुआ है . इन सब तत्थ्यों के होते हुए इन सब बातों पर पढ़े लिखे और विवेकशील मुसलामानों का भी विश्वास करना शायद कठिन होता होगा गैर मुस्लिम के बारे में तो क्या कहें .
विवेकशील और बुद्धिमान मौलवियों आलिम फज़िलों को चाहीये की इस तरह की हदीसों के बारे में जो इस्लाम को वास्तविकता से परे रखने का कार्य करती हैं पर अपना मत स्पष्ट करना चाहिए