कविता
– सत्यदेव प्रसाद आर्य मरुत,
सारे संसार का उपकार करना
अपना भी उद्धार करना है।
शारीरिक-आत्मिक और सामाजिक
उन्नति करना ही परोपकार करना है।।
सारी सुख-सुविधा और विद्या हमारा कल्याण करती है,
छोड़ देना उन्हें तो अपने आप मरना है।।
हवा हमने सुवासित की,घरों में यज्ञ करने पर,
सुगन्धित घृत जड़ी-बूटी जलाई अग्नि जलने पर।
ऋचायें वेद की गाई हृदय में भावना भर ली।
जगत कल्याण करने की व्यवस्था सार्थक कर ली।
श्रुति की निःसृत वाणी कल्पतरु पुण्य झरना है।।
ज्यों सूरज तप्त करके जल सुखाता और उड़ाता है,
प्रकाशित कर धरा को प्रदूषण को भगाता है।
स्वयं छुप कर हमें विश्राम करने की दे छुट्टी,
अन्न फल फूल दे हम को, गरम कर देता है मुट्ठी।
हमें भी अपने जीवन में सूरज बन उभरना है।।
जगत के सारे पौधों को जो जीवन दे के सरसाता,
पनपता जल उसी में जा, करे पोषण बदल जाता।
मिर्च का स्वाद तीता आम है मीठा और चरपरी इमली,
चतुर्दिक रूप अपना तज कड़क कर बन रही बिजली।
डुबा डुबकी लगा कर जो, उबर कर तैर तरना है।।
– आर्य समाज, नेमदार गंज, नवादा- बिहार।