अज़ान
हमें बतलाया जाता है कि अज़ान की शुरूआत कैसे हुई। शुरू में मदीना के लोग मस्जिद में मिलते-जुलते रहते थे। प्रार्थना कब करनी है, यह जानकारी उन्हें नहीं होती थी। निश्चित समय पर प्रार्थना के लिए लोगों को बुलाने के लिए किसी ने घंटी बजाने का सुझाव दिया। ईसाई लोग घंटी बजाते थे। किसी ने यहूदियों की तरह तुरही बजाने का सुझाव दिया। किसी ने यह भी सुझाव दिया कि आग जलाई जाय। ये सभी तरीके अमान्य कर दिये गये। यहूदियों, ईसाइयों एवं अग्निपूजकों से मुसलमानी व्यवहार को अलग बनाने के लिए पुकारने की व्यवस्था प्रचलित की गई। बिलाल, जिनका कंठ-स्वर बहुत ऊंचा था, और अब्दुल्ला बिन उम्म मकतूम, जो बाद में अंधे हो गये, ये दो लोग पहले मुअज्ज़िन (पुकारने वाले) थे (735, 737, 741)।
अज़ान बहुत असरदार होती है। ”जब शैतान अज़ान सुनता है, तो वह रोहा के बराबर की दूरी तक दूर भाग जाता है“ (रोहा मदीना से 36 मील दूर है) (751)।
author : ram swarup