अन्य उपवास
कई-एक अन्य उपवासों का भी उल्लेख है। एक ही अशुर उपवास, जो मुहर्रम के दसवें दिन रखा जाता है। अशुर के दिन का ”यहूदी सम्मान करते थे और वे उसे ईद मानते थे“ (2522) और इस्लाम से पहले के युग में ”कुरैश लोग उस दिन उपवास रखते थे“ (2499)। पर जब मुहम्मद ने मदीना की ओर प्रवास किया, तब उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए उसे वैकल्पिक बना दिया। अन्य स्वैच्छिक उपवासों का भी उल्लेख है, किन्तु उन पर विचार करने की यहां आवश्यकता नहीं।
इन उपवासों के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि कोई व्यक्ति सुबह उपवास करने का संकल्प सुना सकता है। और शाम को बिना किसी वजह के उसे भंग कर सकता है। एक दिन मुहम्मद ने आयशा से कुछ खाने को मांगा, पर कुछ उपलब्ध नहीं था। तब मुहम्मद ने कहा-”मैं उपवास रख रहा हूँ।“ कुछ वक्त बाद, उपहार में कुछ भोजन-सामग्री आई और आयशा ने उसे मुहम्मद के सामने रख दिया। मुहम्मद ने पूछा-”यह क्या है ?“ आयशा बोली-”यह हैस (खजूर और घी की बनी एक मिठाई) है।“ वे बोले-”इसे लाओ।“ आयशा आगे बतलाती हैं-”इस पर मैने उन्हें वह दिया और उन्होंने खा लिया।“ और तब वे बोले-”यह स्वेच्छा से उपवास रखना ऐसा है, जैसे कोई अपनी जायदाद में सदका निकाल कर रख दे। वह चाहे तो उसे खर्च कर सकता है, या फिर चाहे तो उसे रखा रहने दे सकता है“ (2573)।
author : ram swarup