सहीह मुस्लिम में दी गयी एक हदीस (अध्याय -३ , हदीस संख्या ३०० , पृष्ट संख्या २२० , २२१) पढ़िए
सारांश ये है कि आयशा ने बताया कि मासिक धर्म के समय जब मैं पेय पदार्थ पी रही होती थी तो मैं उस बर्तन को जिसमें से पेय पदार्थ पी रही होती थी मुहम्मद साहब को दे दिया करती थी और वह उस जगह जिस जगह मैने मुंह लगा के पीया होता था अपना मुंह लगा कर पी लिया करते थे और जब मासिक धर्म के समय में मैं हड्डी से मांस खा रही होती थी तो उसे मुहम्मद साहब को दे दिया करती थी और वो उसी जगह जहाँ मेरा मुंह होता था अपना मुंह लगाते थे . ज़ुहैर ने पीने के बारे में कुछ नहीं बताया.
यही हदीस अहमद बिन हम्बल ज ६ स ६४ पर कुछ शब्दों के हेर फेर से दी हुयी है :
आयशा का बयान है कि :
दस्तरख्वान पर जब आं हजरत मेरे साथ खाना खाते तो उसी हड्डी को आप भी चूसते, जिसे मैं चूसती थी और उसी प्याले में उसी जगह आप भी मुंह लगाकर पीते जिस प्याले में जहाँ पर मैं मुंह लगाती थी हालांकि में हैज़ की हालात में होती थी .
सभ्यताओं के इतिहास व उनके महापुरुषों के आचरण से युवक प्रेरणा ग्रहण कर महापुरुषों के उत्तम आचरण को अपने व्यवहार में ढालते और उनके उद्देशों की पूर्ति के लिए अग्रसर होते हैं . यही उस सभ्यता एवं संकृति के उत्थान या पतन को निश्चित करता है . यदि इतिहास उत्तम है और युवक उससे प्रेरणा ग्रहण कर उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं तो उस सभ्यता का उत्थान होता है अन्यथा वह पतन के गर्त में चली जाती है .
हदीसें मुसलामानों के इतिहास का एक बड़ा स्त्रोत है . और इस स्त्रोत में सबसे ज्यादा हदीसें शायद हजरत आयेशा के माध्यम से ही हैं . लेकिन इस हदीसों को पढने से उत्तम आचरण और सभ्यता के समन्वय का अभाव ही दृष्टि गोचर होता है.
इस हदीस का हम क्या विश्लेष्ण करें मुस्लिम लेख्रक फरोग काजमी साहब ने बड़े ही प्रभावी ढंग से वर्णन किया है उसे ही पाठकों के लिए देते हैं :
- इस बयान के जरिये हजरत आयशा का मकसद सिर्फ ये जाहिर करना है कि रसूले खुदा आपको इस कदर चाहते थे कि उन्हें आपके थूक या हैज़ से कोई गुरेज़ नहीं था .
- लेकिन ये बात समझ में नहीं आती कि आखिर आं हजरत उसी हड्डी को क्यों चूसते थे जिसे आप चूसती थी ?
- क्या आधी हड्डी आपके और आधी हड्डी पैगम्बर के मुंह में होती थी ?
- क्या उस हड्डी में दोनों तरफ छेद होता था कि आधा गूदा आपके हिस्से में और आधा गूदा पैगम्बर के हिस्से में आता था ?
- या फिर चूसने का कोई और तरीका था कि जब आप उस हड्डी को चूस लेती थी, तो पैगम्बर चूसते थे ?
- मगर आपके चूसने के बाद उसमें गोश्त गूदा या शोरबा वगैरहा तो रहता न होगा, फिर पैगम्बर क्या चूसते थे?
- बयान में ये सराहत भी नहीं की गयी कि जिस प्याले में आयशा और पैगम्बर एक ही जगह मुंह लगाकर पीते थे उसमें क्या चीज होती थी ? पानी ………….. या कुछ और !
फरोग काजमी साहब इन हदीसों से अत्यंत विचलित प्रतीत होते हैं और कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग आयशा, जो मुसलामानों की माँ हैं, के लिए किया है उन्हें हम यहाँ लिखना ठीक नहीं समझते .
मुस्लिम विद्वानों को चाहिए कि इतिहास में से ऐसे सन्दर्भ जो ठीक नहीं हैं पर स्पष्टीकरण दें जिससे ये किसी महापुरुष की छवि को धुमिल करने का करना न बनें
tumhari maa ki choot ye kya bol rhe ho tum tumhe zara bhi ehsaas h tum kiski bare me eaa bol rhe ho
साहिल खान
वाह क्या बात है शायद आप इसी तरह से अपनी माता परिवार वालो से बात करते हैं आखिर इस्लाम जो शान्ति का मजहब है तभी तो इस तरह की बात करने का शायद आपको आज्ञा दी है | यह बतलाना की आपके कुरआन में किस आयत सुरा में इस तरह की फूलो की बारिश करने की बात कही गयी है ? क्या आप अपने नबी का अनुसरण कर रहे हो ? और जो लेख है वह प्रमाणित है | आप क्या कुरआन पर ईमान लाये हो ? लाये हो तो बताना किस आयत और सुरा में ऐसा बोला गया है जिस कारण आप इस तरह की भाषा में बात करते हो | पहले जो प्रमाण दिया गया है उसे देखो जी फिर बात करना | वैसे कुरआन हदीस से चर्चा शुरू कर दू तो ना जाने कहाँ भाग जाओगे | हदीस में लिखा है जो औरत आपको प्यार करे उससे जिस्मानी सम्बन्ध बनाओ जबरदस्ती भी चाहे जो प्यार करने वाला हो उसे क्यों न बुरा लगे | हदीस सब की बात रखना शुरू कर दू तो मालुम नहीं कहाँ जाओगे | खैर जो कुरआन से आयत और सूरा माँगा है उसका जवाब देना | जवाब की प्रतीक्षा में | धन्यवाद |
सब अपने धर्म पर सीमित रहो क्योंकि ईससे मज़हबी फिरते और दांता होनेका आशंका है | रही बात हजरत मौहम्मद और आशा की | किसी गैर ईसलामी को कई टिप्पणी का जरूरत नही है| हिसाब लगागे देखो रोज कितने तादाद पे लोग मुसलमान हो रहा है और तुलना करो कितने मुसलमान दुसरा धर्म अपनाती है!
महोदय ये टिप्पणी हमारी नहीं आपके मुसलमान भाई की ही है