योगविद्या के प्रचारार्थ विद्वान् योगी का आव्हान -रामनाथ विद्यालंकार

योगविद्या के प्रचारार्थ विद्वान् योगी का आव्हान -रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः देवश्रवाः । देवता यज्ञपतिः । छन्दः ब्राह्मी बृहती।

आत्मने मे वर्चादा वर्चसे पवस्वौजसे मे वर्चेदा वर्चसे पवस्वायु मे वर्चीदा वर्चसे पवस्व विश्वभ्यो मे प्रजाभ्यो वर्चादसौं वर्चसे पवेथाम् ॥

-यजु० ७ । २८ |

हे (वर्षोंदा:१) योगविद्या और ब्रह्मविद्या के दाता योगी विद्वन् ! आप ( मे आत्मने) मेरे आत्मा के लिए ( वर्चसे ) योगवर्चस और ब्रह्मवर्चस प्रदानार्थ ( पवस्व ) प्रवृत्त हों। हे (वर्चेदाः ) वर्चस्विता के दाता ! आप ( मे ओजसे ) मेरे आत्मबल के लिए ( वर्चसे ) योगबलप्रदानार्थ ( पवस्व ) प्रवृत्त हों । हे (वर्षोंदा:४) देहबल के दाता ! आप (मेआयुषे ) मेरे दीर्घायुष्य के लिए (वर्चसे ) शारीरिक बल प्रदानार्थ ( पवस्व ) प्रवृत्त हों । हे ( वर्षोंदसौ ) योगदाता हठयोगी और ध्यानयोगी विद्वानो! आप दोनों (मेविश्वाभ्यः प्रजाभ्यः ) मेरी सब प्रजाओं के लिए ( वर्चसे ) ब्रह्मबलप्रदानार्थ (पवेथाम्) प्रवृत्त हों ।।

मैंने सांसारिक विद्याएँ तो बहुत सीख ली हैं और उनका विद्वान् कहलाने का सौभाग्य भी प्राप्त कर लिया है, किन्तु योगविद्या और ब्रह्मविद्या में अभी कोरा ही हूँ। अनुभवी लोग बताते हैं कि शरीर, मन, मस्तिष्क, आत्मा सबके विकास के लिए योग और ब्रह्मविद्या की शिक्षा आवश्यक है। अत: मैं योग गुरु की शरण में आया हूँ। हे योगसाधना और ब्रह्मविद्या में पारङ्गत योगी विद्वन् ! आप मेरे आत्मा के उत्कर्ष के लिए योग की क्रियाएँ सिखाइये, जिससे में ब्रह्मवर्चस प्राप्त कर सकें। आप मुझे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,  धारणा, ध्यान, समाधि रूप अष्ट योगाङ्गों में निष्णात कर दीजिए। ध्यानयोग के अभ्यास से मुझे ऐसी सिद्धि प्राप्त कराने की कृपा कीजिए कि मैं जिस विषय में भी जितनी भी देर मन को केन्द्रित करना चाहूँ कर सकें और मन को निर्विषय भी कर सकें तथा सविकल्पक और निर्विकल्पक समाधि का भी आनन्द ले सकें। आप मुझे ब्रह्मविषयक सम्पूर्ण शास्त्रज्ञान और ब्रह्मसाक्षात्कार भी कराने का अनुग्रह कीजिए।

हे वर्चस्विता के दाता योगी गुरुवर! मैंने सुना है कि आत्मा में बहुत बड़ी-बड़ी शक्तियाँ निहित हैं। जिसने आत्मसाधना कर ली है, वह योगी जिसे जो आशीर्वाद दे देता है, वह सत्य सिद्ध हो जाता है। आत्मबल बड़े-बड़े शक्तिशाली विद्युत्-यन्त्रों से भी बड़ा है, आत्मबल धरती को कहीं से कहीं फेंक देनेवाले अणुबम से भी बड़ा है, आत्मबल ग्रह उपग्रहों को अपनी परिक्रमा करानेवाले सूर्य के बल से भी बड़ा है।

हे देहबल के दाता योगी आचार्यवर ! योगविद्या से आप मेरे शरीर में वह शक्ति भर दीजिए कि मैं दीर्घायुष्य प्राप्त करे सकें। वेद ने प्राण, चक्षु आदि के लिए त्र्यायुष अर्थात् तीन सौ वर्ष की आयु प्राप्त करने की बात कही है। मैं उससे भी आगे बढ़कर इच्छामरण की शक्ति प्राप्त कर सकें। हे योग शिक्षाप्रदाता हठयोगी और ध्यानयोगी विद्वानो ! आप कृपा करके केवल मुझे ही नहीं, मेरी सब प्रजाओं को योगबल और ब्रह्मबल प्रदानार्थ प्रवृत्त होने की कृपा करें, जिससे मैं और मेरी सब प्रजाएँ दीर्घायु, आत्मबली और ब्रह्मबली बन सकें।

पाद-टिप्पणियाँ

१. (वर्षोदा:) योगब्रह्मविद्याप्रद–द०।।

२. (ओजसे) आत्मबलाय–द० ।।

३. (वर्चसे) योगबलप्रकाशाय-द० ।

४. (वर्षोदाः) वर्षों बलं ददाति तत्सम्बुद्धौ-द० ।

योगविद्या के प्रचारार्थ विद्वान् योगी का आव्हान -रामनाथ विद्यालंकार 

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