ओउम
भाई चारे का पर्व है मकर संक्रान्ति
दा. अशो आर्य
पर्व जातियों को उत्साह देने वाले होते हैं | विश्व में अनेक प्रकार के पर्व मनाने की परंपरा अक्षुण बनीहुई है | कुछ पर्व किसी की स्मृति में मनाए जाते हैं तो कुछ प्रकृति की विभिन्न कलाओं को दर्शाते हुए मनाये जाते हैं | हमारा आज का पर्व मकर संक्रान्ति कुछ एसे ही पर्वों में से एक है जो प्रकृति की एक विशेष अवस्था के दर्शन कराता है | यह शब्द उतर प्रदेश के गाजियाबाद के कौशाम्बी से पधारे डा.अशोक आर्य ( मंडी डबवाली , अबोहर ) ने यहाँ आर्य समाज चेम्बूर कैम्प , मुंबई के साप्ताहिक सत्संग में बोलते हुए कहे | इन से पूर्व श्रीमती दर्शना देवी ने भी भजन गायन से समां बाँध दिया |
डा.अशोक आर्य ने बताया कि पृथिवी एक वर्ष में अपना एक चक्कर सूर्य के गिर्द घुमते हुए इसे पूर्ण करती है , इसे सौर वर्ष कहते हैं | जब धरती लंबा वृहदाकार गति करते हुए अपनी परिक्रमा करती है तो इसे क्रांतिवृत कहते हैं | इस क्रान्तिवृत को ज्योतिषियों ने बारह भागों में बाँट कर इसे मेष, मिथुन , मकर आदि के नाम दिए हैं, जिन्हें क्रांतिवृत का नाम दिया गया है और इस क्रांतिवृत को भी दो भागों में बाँट कर इन्हें अयन नाम दिया है | जब सूर्य दक्षिण की और दिखलाई देता है तो इसे द्क्षिणायण तथा जब उतर की और दिखाई देता है तो इसे उतरायन कहा जाता है | द्क्षिणायन में रात्री लम्बी और दिन छोटा होता है तथा यह कर्क राशि से आरम्भ होता है जबकि उतरायन में दिन बड़ा और रात्री छोटी होती चली जाती है | प्रकाश के इस आयन की संक्रांति का आरम्भ मकर से होने के कारण इसे मकर संक्रांति कहते हैं |
उतरायन के आरम्भ के समय भयंकर सर्दी से लोग जूझ रहे होते हैं इस कारण इस पर्व पर लोग यज्ञ हवन करके अपने शारीर को गर्म करते हैं तथा इस गर्मी को बढाने के लिए स्वयं भी तिल, गुड , रुई आदि के प्रयोग से ठिठुरन से आराम पाते हैं तथा तिल के लड्डू व गर्म कपडे बाँट कर उन लोगों को भी सर्दी से बचाते हैं , जिनकी क्षमता पदार्थों को खरीदने की नहीं होती | इस प्रकार यह पर्व विश्व भाईचारे का सन्देश देता है |