#पेरियार के प्रश्नों का श्रृंखलाबद्ध #प्रश्न – उत्तर #संख्या (०१.) क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते? उत्तर – आचार्य योगेश भारद्वाज

#पेरियार के प्रश्नों का श्रृंखलाबद्ध उत्तर।(प्रत्येक उत्तर के बाद मेरे हस्ताक्षर अंकित हैं, अर्थात् मैं अपने उत्तर का उत्तरदायित्व भी घोषणापूर्वक धारण करता हूं।)

#प्रश्न#संख्या (०१.) क्या तुम कायर हो जो हमेशा छिपे रहते हो, कभी किसी के सामने नहीं आते? –ई वी रामासामी पेरियार#उत्तर:✓क्या कोई यह कह सकता है, कि मैंने ऐसे बालक को गोद में खिलाया, जो कभी पैदा ही नहीं हुआ …?✓क्या कोई यह कह सकता है, कि मैंने ऐसा भोजन किया, जो कभी संसार में था ही नहीं….?✓क्या कोई यह कह सकता है, कि मैं ऐसे वृक्ष पर बैठा रहा, जो कभी उत्पन्न नहीं हुआ…? उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर एक सामान्य से सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी #नहीं में ही देगा। यह पेरियार महोदय जो स्पष्ट तौर पर घोषणा करते हैं, कि मैं नास्तिक हूं। अर्थात ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता; वह आश्चर्यजनक रूप से ईश्वर को संबोधित कर रहे हैं। आखिर जिस वस्तु की सत्ता ही आप स्वीकार नहीं करते है, उस वस्तु को आप संबोधित कैसे कर सकते हैं …? बंधुओं ..! कभी आप पागल खाने में जाओगे, तो वहां पाओगे, कि वहां पागल लोग हवा में बातें करते रहते हैं। उनके मस्तिष्क विक्षिप्त होते हैं। इसलिए वे अपने सामने किसी के होने की कल्पना कर लेते हैं; और उन्ही कल्पनाओं से भी बात करते रहते हैं। पेरियार महोदय ईश्वर को संबोधित करना, जिसे वह मानते ही नहीं है…. भला मानसिक विक्षिप्तता नहीं तो और क्या है….?आइए…. अब मूल प्रश्न की ओर लौटते हैं। पेरियार महोदय का कहना है, कि ईश्वर अगर है, तो वह दिखाई देना चाहिए अर्थात दिखाई नहीं देता तो ईश्वर नहीं है। बंधु यह बात बालकों के समान है, कि जो वस्तु दिखाई नहीं देती वह नहीं है, या कभी नहीं थी। हमें संसार में ऐसी अनेक वस्तुएं अस्तित्व में दिखाई देती हैं जो कभी दिखाई नहीं देती….. जैसे भूख प्यास, ईर्ष्या, ममता, स्नेह यह सभी भाव हैं, जो दिखाई नहीं देते, किंतु इनकी सत्ता को नकारा नहीं जा सकता। आकाश अर्थात space….संसार में आकाश को कोई नहीं देख सकता लेकिन फिर भी आकाश की सत्ता है। अर्थात ऐसे अस्तित्व संसार में होते हैं, जो दिखाई नहीं देते; उन्हे आंख से नही बुद्धि से देखना पड़ता है। तो पेरियार साहब का यह प्रश्न निरा बालको वाला प्रश्न है। प्रत्युत् मुझे तो लगता है, कि वह कल्पनाओं में रहते थे, जैसे एक विक्षिप्त मनुष्य रहता है। वैसी ही कल्पनाओं में उन्होंने अनेक चिन्हित और अचिन्हित कल्पनाएं कर ली; जिसे उन्होंने भोले भाले लोगों के सिर पर रख दिया। उन्ही भोले लोगों में से कुछ लोग उनके अनुयाई हो गए। इन अनुयायियों को पेरियार से प्रश्न करना चाहिए, कि तुम्हारी 12 साल की नाबालिक बहन को देखकर तुम्हारे मन में जो वासना उठी ….क्या उस वासना को कोई देख सकता है …?तुम्हारी अपनी बेटी को, जो तुमसे 38 साल छोटी थी, उसे देखकर तुम्हारे मन में जो वासना उठी क्या वह दिख सकती थी।अपने अनन्य मित्र “मुदलियार” की विधवा पत्नी को देखकर तुम्हारे मन में जो वासना उठी… क्या उस वासना का कोई स्वरूप था….? किंतु वह मौजूद तो थी ना….इसलिए पहला प्रश्न पूरी तरह निरर्थक है।अब प्रश्न का दूसरा भाग जिसमें वह कहते हैं क्या तुम कायर हो, तो यह केवल गाली गलौच है। इसका उत्तर देने की मैं आवश्यकता नहीं समझता। धन्यवाद नमस्ते।


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