शंका- ईश्वर निराकार है तो ईश्वर द्वारा साकार जगत की रचना कैसे हुई?
समाधान- ईश्वर निराकार अर्थात आकार रहित है। इसमें कोई शंका नहीं है। जहाँ तक साकार जगत की रचना का प्रश्न है हम एक उदाहरण के माध्यम से उसे समझने का प्रयास करते है। विचार दो प्रकार के है व्यक्त एवं अव्यक्त। मान लीजिये एक व्यक्ति दूर से पुकार कर मुझे मेरे नाम से बुला रहा है। मैंने अपनी इन्द्रिय जैसे कि कान की सहायता से उसके विचार को सुना। यह व्यक्त विचार था जो वाह्य था और इन्द्रिय की सहायता से सुना गया। अब मैं अपना ही नाम अपने मन में पुकारता हूँ। किसी भी वाह्य इन्द्रियों का कोई प्रयोग नहीं हुआ। यह अव्यक्त विचार था। जो विचार अव्यक्त था वह बिना इन्द्रियों कि सहायता के संपन्न हुआ क्योंकि वह शरीर के भीतर ही हुआ । अब ईश्वर के गुण जानिये। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ईश्वर के विराट शरीर है। यजुर्वेद 40/5 में लिखा है ईश्वर सबके भीतर ओतप्रोत है अत: उसे अपने से बाहर कोई भी क्रिया नहीं करनी पड़ती। फिर उसे इन्द्रियों की क्या आवश्यकता है? श्वेताश्वतरोपनिषद् 3/19 में कहा है ईश्वर के हाथ-पैर नहीं है इसके बिना ही वह सर्वत्र प्राप्त है और सबको थाम रहा है। जिस प्रकार से मुख और प्राणादि साधनों के बिना भी ईश्वर मुख और प्राण आदि के कार्य कर सकता है उसी प्रकार के बिना हाथ के ईश्वर सृष्टि का निर्माण भी कर सकता है। यह सब निर्माण ईश्वर के भीतर ही हो रहा है। इसलिए अव्यक्त विचार के समान ईश्वर को इन्द्रिय आदि की कोई सहायता की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर के साकारत्व और सावयवत्व में संयोग होने से वियोग होना अनिवार्य होगा, क्योंकि संयोग और वियोग दोनों सहचर है। तब तो ईश्वर की मृत्यु भी माननी होगी जो असंभव है। इसलिए निराकार ईश्वर द्वारा सृष्टि की अपने भीतर रचना करना बिना इन्द्रियों द्वारा संभव एवं युक्तिसंगत है।