“द्रौपदी का चीरहरण” – भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का षड्यंत्र – पार्ट 2

जैसे की पिछली पोस्ट से स्पष्ट हुआ की “द्रौपदी का चीरहरण” मात्र कुछ धूर्तो की मिलावट का परिणाम है – क्योंकि महाभारत में द्रौपदी का चीरहरण जैसी कुत्सित घटना का होना एक असंभव कृत्य था – भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य आदि गुरुओ और विदुर जैसे महानितिनिपुण के होते – ये कार्य हो ही नहीं सकता था –
फिर भी यदि कुछ हिन्दू भाई इस पक्ष में नहीं हैं – यदि वो अभी भी कहते हैं की द्रौपदी का चीरहरण हुआ था – तो इस पोस्ट को भी ध्यानपूर्वक पढ़ – सत्य से अवगत होकर अपने दुराग्रह और पूर्वाग्रह को छोड़ – संस्कृति और सभ्यता को बदनाम करना छोड़ देवे –

आइये गतलेख से आगे थोड़ा और विस्तार से समझते हैं –

जब पांडव जुए में राज्य के साथ साथ अपने आप को और द्रोपदी को हार गए तब पांड्वो की स्थिति दासों की तरह और द्रोपदी की स्थिति दासी की तरह रह गयी थी , अतः अब उन्हें राजाओ अथवा राजकुमारों जैसे वस्त्र धारण करने का कोई अधिकार नहीं रह गया था । यही दशा द्रोपदी की भी थी , पर जब द्रोपदी सभा में लाई गयी , उस समय केवल पांडव उच्च कोटि और सज्जित वस्त्र धारण किये थे , और द्रौपदी ने केवल एक वस्त्र धारण किया हुआ था क्योंकि द्रौपदी उस समय रजस्वला थी। अतः उनसे उनके वस्त्र उतर के दासो और दासी के परिधान पहन लेने के लिए कहा गया।

द्रौपदी ने विरोध किया – क्यों की वो अपने आप को हारी हुयी नहीं मानती थी – द्रौपदी ने कहा – जब युधिष्ठर स्वयं अपने को हार गए तब किस प्रकार वे मुझे दांव पर लगाने का अधिकार रखते थे ?

द्रौपदी के प्रश्नो के उत्तर हेतु – विदुर ने सभासदो से पूछा – साथ में – धृतराष्ट्र का एक पुत्र “विकर्ण” स्वयं द्रौपदी के समर्थन में उत्तर आया – उसने भी यही कहा – जब युधिष्ठर स्वयं अपने को दांव पर लगा हार गए – तब किस प्रकार द्रौपदी को दांव लगाने का अधिकार युधिष्ठर के पास रहा ?

तब कोई जवाब ना पाकर – द्रौपदी हताश और निराश हो गयी – दुःशासन द्रौपदी को “दासी” कहकर सम्बोधित करने लगा – इतने में कर्ण ने अपने अनुचित वचनो से द्रौपदी को अनेक बुरे वचन कहकर दुःशासन को द्रौपदी और पांडवो के वस्त्र उतार लेने को कहा।

दु:शाशन ! यह विकर्ण अत्यंत मूढ़ है तथापि विद्वानों सी बाते बनाता है , तुम पांड्वो और द्रोपदी के भी वस्त्र उतर लो ”
द्यूतपर्व अध्याय ६८ श्लोक ३८

ध्यान देने की बात है की कर्ण केवल द्रोपदी के ही वस्त्र उतरने के लिए नहीं कहता वरन पांड्वो के भी वस्त्र उतरने के लिए कहता है । इस बात से स्पष्ट है की “द्रौपदी का चीरहरण” मात्र कुछ लोगो की “धूर्त मानसिकता” का परिणाम है।

असल में हुआ ये था की – पांडवो ने अपने वस्त्र उतार कर रख दिए और दासो के वस्त्र धारण किये होंगे –

वैशम्पायन जी कहते हैं – “जनमेजय ! कर्ण की बात सुन के समस्त पांड्वो ने अपने अपने राजकीय वस्त्र उतार कर सभा में बैठ गए ( सभा पर्व अध्याय 68, श्लोक 39)

क्योंकि द्रौपदी अपने को हारी नहीं मानती थी – इसलिए दुःशासन को जबरदस्ती द्रौपदी के कपडे बदलवाने हेतु विवश किया गया था – जिसे “धूर्तमंडली” व्याख्याकारों ने – चीरहरण का नाम दिया।

यदि एक बार ऐसा भी मान ले – की दुःशासन ने चीरहरण करने को द्रौपदी की साडी खींची और कृष्ण ने साडी को बढ़ा दिया – तो भाई जरा इस श्लोक पर भी एक सरसरी नजर डाल लेवे –

वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमेजय ! उस समय द्रौपदी के केश बिखर गए थे। दुःशासन के झकझोरने से उसका आधा वस्त्र भी खिसककर गिर गया था। वह लाज से गाड़ी जाती थी और भीतर ही भीतर दग्ध हो रही थी। उसी दशा में वह धीरे से इस प्रकार बोली

द्रौपदी ने कहा – अरे दुष्ट ! ये सभा में शास्त्रो के विद्वान, कर्मठ और इंद्र के सामान तेजस्वी मेरे पिता के सामान सभी गुरुजन बैठे हुए हैं। मैं उनके सामने इस रूप में कड़ी होना नहीं चाहती।

क्रूरकर्मा दुराचारी दुःशासन ! तू इस प्रकार मुझे ना खींच, ना खींच, मुझे वस्त्रहीन मत कर। इंद्र आदि देवता भी तेरी सहायता के लिए आ जाएँ, तो भी मेरे पति राजकुमार पांडव तेरे इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकेंगे।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ : ३५-३७

यदि कृष्ण ने साडी देकर नग्न होने से बचाया – तो भाई – इन श्लोक के अनुसार तो द्रौपदी अर्धनग्न हो चुकी थी – तभी क्यों नहीं बचा लिया ? या फिर जब दुःशासन बाल पकड़कर जबरदस्ती द्रौपदी को खींच रहा था – और द्रौपदी कृष्ण को आवाज़ लगा बुला रही थी – तब ही क्यों नहीं कृष्ण ने बचा लिया ?

क्या कृष्ण जी इस बात का इन्तेजार कर रहे थे की – कब दुःशासन साडी खींचे और मैं चमत्कार दिखाऊ ?

क्या कृष्ण द्रौपदी की पहली आवाज़ सुनकर ही नहीं बचा सकते थे ? यदि पहली आवाज़ पर ही बचा लिया होता – तो ये धूर्तो ने जो मिलावट करने की कोशिश की – वो होती ही नहीं –

आगे देखिये –

वनपर्व मेँ जब श्रीकृष्ण जंगल मेँ पांडवोँ से मिलने गए थे। वहाँ श्रीकृष्ण ने बताया की वेँ द्युतसभा मेँ जो कुछ भी हुआ था उससे अनभिज्ञ है। उन्होने ये भी कहा की अगर वेँ वहाँ मौजुद होते तो युधिष्ठिर को ऐसा कभी नही करने देतेँ। युधिष्ठिर ने पुछा की उस वक्त वेँ कहाँ थे तब श्रीकृष्ण ने बताया की उस वक्त शाल्व ने अपने प्रचंड ‘सौभ’ विमान से द्वारका पर उपर से बमबारी शुरु कर द्वारका जला रहा था, इसलिए श्रीकृष्ण उसे मारने के लिए गए थे, जब वो विमान का संहार करके वापिस आए तब उन्हे सात्यकी से खबर मिली की द्युतसभा मेँ युधिष्ठिर जुए मेँ सारा राज्य हार गया और इसलिए वेँ दौडते पांडवोँ से मिलने जंगल मेँ आए।

आगे किसी जगह दु:खी द्रौपदी भी युधिष्ठिर, अर्जुन और अपने भाई को कोसते हुए कहती है की उनमेँ से कोई भी उसकी विटंबना रोकने नहीँ आया इसलिए उनमेँ से कोई भी उसका अपना नहीँ है। वो उधर खडे श्रीकृष्ण को भी कहती है की तुम भी मेरी मदद के लिए नहीँ आए इसलिए कृष्ण तुम भी मेरेँ नहीँ। अगर कृष्णने सचमेँ वस्त्रावतार लिया था तब द्रौपदी क्या उन्हे ऐसे शब्द कहती?

ये सारी घटनाओ से ज्ञात होता है की द्रौपदी का चीरहरण हुआ नहीं था – मात्र कुछ धूर्तो ने कृष्ण के चमत्कार को दर्शाने के लिए ये सब मनगढ़ंत बात गढ़ी है –

एक आखरी पोस्ट और आएगी – जिसमे इस द्यूतपर्व में मिलावट की पूरी स्थति आपके सामने आ जाएगी

अपनी सभ्यता और संस्कृति पर स्वयं ही मिथ्या दोष न गढ़े।

कृपया सत्य को जानिये –

 

वेदो की और लौटिए

9 thoughts on ““द्रौपदी का चीरहरण” – भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का षड्यंत्र – पार्ट 2”

    1. ji bilkul… hamara prayas rahega jald se jald is par lekh likhaa jaaye.. waise mujhe yaad aa raha hai ek lekh hai site par is baare me…. bahut jyada lekh hone ke kaaran yaad nahi rahta hai ji…

  1. Amit jee,

    Ye site par search karne me dikkat ho rahi hai. kyonki hindi lekh search karna mushkil ho raha hai. Aapne catalog bana kar rakkhe parantu har article ko search karna saral nahi hai.

    – Dhanyawad

    1. जी हम केटेगरी बनाकर ही आर्टिकल डालते हैं |
      सुझाब के लिए धन्यवाद |

  2. तुम लोगों की हालत तो दिल्ली के नेता केजरीवाल के जैसी है जिसके मन में हमेशा शंका ही बनी रहती है। जब वो हार गया तो उस को ईवीएम पर ही शंका होगयी। जो महाभारत जैसे ग्रंथ में तुम्हारी कपोल कल्पना से मिलावट कर सकता है वो कम से कम तुमसे ज्यादा होशियार तो होगा ही।अहंकार के कारण सायद तुम ना मानो। तुम जिस अखंड निराकार परब्रह्म परमात्मा की बात अब करते हो। उसे कृष्ण ही ने तुम्हारे वेदों के कल्पना वाले जिसे न देखा जासकता है न सुना जा सकता है जिसे हम जैसे साधारण लोग कभी सोच भी नहीं सकते उस परमात्मा को तुम्हारी ओछी बुद्धि के कारण जिसे तुम साधारण मानव मानते हो उसी कृष्ण ने उस तुम्हारे साधारण मानव और भक्तों के ईश्वर ने लाकर कुरूक्षेत्र में खडा़ करदिया था तुम्हारा वो परमात्मा मेरे श्री कृष्णा ठाकुर जी के आगे इतना मजबूर था कि कृष्ण अर्जुन से कहते है तुझे जो कुछ भी देखना है सो मुझमें देख और जो तूने पहले कभी नही देखा वो भी मुझ में देख और अर्जुन ने उन के मन में जो आया वही देखा भी और तुम्हारा वो अखण्ड स्वरूप परमात्मा वो सब अर्जुन को दिखाता गया जो कौन्तेय ने देखना चाहा तो क्या वो परमात्मा श्री कृष्ण का नोंकर था अथवा श्री कृष्ण ही परमात्मा थे किस बात को मानेगी तुम्हारी बुद्धि। परन्तु तुम ने जो धर्म अपनाया है उसमें धर्म कम हैं शंकाऐं कपोल कल्पनाऐं ज्यादा हें तुम सत्यता कभी नही जान सकते हो क्योंकि तुम्हारी बुद्धि सत्य जानना ही नही चाहती।

  3. aur han main vedon ki buraee to swapn main bhi isaliye nahin kar sakata hun kyon ki ved hi mera sampoorn jeevan hai mere gaanw (village) ke aasram par vedon ka pathh padhaya jata hai.
    so welcome my all fr.

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