डा अम्बेडकर का खंडन प. शिवपूजन सिंह कुशवाह द्वारा भाग २

पिछले लेख में शिवपूजन सिंह जी द्वारा अम्बेडकर साहब के अछूत कौन ओर केसे का खंडन हमने प्रकाशित किया था अब शुद्रो की खोज की उन बातो के खंडन का अंश जो अम्बेडकर जी ने वैदिक विचारधरा पर आक्षेप किया था उसका प्रत्युतर है |
डा. अम्बेडकर – पुरुष सूक्त ब्राह्मणों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रक्षिप्त किया है | कोल बुक का कथन है कि पुरुष सूक्त छंद तथा शैली में शेष ऋग्वेद से सर्वथा भिन्न है |अन्य भी विद्वानों का मत है कि पुरुष सूक्त बाद का बना है |
शिवपूजन सिंह जी – आपने जो पुरुष सूक्त पर आक्षेप किया है ये आपकी वेद की अनभिज्ञता प्रकट करता है |आधिभौतिक दृष्टि से चारो वर्णों के पुरुषो का समुदाय एक पुरुष रूप है | इस समदाय पुरुष या राष्ट्र पुरुष के यथार्थ परिचय के लिए पुरुष सूक्त के मुख्य मन्त्र -ब्राह्मणोंsस्य मुखमासीत …(यजु ३९/११)
पर विचार करना चाहिय | उक्त मन्त्र में कहा है ब्राह्मण मुख है, क्षत्रिय भुजाय, वैश्य जंघाए,शुद्र पैर ,,केवल मुख पुरुष नही ,भुजाय पुरुष नही ,जंघाए पुरुष नही ,पैर पुरुष नही अपितु मुख ,भुजाय ,जंघाए ,पैर इन सबका समुदाय पुरुष है | वह समुदाय भी यदि असंगत ,या क्रमरहित अवस्था में है तो उसे हम पुरुष नही कह सकते है | उसे पुरुष तभी कहेंगे जब वो एक विशेष प्रकार के क्रम में हो ओर विशेष प्रकार से संगठित हो |राष्ट्र में मुख के स्थापन ब्राह्मण है ,भुजाओं के क्षत्रिय ,जंघाओं के वैश्य ओर पैरो के शुद्र | राष्ट्र के ये चारो वर्ण जब शरीर के मुख आदि अवयवो की तरह व्यवस्थित ओर सुसंगत हो जाते है तभी इनकी पुरुष संज्ञा है | अव्यवस्थित तथा छीनभिन अवस्था में स्थित मनुष्य समुदाय को पुरुष नही पुकार सकते है | आधिभौतिक दृष्टि में यह सुव्यवस्थित तथा एकता के सूत्र में पिरोया हुआ ज्ञान ,क्षात्र , व्यवसाय तथा परिश्रम – मजदूरी इनका निर्दशक जनसमुदाय ही एक पुरुष रूप है |
चर्चित मन्त्र का मह्रिषी दयानद इस प्रकार अनुवाद करते है ” इस पुरुष की आज्ञा के अनुसार विद्या आदि उत्तम गुण तथा सत्य भाषण ओर सत्योपदेश आदि श्रेष्ट कर्मो से ब्राह्मण वर्ण उत्पन्न होता है |इन गुण कर्मो के सहित होने से वह पुरुष उत्तम कहलाता है और ईश्वर ने बल पराक्रमयुक्त आदि पूर्वोक्त गुणों से क्षत्रिय को उत्पन्न किया | इस पुरुष के उपदेश से खेती,व्यापर ओर सब देशो की भाषाओ को जानना तथा पशुपालन आदि मध्यम गुणों से वैश्य वर्ण सिद्ध होता है | जैसे पग सबसे नीचे का गुण है वैसे मुर्खता आदि गुणों से शुद्र वर्ण सिद्ध होता है |
आपका लिखना की पुरुष सूक्त बहुत बाद में वेदों में जोड़ दिया गया सर्वथा भ्रमपूर्ण है | चारो वेद ईश्वर का ज्ञान है पुरुष सूक्त बाद का नही है | मैंने अपनी पुस्तक ऋग्वेद के १० मंडल पर पाश्चताप विद्वानों का कुठाराघात में सम्पूर्ण ” पाश्चताय और प्राच्य विद्वानों का खंडन किया है |
डा. अम्बेडकर – शुद्र क्षत्रियो के वंशज होने से क्षत्रिय है | ऋग्वेद में सुदास, शिन्यु, तुरवाशा, त्र्प्सू , भरत आदि शुद्रो के नाम आये है |
प.शिवपूजन सिंह जी – वेदों के सभी शब्द यौगिक है रूढ़ नही | आपने ऋग्वेद में जिन नामो को प्रदर्शित किया है | वे ऐतिहासिक नाम नही है| वेद में इतिहास नही है क्यूंकि वेद सृष्टि के आरम्भ में दिया ज्ञान है|
डा.अम्बेडकर – छत्रपति शिवाजी शुद्र तथा राजपूत हूणों की सन्तान है |
प.शिवपूजन सिंह जी – शिवाजी शुद्र नही वरन क्षत्रिय थे | इसके लिए अनेको प्रमाण इतिहास में भरे पड़े है | राजस्थान के प्रख्यात इतिहासक ,महोपाध्याय डा. गौरी शंकर हरीचंद औझा लिखते है – मराठा जाति दक्षिणी हिन्दुस्तान की रहने वाली है | इनके प्रसिद्ध राजा क्षत्रपति शिवाजी का मूल मेवाड़ का सिसोदिया राज्य वंश ही है | कविराज श्यामलदासजी लिखते है कि -शिवाजी महाराणा अजयसिंह के वंश में थे | यहो सिद्धांत बालकृष्ण ,लिट् आदि का है | इसी प्रकार राजपूत हूणों की सन्तान नही शुद्ध क्षत्रिय थे | श्री चिंतामणी विनायक वेद्य ऍम ए ,श्री ई.बी.कावेल ,श्री शेरिंग, श्री वहीलर, श्री हंटर, श्री क्रुक ,पंडित नागेब्द्र भट्टाचार्य आदि विद्वान् राजपूतो को शुद्ध क्षत्रिय मानते है| प्रिवी कौंसिल ने निर्णय किया है कि जो क्षत्रिय भारत में रहते है और राजपूत एक ही श्रेणी के है |
इस तरह उन्होंने अपने खंडन अम्बेडकर जी को भी पंहुचाय लेकिन अम्बेडकर जी इसके ५ साल ओर ३ माह बाद चल बसे | उन्होंने इसका प्रत्युतर भी नही दिया ओर ना ही अपनी जिद्द के कारण अपनी उन दोनों किताबो में कोई परिवर्तन किया |

3 thoughts on “डा अम्बेडकर का खंडन प. शिवपूजन सिंह कुशवाह द्वारा भाग २”

  1. यदी शिवाजी शुद्र न होता तो राज्य भीसषेक विधि के लिये काशी के गागभट को क्यों लाना पड़ा.
    इस बात से किसी भी अज्ञानी को समझाना मुश्किल नही की महाराष्र्ट के सभी ब्राम्हण शिवाजी विरोधी थे पर यह बात आपके पल्ले नही पडेगी .आज भी महाराष्ट्र के कुछ मराठा संघठन ‘शुद्र कौन…’ से अभिप्रेरित है . और ब्राम्हण विरोधी है.

    1. जनाब शिव जी क्षत्रिय थे मगर आप जैसे मुर्ख लोग ही उन्हें शुद्र बोल सकते हैं | हमें उन पर गर्व करना चाहिए मगर आप जैसे लोग ही उन्हें अपमानित करते हैं |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *