चतुर्भुज नारायण के दर्शन
एक सहजानंद नामा पुरूष अयोध्या के समीप एक ग्राम का जन्मा हुआ था वह ब्रह्मचारी होकर गुजरात, काठियावाड़, कच्छभुज, आदि देशो मे फिरता था उसने देखा कि यह देश मुर्ख और भोला-भाला है चाहे जैसे इनको अपने मत मे झुका ले वैसे ही यें लोग झुक सकते है वहा उन्होंने दो चार शिष्य बनाए उनमे आपस मे सम्मति कर यह प्रसिद्ध किया कि सहजानंद नारायण का अवतार और बड़ा सिध्द पुरूष है और भक्तो को साक्षात शंख, चक्र, गद्या, धारण किए हुए अपने चतुर्भुज रूप मे दर्शन भी देता है एक बार काठियावाड़ मे किसी काठी अर्थात् जिसका नाम दादाखाचर गढ़डे का भूमिया (जमीदार) था उसको शिष्यो ने कहा कि तुम चतुर्भुज नारायण का दर्शन करना चाहो तो हम सहजानंद जी से प्रार्थना करेंगे उसने कहा बहुत अच्छी बात है वह भोला आदमी था । एक कोठरी मे सहजानंद ने सिर पर मुकुट धारण कर और शंख, चक्र अपने हाथ मे ऊपर को धारण किया और दूसरा आदमी उनके पीछे खड़ा रहकर गदा पद्म अपने हाथ मे लेकर सहजानंद की बगल मे से आगे को हाथ निकाल चतुर्भुज नारायण के तुल्य बनठन गए । दादाखाचर से सहजानंद के चेलो ने कहा आंख उठा देखकर फिर आंख मूंद लेना और झट इधर को चले आना जो बहुत देखोगे तो नारायण कोप करेंगे अर्थात् चेले के मन मे यह था कि हमारे कपट की परिक्षा ना लेवे उसको ले गए वह सहजानंद कलाबत्तू और चमचमाते हुए रेशम के कपड़े धारण कर रहा था अंधेरी कोठरी मे खड़ा था उसके चेलो ने एकदम लालटेन से कोठरी की ओर उजाला कर दिया दादाखाचर ने देखा तो चतुर्भुज साक्षात नारायण भगवान दिख गए फिर चेलो ने झट लालटेन को आड़ मे कर दिया वे सब पीछे की ओर गिर, नमस्कार कर दूसरी ओर के रास्ते से निकल चले आए और उसी समय बीच मे बातचीत शुरू कर दी कि तुम्हारा तो धन्य भाग्य है भगवान नारायण ने तुम्हे साक्षात अपने चतुर्भुज रूप मे प्रकट होकर दर्शन दिए है अब तुम महाराज भगवान सहजानंद जी के शिष्य बन जाओ कृपा बरसेगी उसने कहा बहुत अच्छी बात है जब तक वे सहजानंद के कक्ष मे गए उसके पहले ही दूसरे रास्ते से सहजानंद अपने वास्तविक वस्त्र पहन कर कक्ष मे आ बैठा था तब चेलो ने कहा कि देखो अब दूसरा रूप धारण करके यहा विराजमान है ।
(सत्यार्थ प्रकाश एकादश समुल्लास )
प्रस्तुतकर्ता :- दीपक कुमार झा