नास्तिक मित्र
द्वारा अपने आक्रोशित मन से सृष्टि की पूर्णता पर प्रश्नचिन्ह लगाने का असफल प्रयास किया गया । उनके प्रश्नों की समीक्षा देखते है ।
दावा –
जैसे हम जानते हैं की प्रथ्वी आग का गोला थी और ठंढे होने पर इसपर जीवन आरम्भ हुआ । यदि हम यह माने की पृथ्वी ईश्वर द्वारा बनाया हुआ घर है तो जिसपर हम निवास करते हैं ,तो ईश्वर ने सीधा सीधा पृथ्वी को आज जैसा ही क्यों न बना दिया? आग का गोला बना के लाखो साल बाद इंसान को क्यों बनाया? ईश्वर ने सीधा सीधा रहने लायक बना के इंसान की उत्पत्ति क्यों नहीं की?
—–——————-
समीक्षा – वाह क्या मुर्खता की पराकाष्ठा दिखाई है ? इन महाशय का कहना है की ईश्वर ने इतना समय लिए बिना सीधा पृथ्वी और मनुष्य को उत्पन्न क्यूँ नही किया ?? मैं पूछता हु की हालांकि यह विग्यांविरुद्ध , सृष्टिं नियम विरुद्ध है फिर भी अगर इश्वर ऐसा कर भी दे तो ये नास्तिक फिर भी कहेंगे की ईश्वर ने जब सीधा पृथ्वी को ही बना दिया तो हम इंसानों के लिए आवश्यक सामग्री भी बना देता जैसे की विज्ञान के आविष्कार यथा car , skooter , mobile , train इत्यादि । पुनः यदि ऐसा संभव है तो सीधा प्रलय भी क्योंकर न हो ?
नियमबद्धता का ही नाम विज्ञान है , पुनः आधुनिक विज्ञानं को ही सब कुछ मानने वाले नास्तिक इसी विज्ञानं को ही नहीं जानते । यदि ईश्वर सीधा पृथ्वी को बना दे तो जो वैज्ञानिक सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया खोज रहे है वो कभी सफल हो पायेंगे जब पृथ्वी बिना नियमबद्धता के ही अस्तित्व में आ गयी हो ? पुनः उन महान वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ का कोई फल ना मिलने पर ये नास्तिक इस अन्याय का दोष भी ईश्वर पर थोपने से बाज नहीं आयेंगे ।
लगता है नास्तिक जी ने ईश्वर को कुरान का अल्ला समझ रखा है ।
—————————
दावा –
पृथ्वी 100% परफेक्ट नहीं है यंहा कंही समुन्द्र ही समुन्द्र है, तो कंही रेत ही रेत तो कंही जंगल ही जंगल। जापान में जंहा रोज भूकंप आते हैं तो अरब जैसे देशो में पानी ही नहीं जबकि चेरापुंजी में वर्षा ही वर्षा होती है । कंही लोग सूखे से मर रहे हैं तो कंही लोग बाढ़ से , कंही ज्वालामुखी फटते रहते हैं । कंही हजारो फिट खाइयाँ हैं तो कंही हजारो फिट पहाड़ जंहा रहना संभव नहीं। कंही बिजली गिरने से लोग मारे जाते हैं,क्या मारे जाने वाले लोग ईश्वर के बच्चे नहीं हैं?
—————————–
समीक्षा –
इनका कथन है की पृथ्वी 100 % perfect नही है कहीं समुन्द्र ही समुन्द्र तो कही मरुस्थल व् कही खाई
ऐसा होना ये imperfection मानते है मैं पूछना चाहता हु की आप के अनुसार क्या होना चाहिए ? कैसे पृथ्वी को design करना चाहिए था ??
चलिए ईश्वर की रचना के विपरीत कल्पना करके देखते है क्या होगा ?
समुद्र की स्थिति की कितनी सम्भावनाए हो सकती है
सम्पूर्ण पृथ्वी पर समुद्र ही होता तो सिर्फ जलीय जीव ही रह पाते पुनः मनुष्य व अन्य जानवरों को आप कहाँ रखते केशव जी अरे इन जीवो व मनुष्यों की छोडिये आप खुद कहाँ रहते?
एक सम्भावना यह भी है सिर्फ थोड़े ही मात्र में बहुत जगहों पर जल हो
लेकिन यहाँ प्रश्न फिर से होगा की बड़े या छोटे अनेकों समुद्री जीवों का थोड़े ही जल में रहना कैसे सम्भव होता ? पुनः थोड़े ही जल में रहना उन जीवों के लिए बंधन रूप होगा स्वतंत्रता नहीं होगी जो की उनके लिए अन्याय होगा ।
समुद्र ही नही होता बल्कि थल ही होता तो भी जलीय जीवों को कैसे रखते ?
इसीलिए समुद्र व थल दोनों की अवश्यकता रहेगी । किसी निश्चित मात्र में ही समुद्र होगा ।
जैसे हम जानते हैं की प्रथ्वी आग का गोला थी और ठंढे होने पर इसपर जीवन आरम्भ हुआ । यदि हम यह माने की पृथ्वी ईश्वर द्वारा बनाया हुआ घर है तो जिसपर हम निवास करते हैं ,तो ईश्वर ने सीधा सीधा पृथ्वी को आज जैसा ही क्यों न बना दिया? आग का गोला बना के लाखो साल बाद इंसान को क्यों बनाया? ईश्वर ने सीधा सीधा रहने लायक बना के इंसान की उत्पत्ति क्यों नहीं की?
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समीक्षा – वाह क्या मुर्खता की पराकाष्ठा दिखाई है ? इन महाशय का कहना है की ईश्वर ने इतना समय लिए बिना सीधा पृथ्वी और मनुष्य को उत्पन्न क्यूँ नही किया ?? मैं पूछता हु की हालांकि यह विग्यांविरुद्ध , सृष्टिं नियम विरुद्ध है फिर भी अगर इश्वर ऐसा कर भी दे तो ये नास्तिक फिर भी कहेंगे की ईश्वर ने जब सीधा पृथ्वी को ही बना दिया तो हम इंसानों के लिए आवश्यक सामग्री भी बना देता जैसे की विज्ञान के आविष्कार यथा car , skooter , mobile , train इत्यादि । पुनः यदि ऐसा संभव है तो सीधा प्रलय भी क्योंकर न हो ?
नियमबद्धता का ही नाम विज्ञान है , पुनः आधुनिक विज्ञानं को ही सब कुछ मानने वाले नास्तिक इसी विज्ञानं को ही नहीं जानते । यदि ईश्वर सीधा पृथ्वी को बना दे तो जो वैज्ञानिक सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया खोज रहे है वो कभी सफल हो पायेंगे जब पृथ्वी बिना नियमबद्धता के ही अस्तित्व में आ गयी हो ? पुनः उन महान वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ का कोई फल ना मिलने पर ये नास्तिक इस अन्याय का दोष भी ईश्वर पर थोपने से बाज नहीं आयेंगे ।
लगता है नास्तिक जी ने ईश्वर को कुरान का अल्ला समझ रखा है ।
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दावा –
पृथ्वी 100% परफेक्ट नहीं है यंहा कंही समुन्द्र ही समुन्द्र है, तो कंही रेत ही रेत तो कंही जंगल ही जंगल। जापान में जंहा रोज भूकंप आते हैं तो अरब जैसे देशो में पानी ही नहीं जबकि चेरापुंजी में वर्षा ही वर्षा होती है । कंही लोग सूखे से मर रहे हैं तो कंही लोग बाढ़ से , कंही ज्वालामुखी फटते रहते हैं । कंही हजारो फिट खाइयाँ हैं तो कंही हजारो फिट पहाड़ जंहा रहना संभव नहीं। कंही बिजली गिरने से लोग मारे जाते हैं,क्या मारे जाने वाले लोग ईश्वर के बच्चे नहीं हैं?
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समीक्षा –
इनका कथन है की पृथ्वी 100 % perfect नही है कहीं समुन्द्र ही समुन्द्र तो कही मरुस्थल व् कही खाई
ऐसा होना ये imperfection मानते है मैं पूछना चाहता हु की आप के अनुसार क्या होना चाहिए ? कैसे पृथ्वी को design करना चाहिए था ??
चलिए ईश्वर की रचना के विपरीत कल्पना करके देखते है क्या होगा ?
समुद्र की स्थिति की कितनी सम्भावनाए हो सकती है
सम्पूर्ण पृथ्वी पर समुद्र ही होता तो सिर्फ जलीय जीव ही रह पाते पुनः मनुष्य व अन्य जानवरों को आप कहाँ रखते केशव जी अरे इन जीवो व मनुष्यों की छोडिये आप खुद कहाँ रहते?
एक सम्भावना यह भी है सिर्फ थोड़े ही मात्र में बहुत जगहों पर जल हो
लेकिन यहाँ प्रश्न फिर से होगा की बड़े या छोटे अनेकों समुद्री जीवों का थोड़े ही जल में रहना कैसे सम्भव होता ? पुनः थोड़े ही जल में रहना उन जीवों के लिए बंधन रूप होगा स्वतंत्रता नहीं होगी जो की उनके लिए अन्याय होगा ।
समुद्र ही नही होता बल्कि थल ही होता तो भी जलीय जीवों को कैसे रखते ?
इसीलिए समुद्र व थल दोनों की अवश्यकता रहेगी । किसी निश्चित मात्र में ही समुद्र होगा ।
पुनः उपरी वर्णित बातें थल व् रेगिस्तान के बारे में भी समझ लीजियेगा ।
रेगिस्तान में भी जीव रहते है ।
ज्वालामुखी से ही पहाड़ बनते है और सब जानते ह की पहाड़ कितने उपयोगी है खनिज पदार्थ प्राप्त होते है , हमरे घर बनाने में उपयोगी है , सड़कें बनाने में और मुख्यतः नदियाँ पहाड़ों से बहकर समुद्र में मिलती है व् नदियों का पानी पीने के लिए उपयोग होता है अगर केशव जी के अनुसार ईश्वर पहाड़ नहीं बनता तो नदियों को बहाव देने के लिए क्या आपके तथाकथित महात्मा बुद्ध को बुलाना पड़ता ??
इस से पता चला कहीं समुद्र ,कहीं पहाड़ कही थल ऐसी व्यवस्था ही सही होगी ।
आपने प्रश्न करने से पहले यह भी न सोचा की ये सभी समुद्र व् पहाड़ एक दुसरे से किस प्रकार सम्बन्ध रखते है ।आपकी बुद्धि की क्या दाद दें ?
प्रत्येक विज्ञानं व् सामान्य ज्ञान का विद्यार्थी भी जानता है की पर्यावरण विज्ञानं के अनुसार इन बाढ़ , भूकंप , सूखे के लिए हम इंसान ही उत्तरदायी है प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने के कारण ।
नास्तिक जी कृपया पुनः पर्यावरण विज्ञानं पढने की कोशिश करें ।
नास्तिक जी आपको हर जगह रहने की ही फ़िक्र सता रही है ??
हर जगह सिर्फ रहने के लिए ही नही होती ।
यहाँ पर एक और बात है केशव जी हर जगह सुरक्षा पर अपनी चिंता जता रहे है अब इनको बताते है की पूर्ण सृष्टि में आपकी किस प्रकार सुरक्षा भी की गयी है ।
पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सूर्य , चन्द्रमा व् बृहस्पति गृह का भी भूमिका है
जब भी कोई उल्कापिंड आता है तो पहले उसे बृहस्पति गृह अपने गुरुत्व बल से खिंच लेता यदि वह पृथ्वी की सीमा में आ भी जाये तो उसे चन्द्रमा के गुरुत्व बल से सामना करना पड़ता है व् कुछ उल्कापिंड सूर्य में समा जाते है । अब यदि पृथ्वी पर भी गिरे तो अधिकतर भाग समुद्र , रेगिस्तान , खाई आदि है व् अधिकतर उल्का पिंड भी यही गिरते है । अब देखिये ईश्वर की व्यवस्था में इनका कितना उपयोग है ? यही नही पृथ्वी की सीमा में प्रवेश करते ही वायुमंडल के अत्यधिक घर्षण से बड़ा उल्का पिंड ध्वस्त होकर कई भागों में विभक्त हो जाता है ।
कहिये नास्तिक जी कैसी लगी सृष्टि की पूर्णता ।
दावा -आस्तिको का तर्क है की सभी चीजो का रचियेता ईशश्वर है और उसकी प्रत्येक रचना का कुछ उद्देश्य होता है ,तो हैजे, एड्स, केंसर आदि के सूक्ष्म जीवाणु को किस उद्देश्य से बनाया है ईश्वर ने?
मरे हुए बच्चो को किस उदेश्य से पैदा करता है ईश्वर?
जैसा की सभी जानते हैं की मानव शरीर में लगभग 200 रचनाये ऐसी हैं जिनका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं जैसे अपेंडिक्स , अब यदि हमें ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर कैसे यह मुर्खता बार बार करता जा रहा है और अनुपयोगी चीजो को बनता जा रहा है?
कैसा परफेक्ट ईश्वर है?
——————————-
समीक्षा –
यह सवाल पूछ कर आपने बहुत अच्छा किया ताकि इस के उत्तर में नास्तिकों के कुकृत्य के बारे में भी बता दिया जाये ।
aids का virus एक चिम्पांजी और मनुष्य के यौन सम्बन्ध से पैदा हुआ था
इस बारे में यह धारणा भी ह की चिम्पांजी का मांस खाने पर यह वायरस mutation से बढ़ कर aids का virus बन गया था
व एक और धरना है की us america में सबसे पहले समलैंगिक पुरुषों में यह पाया गया
रेगिस्तान में भी जीव रहते है ।
ज्वालामुखी से ही पहाड़ बनते है और सब जानते ह की पहाड़ कितने उपयोगी है खनिज पदार्थ प्राप्त होते है , हमरे घर बनाने में उपयोगी है , सड़कें बनाने में और मुख्यतः नदियाँ पहाड़ों से बहकर समुद्र में मिलती है व् नदियों का पानी पीने के लिए उपयोग होता है अगर केशव जी के अनुसार ईश्वर पहाड़ नहीं बनता तो नदियों को बहाव देने के लिए क्या आपके तथाकथित महात्मा बुद्ध को बुलाना पड़ता ??
इस से पता चला कहीं समुद्र ,कहीं पहाड़ कही थल ऐसी व्यवस्था ही सही होगी ।
आपने प्रश्न करने से पहले यह भी न सोचा की ये सभी समुद्र व् पहाड़ एक दुसरे से किस प्रकार सम्बन्ध रखते है ।आपकी बुद्धि की क्या दाद दें ?
प्रत्येक विज्ञानं व् सामान्य ज्ञान का विद्यार्थी भी जानता है की पर्यावरण विज्ञानं के अनुसार इन बाढ़ , भूकंप , सूखे के लिए हम इंसान ही उत्तरदायी है प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने के कारण ।
नास्तिक जी कृपया पुनः पर्यावरण विज्ञानं पढने की कोशिश करें ।
नास्तिक जी आपको हर जगह रहने की ही फ़िक्र सता रही है ??
हर जगह सिर्फ रहने के लिए ही नही होती ।
यहाँ पर एक और बात है केशव जी हर जगह सुरक्षा पर अपनी चिंता जता रहे है अब इनको बताते है की पूर्ण सृष्टि में आपकी किस प्रकार सुरक्षा भी की गयी है ।
पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सूर्य , चन्द्रमा व् बृहस्पति गृह का भी भूमिका है
जब भी कोई उल्कापिंड आता है तो पहले उसे बृहस्पति गृह अपने गुरुत्व बल से खिंच लेता यदि वह पृथ्वी की सीमा में आ भी जाये तो उसे चन्द्रमा के गुरुत्व बल से सामना करना पड़ता है व् कुछ उल्कापिंड सूर्य में समा जाते है । अब यदि पृथ्वी पर भी गिरे तो अधिकतर भाग समुद्र , रेगिस्तान , खाई आदि है व् अधिकतर उल्का पिंड भी यही गिरते है । अब देखिये ईश्वर की व्यवस्था में इनका कितना उपयोग है ? यही नही पृथ्वी की सीमा में प्रवेश करते ही वायुमंडल के अत्यधिक घर्षण से बड़ा उल्का पिंड ध्वस्त होकर कई भागों में विभक्त हो जाता है ।
कहिये नास्तिक जी कैसी लगी सृष्टि की पूर्णता ।
दावा -आस्तिको का तर्क है की सभी चीजो का रचियेता ईशश्वर है और उसकी प्रत्येक रचना का कुछ उद्देश्य होता है ,तो हैजे, एड्स, केंसर आदि के सूक्ष्म जीवाणु को किस उद्देश्य से बनाया है ईश्वर ने?
मरे हुए बच्चो को किस उदेश्य से पैदा करता है ईश्वर?
जैसा की सभी जानते हैं की मानव शरीर में लगभग 200 रचनाये ऐसी हैं जिनका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं जैसे अपेंडिक्स , अब यदि हमें ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर कैसे यह मुर्खता बार बार करता जा रहा है और अनुपयोगी चीजो को बनता जा रहा है?
कैसा परफेक्ट ईश्वर है?
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समीक्षा –
यह सवाल पूछ कर आपने बहुत अच्छा किया ताकि इस के उत्तर में नास्तिकों के कुकृत्य के बारे में भी बता दिया जाये ।
aids का virus एक चिम्पांजी और मनुष्य के यौन सम्बन्ध से पैदा हुआ था
इस बारे में यह धारणा भी ह की चिम्पांजी का मांस खाने पर यह वायरस mutation से बढ़ कर aids का virus बन गया था
व एक और धरना है की us america में सबसे पहले समलैंगिक पुरुषों में यह पाया गया
अब उपरोक्त तीनो कारणों से स्पष्ट हुआ की aids का virus सृष्टि नियम विरुद्ध मुर्खता के कार्यों का परिणाम था लेकिन यह स्वार्थी मनुष्य चार्वाक के अनुयायी जिन्हें यौन ही सब कुछ दिखे वो ईश्वर पर इसका दोष लगाने में कैसे पीछे हटेंगे ??
बाकी जीवाणु भी इसी प्रकार सृष्टि नियमविरुद्ध कार्यों का ही परिणाम है ।
बाकी जीवाणु भी इसी प्रकार सृष्टि नियमविरुद्ध कार्यों का ही परिणाम है ।
नास्तिक जी मरे हुए बच्चों का विषय तो कर्मफल का है यह विषयांतर प्रश्न उठाकर भागने का असफल प्रयास न करियेगा ।
apandix का अवश्य कोई कार्य है ही वर्ना अधिक वजन उठाने पर ये ख़राब क्यूँ होती ?
यदि madical science शरीर विज्ञानं पूरा जानती तब तो यह प्रश्न उठ सकता था लेकिन अभी तो विज्ञानं को और भी बातें खोजनी है इसलिए आपका यह तथ्य बालू की रेत से बनाये महलों के सामान ध्वस्त होता है ।
अब आप ये निर्णय कर लें की मुर्खता किसने की है ?
दावा -आस्तिक कहते हैं सूरज समय पर उगता है, प्रथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, 24 घंटे में अपना चक्कर पूरा करती है,ग्रहों का अपने परिक्रमापथ पर एक निर्धारति गति से घूमना आदि ईश्वर के नियम हैं।
पर, यह तर्क भी तर्कहीन है और आस्तिको के अल्पज्ञान का परिचारक है ।
गंभीरता से सोचने पर हम पाते हैं की प्रतिदिन सूर्य के उगने और अस्त होने में एक आध मिनट का फर्क रहता है ,फर्क इतना है की सर्दियों में राते 13 घंटे की तक की हो जाती है और इतने ही समय का दिन हो जाता है गर्मियों में ।
इसी प्रकार पृथ्वी कभी भी 365 दिन में सूर्य की परिक्रमा नहीं पूरी कर पाती है , समय घटता बढ़ता रहता है।
तो फिर यह कहना की सृष्टि ईश्वर के नियम से चल रही है सरासर मुर्खता है। एक प्रश्न और उठता है यंहा की यदि ईश्वर ने सृष्टि को नियमों से बाँधा हुआ है तो ईश्वर के लिए कौन नियम निर्धारित करता है?
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समीक्षा- पहली बात कि जो आस्तिक यह बात कहते है वह अपने सामान्य ज्ञान के अनुसार नियमबद्धता को जानकर ऐसा कहते है इस हिसाब उनका कहना सही भी है ।
लेकिन यहाँ जो तथ्य दिखाए गए है उनसे नियमबद्धता टूटती नही देखते है कैसे ?
हम आधुनिक विज्ञान के कारण जानकर पता करते है की ऐसा क्यूँ होता है तो हमारा विश्वाश ईश्वर के प्रति और दृढ होता है ।
नास्तिक जी ने गंभीरता से सोचकर यह आक्षेप लगाया है की प्रतिदिन व् हर साल सूर्योदय व सुर्यस्त में फर्क आता है लेकिन यदि नास्तिक जी थोडा और गंभीरता की गहराई में जाते तब तो सत्य का पता चलता लेकिन इन्हें ईश्वर पर दोष लगाने का बहाना मिल गया तो और गहराई में क्यों जाये भला ??
जिस परिवर्तन की बात यहाँ की गयी है वह पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव के कारण होता है । अब इस झुकाव के कारण पृथ्वी से सूर्य की स्थिति बदलती रहती है एक वर्ष तक । अब इस स्थिति के बदलने से जो पथ बनता है वह लगभग 8 अंक जैसी होती है । और यह पथ हर वर्ष वैसा ही बनता है बदलता नही । केशव जी इसे कहते है नियमबद्धता और इसे कहते है पूर्णता ।
पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करते हुए उसी अक्ष के सापेक्ष साथ ही वृत्ताकार आकृति का अनुसरण करती है यह वृत्ताकार आकृति का पथ 26000 साल में एक बार ख़त्म होता है व् 26000 सालों के हर प्रवाह के अंत में पृथ्वी का अक्ष एक तारे की और इंगित होता है अर्थात 26000 साल खत्म होने के अगले 26000 साल के प्रवाह में भी अंत में पृथ्वी का अक्ष उसी तारे की और इंगित होता है ।
और उस तारे की और इंगित होने पर पृथ्वी की ice age पर effect पड़ता है ।
नास्तिक जी इसे कहते ह पूर्णता ।
अभी कहानी ख़त्म नहीं हुयी है पृथ्वी सूर्य के चारों और elliptical orbit में घुमती है ।अब यह elliptical orbit का पथ भी सूर्य के केंद्र के सापेक्ष ऊपर निचे गति करता है यह गति भी कई सालों में संपन्न होती है ।
अब इतने सरे complication के बाद भी नियमबद्धता बनी हुयी है यहाँ तक सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र के चरों घूमता है और वह तारा जिस की और पृथ्वी का अक्ष इंगित होता है वह भी सूर्य की तरह इस प्रकार के complications से घिरा हुआ है अब इतने complication के बाद भी पृथ्वी का प्रत्येक 26000 साल के चरण में उस तारे की और इंगित करना व सूर्य का हर साल अपने पथ पर पुनः अनुगमन करना सृष्टि की पूर्णता को ही साबित करता है ।
अब सामान्य आस्तिक बंधु इन complications को न जानकर भी इस नियमबद्धता के सिद्धांत को अपने सामान्य ज्ञान से बतलाते है तो उसमे कुछ गलत नही ।
नास्तिक जी आप भी अपने पूर्वाग्रह को छोड़कर सूर्य की तरह सत्य पथ के अनुगामी बनिए ।
अतः हमें अंत में पता चला कि सृष्टि में अनेक रहस्य भरे पड़े है जिन्हें इन्सान पूर्ण रूप से नही जानता इसलिए सृष्टि को बिना जाने ईश्वर पर आक्षेप लगाना मुर्खता है ।
इसीलिए वेद में आया
की इस सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुयी यह कोई नही जानता क्यूँ कि यह रहस्य जानने वाले विद्वानों की उत्पत्ति भी बाद में हुयी ।
नास्तिक जी आपने यह मन्त्र दिया था व् आक्षेप लगाया लेकिन यही मन्त्र आपकी पोस्ट का उत्तर बना ।
नास्तिक जी यहाँ सृष्टि की पूर्णता सिद्ध हुयी अतः पूर्णता सिद्ध होने पर ईश्वर की भी सिद्धि मेरी पिछली पोस्ट के अनुसार जिसमे आपने ईश्वर के कारण पर प्रश्न उठाया था ।
इसलिए अब आपको सत्य को ग्रहण करने से पीछे नही हटना चाहिए , व सत्य से भागने का असफल प्रयास नही करना चाहिए ।
apandix का अवश्य कोई कार्य है ही वर्ना अधिक वजन उठाने पर ये ख़राब क्यूँ होती ?
यदि madical science शरीर विज्ञानं पूरा जानती तब तो यह प्रश्न उठ सकता था लेकिन अभी तो विज्ञानं को और भी बातें खोजनी है इसलिए आपका यह तथ्य बालू की रेत से बनाये महलों के सामान ध्वस्त होता है ।
अब आप ये निर्णय कर लें की मुर्खता किसने की है ?
दावा -आस्तिक कहते हैं सूरज समय पर उगता है, प्रथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, 24 घंटे में अपना चक्कर पूरा करती है,ग्रहों का अपने परिक्रमापथ पर एक निर्धारति गति से घूमना आदि ईश्वर के नियम हैं।
पर, यह तर्क भी तर्कहीन है और आस्तिको के अल्पज्ञान का परिचारक है ।
गंभीरता से सोचने पर हम पाते हैं की प्रतिदिन सूर्य के उगने और अस्त होने में एक आध मिनट का फर्क रहता है ,फर्क इतना है की सर्दियों में राते 13 घंटे की तक की हो जाती है और इतने ही समय का दिन हो जाता है गर्मियों में ।
इसी प्रकार पृथ्वी कभी भी 365 दिन में सूर्य की परिक्रमा नहीं पूरी कर पाती है , समय घटता बढ़ता रहता है।
तो फिर यह कहना की सृष्टि ईश्वर के नियम से चल रही है सरासर मुर्खता है। एक प्रश्न और उठता है यंहा की यदि ईश्वर ने सृष्टि को नियमों से बाँधा हुआ है तो ईश्वर के लिए कौन नियम निर्धारित करता है?
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समीक्षा- पहली बात कि जो आस्तिक यह बात कहते है वह अपने सामान्य ज्ञान के अनुसार नियमबद्धता को जानकर ऐसा कहते है इस हिसाब उनका कहना सही भी है ।
लेकिन यहाँ जो तथ्य दिखाए गए है उनसे नियमबद्धता टूटती नही देखते है कैसे ?
हम आधुनिक विज्ञान के कारण जानकर पता करते है की ऐसा क्यूँ होता है तो हमारा विश्वाश ईश्वर के प्रति और दृढ होता है ।
नास्तिक जी ने गंभीरता से सोचकर यह आक्षेप लगाया है की प्रतिदिन व् हर साल सूर्योदय व सुर्यस्त में फर्क आता है लेकिन यदि नास्तिक जी थोडा और गंभीरता की गहराई में जाते तब तो सत्य का पता चलता लेकिन इन्हें ईश्वर पर दोष लगाने का बहाना मिल गया तो और गहराई में क्यों जाये भला ??
जिस परिवर्तन की बात यहाँ की गयी है वह पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव के कारण होता है । अब इस झुकाव के कारण पृथ्वी से सूर्य की स्थिति बदलती रहती है एक वर्ष तक । अब इस स्थिति के बदलने से जो पथ बनता है वह लगभग 8 अंक जैसी होती है । और यह पथ हर वर्ष वैसा ही बनता है बदलता नही । केशव जी इसे कहते है नियमबद्धता और इसे कहते है पूर्णता ।
पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करते हुए उसी अक्ष के सापेक्ष साथ ही वृत्ताकार आकृति का अनुसरण करती है यह वृत्ताकार आकृति का पथ 26000 साल में एक बार ख़त्म होता है व् 26000 सालों के हर प्रवाह के अंत में पृथ्वी का अक्ष एक तारे की और इंगित होता है अर्थात 26000 साल खत्म होने के अगले 26000 साल के प्रवाह में भी अंत में पृथ्वी का अक्ष उसी तारे की और इंगित होता है ।
और उस तारे की और इंगित होने पर पृथ्वी की ice age पर effect पड़ता है ।
नास्तिक जी इसे कहते ह पूर्णता ।
अभी कहानी ख़त्म नहीं हुयी है पृथ्वी सूर्य के चारों और elliptical orbit में घुमती है ।अब यह elliptical orbit का पथ भी सूर्य के केंद्र के सापेक्ष ऊपर निचे गति करता है यह गति भी कई सालों में संपन्न होती है ।
अब इतने सरे complication के बाद भी नियमबद्धता बनी हुयी है यहाँ तक सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र के चरों घूमता है और वह तारा जिस की और पृथ्वी का अक्ष इंगित होता है वह भी सूर्य की तरह इस प्रकार के complications से घिरा हुआ है अब इतने complication के बाद भी पृथ्वी का प्रत्येक 26000 साल के चरण में उस तारे की और इंगित करना व सूर्य का हर साल अपने पथ पर पुनः अनुगमन करना सृष्टि की पूर्णता को ही साबित करता है ।
अब सामान्य आस्तिक बंधु इन complications को न जानकर भी इस नियमबद्धता के सिद्धांत को अपने सामान्य ज्ञान से बतलाते है तो उसमे कुछ गलत नही ।
नास्तिक जी आप भी अपने पूर्वाग्रह को छोड़कर सूर्य की तरह सत्य पथ के अनुगामी बनिए ।
अतः हमें अंत में पता चला कि सृष्टि में अनेक रहस्य भरे पड़े है जिन्हें इन्सान पूर्ण रूप से नही जानता इसलिए सृष्टि को बिना जाने ईश्वर पर आक्षेप लगाना मुर्खता है ।
इसीलिए वेद में आया
की इस सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुयी यह कोई नही जानता क्यूँ कि यह रहस्य जानने वाले विद्वानों की उत्पत्ति भी बाद में हुयी ।
नास्तिक जी आपने यह मन्त्र दिया था व् आक्षेप लगाया लेकिन यही मन्त्र आपकी पोस्ट का उत्तर बना ।
नास्तिक जी यहाँ सृष्टि की पूर्णता सिद्ध हुयी अतः पूर्णता सिद्ध होने पर ईश्वर की भी सिद्धि मेरी पिछली पोस्ट के अनुसार जिसमे आपने ईश्वर के कारण पर प्रश्न उठाया था ।
इसलिए अब आपको सत्य को ग्रहण करने से पीछे नही हटना चाहिए , व सत्य से भागने का असफल प्रयास नही करना चाहिए ।