अग्नि, वायु…….इनको वेदों का ज्ञान किसने दिया। : आचार्य सोमदेव जी

जिज्ञासा ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका (श्री घूडमल प्रहलाद कुमार आर्य धर्मार्थ न्यास) द्वारा प्रकाशित छप रहा था उसमें पेज नं. 24 पर लिखा है ब्रह्मा जी ने अग्नि, वायु, रवि व अङ्गिरा से वेद पढे।

इसका मतलब ही ब्रह्मा जी का जन्म अग्नि, वायु… आदि के बाद हुआ है।

(1) अग्नि, वायु…….इनको वेदों का ज्ञान किसने दिया।

(2) ओ3म् का जाप करके हम ब्रह्मा जी की उपासना करते हैं उपनिषद में भी ओ3म्ाम् ब्रह्मा तीनों को एक ही बताया गया है। गीता में भी कृष्ण अर्जुन को कहते हैं ओ3म् का जप करके उस ब्रह्मा को प्राप्त कर,

जिज्ञासा यह है कि ओ3म् का जाप करके ब्रह्मा जी की उपासना करते हैं । ब्रह्माजी से पहले अग्नि, वायु….आदि हुये क्योंकि ब्रह्माजी ने उनसे वेदों का ज्ञान प्राप्त किया, फिर जिसने अग्नि, वायु, रवि व अङ्गिरा को वेदों का ज्ञान दिया उसका जाप किस शब्द या श्लोक से करे क्योंकि सभी जगह तो ब्रह्मा जी का ही जिक्र आता है।

समाधान-(1) (क)किसी विषय को स्पष्ट समझने के लिए पूर्वापरप्रसंग को ठीक से जानना, विषय वस्तु वाले ग्रन्थ को सपूर्ण पढ़ना व उस ग्रन्थ के लेखक की अन्य कृतियाँ भी पढ़ना आवश्यक हो जाता है। इतना करने पर प्रायः हमें बात स्पष्ट समझ में आ जाती है इतना करने पर भी समझ में न आवे तो योग्य विद्वान् से पूछ कर स्पष्ट कर लें। बहुत कुछ जिज्ञासाओं का समाधान तो हमारे द्वारा ठीक प्रकार से अध्ययन करने में ही हो जाता है।

आपने जो संदर्भ दिया है वह संर्दा सर्वथा ठीक है भूल समझने की है, सर्वप्रथम वेद पढ़ने वाला ऋषि ब्रह्मा ही हुआ है। महर्षि ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य, अङ्गिरा इन चारों ऋषियों से चारों वेद पढ़े। उन चारों ऋषियों को स्वयं परमात्मा ने वेद का ज्ञान दिया क्योंकि आदि सृष्टि में ये चार आत्माएँ अत्यन्त पवित्र थी। इनके अन्दर साक्षात् परमेश्वर से वेद ज्ञान ग्रहण करने की पात्रता थी। आपने जो पूछा हैं ‘इन चारों को ज्ञान किसने दिया’ उसका उत्तर यहाँ आ गया है।

ब्रह्मा व इन चार ऋषियों में ये भिन्नता है कि सीधा परमेश्वर से ज्ञान लेने की पात्रता इन चारों में थी जबकि ब्रह्माजी ने सीधा परमेश्वर से ज्ञान ग्रहण न कर ऋषियों से ग्रहण किया है।

आपने कहा अग्नि आदि ऋषि पहले हुए और ब्रह्मा जी बाद में हुए। इसके लिए महर्षि दयानन्द का कथन है कि ये सभी ऋषि आदि सृष्टि में हुए अर्थात् सृष्टि के प्रारभ में हुए।

(ख) आप भाषा के प्रयोग को समझें, भाषा में एक ही शब्द अनेक वस्तुओं का कहने वाला हो सकता है। जैसे एक ‘गो’ शब्द गाय, वहणी, इन्द्रियाँ, पृथिवी आदि को कहता है। वैसे ही ‘ब्रह्मा’ शब्द भी अनेक का द्योतक हो सकता है। जिस ब्रह्मा ने चारों वेद पढ़े वह एक व्यक्ति विशेष मनुष्य है। किन्तु जिस ब्रह्मा की उपासना करने का प्रसंग है वहाँ कोई मनुष्य रूपी व्यक्ति विशेष नहीं अपितु वहाँ तो उपासना परमेश्वर की करनी है और परमेश्वर के असंय नामों में एक नाम ‘ब्रह्मा’ भी है, जिसका अर्थ महर्षि दयानन्द जी लिखते हैं- ‘‘(बृह् बृहि वृद्धौ) इन धातुओं से ब्रह्मा शब्द सिद्ध होता है। थोडखिंल जगन्निर्माणेन बर्हति (बृंहति) वर्द्धयति स ब्रह्मा, जो सपूर्ण जगत् को रचके बढ़ाता है इसलिए परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्मा’ है।’’ स.प्र.स. 1

ब्रह्मा परमेश्वर का एक नाम है, इसके अनेकों प्रमाण हैं-

स ब्रह्मा स विष्णुः………..।। कैवल्य उपनिषद् .1.8

इन्द्रो ब्रह्मेन्द्र……………।। ऋग्वेद 8.16.7

सोमं राजनं…………..ब्रह्माणंच बृहस्पतिम्।।

– साम. 1.1.10.1

ओं खं ब्रह्म।। यजु. 40.17

यत्र ब्रह्मविदो यान्ति दीक्षया तपसा सह।

ब्रह्मा मा तत्र नयतु ब्रह्मा ब्रह्म दधातु मे।।अथर्व-19.43.8

इन सभी वेद शास्त्रवचनों में ईश्वर का एक नाम ब्रह्म= ब्रह्मा कहा है। जिस परमेश्वर का ब्रह्मा नाम है,उस परमेश्वर का मुय नाम ‘ओ3म्’ है।  इस ‘ओ3म्’ के जप से परमेश्वर ब्रह्म की उपासना होती है न कि चारों वेद को पढ़ने वाले ब्रह्मा नाम वाले महर्षि की। यदि अध्ययन करने वाला प्रकरणविद् हो तो वह स्वयं समझ सकता है कि ‘ब्रह्मा’ शब्द परमेश्वर को कह रहा है या ऋषि रूप व्यक्ति विशेष को।

जिस परमेश्वर ने अग्नि, वायु, आदित्य, अङ्गिरा ऋषियों को ज्ञान दिया उसकी उपासना ‘ओ3म्’ शब्द से करनी चाहिए अथवा परमेश्वर के जो अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के आधार पर नाम हैं उनसेाी ईश्वर की उपासना की जा सकती है। जैसे न्यायकारी, दयालु, सर्वरक्षक, पवित्र आदि नामों से उपासना कर सकते हैं। मन्त्रों के माध्यम से भी परमेश्वर की उपासना की जाती है। जिस मन्त्र में परमेश्वर की स्तुति हो, प्रार्थना हो उस मन्त्र से उपासना कर सकते हैं, जैसे गायत्री मन्त्रादि।

जो उपासना विषय में ब्रह्मा जी का जिक्र है वह मनुष्य रूपी ब्रह्मा का नहीं अपितु परमात्मा रूपी ब्रह्मा का जिक्र मानना चाहिए। महर्षि दयानन्द की यह बात सदा स्मरण रखें कि जहाँ भी उपासना करने की बात आती है वहाँ उपासनीय केवल परमात्मा ग्रहण करना चाहिए अन्य का नहीं। अस्तु।

– ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर