5. सन् 1875 के बाद अर्थात् 140 साल व्यतीत हो जाने के बाद भी विवाहदि संस्कार 90/95 प्रतिशत पौराणिक रीति से हो रहे हैं। यदि लग्न पत्रिका आदि की जरुरत पड़े तो वही हाथी की सूण्ड वाले गणेश की छपी मिलती है। क्या आर्य समाज कोई ऐसी योजना बना रहा है कि कम से कम जिला स्तर पर ऐसी पत्रिका या वैदिक कलेण्डर या पुरोहित उपलध हो जाए।

(ङ) इस विषय में आर्य समाज का कुछ प्रयत्न तो रहा है, कहीं-कहीं आर्य समाजों में बिना गणेश की लग्न पत्रिका मन्त्रों से युक्त भी मिलती है। इसके लिए योजना हो सकती है जो कि शीर्षस्थ सभाओं की धर्मार्य सभा का कार्य है।

लग्न पत्रिका को तो आप व्यक्तिगत रूप से भी क्रियान्वित कर सकते हैं। कुछ काम हम अपने स्तर पराी कर सकते हैं, हमारे द्वारा किये जा सकते हैं। कुछ कार्य सभाएँ ही कर सकती हैं किन्तु सभाओं की आज कथा ही क्या कहें, इनको जो करना था 140 वर्षों में वह न कर कुछ और ही कर रही हैं जो कि आपको व अन्य संवेदनशील आर्यों को पीड़ित करती हैं।

– ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर