काफी समय से यह पढ़ते और सुनते आए हैं कि पौराणिक लोग कहते थे कि वेदों को शंखासुर पाताल में लेकर घुस गए हैं, इसलिए अब शेष बचे 18 पुराणों से ही काम चलाओ। ऐसी स्थिति में स्वामी दयानन्द जी ने जर्मनी से चारों वेदों को मंगवा कर पण्डितों को दिखाया और सब को बताया। इससे पता चलता है कि स्वामी जी के आने, से पहले चारों वेद भारत में उपलध ही नहीं रह गए थे। इसीलिए तो विदेश से मंगवाने पड़े। अर्थात् आर्ष ग्रन्थों और इतिहास आदि में वेदों के नाम चर्चा ही थी और वे संहिताओं के रूप में उपलध नहीं थे। यह हमारी हालत हो चुकी थी। क्या यह बात ठीक है।

-(क) वेदों के विषय में स्वार्थी लोगों ने जन सामान्य में भ्रान्ति फैला रखी थी। जैसे वेदों को शूद्र और स्त्री पढ़-सुन नहीं सकते । वेदों में केवल कर्मकाण्ड है, वेदों में मानवीय इतिहास है आदि-आदि के साथ यह भी भ्रान्ति फैलाई कि वेदों को शंखासुर राक्षस पाताल में ले गया। यह  भ्रान्तियाँ स्वार्थी लोगों के द्वारा फैलाई गई थीं। महर्षि दयानन्द ने इन सभी भ्रान्तियों को दूर किया। महर्षि ने वेद के प्रमाण से ही सिद्ध किया कि वेद के पढ़ने का अधिकार सभी को है, वेद का मुय निहितार्थ परमेश्वर है, वेद में किसीाी प्रकार का मानवीय इतिहास नहीं है। और वेद को हम भारतीयों के आलस्य प्रमाद रूपी शंखासुर ने पाताल में पहुँचा दिया। वेद के विषय में यह विशुद्ध स्पष्टीकरण महर्षि दयानन्द का ही था।

अब आपकी बात पर आते हैं, महर्षि दयानन्द ने जर्मन से चारों वेदों को मंगवाया………। उससे पहले हमारे यहाँ मूल वेद नहीं थे। यह बात अनेक वक्ता, विद्वान् बोलते व लिखते हैं। जब इस बात के वास्तविक तथ्य को देखते हैं तो कुछ और ज्ञात होता है। महर्षि ने जर्मन से वेद मंगवाया वह भी केवल ऋग्वेद, यह बात तो सत्य है किन्तु यह कहना की इससे पहले हमारे यहाँ वेद नहीं थे सर्वथा मिथ्या है। महर्षि के द्वारा जर्मन से मंगवाया हुआ वेद अपने यहाँ उपलध सहिंताओं से मिलान करने के लिए था। अन्यथा वेद तो अपने यहाँ विद्यमान थे ही। आज भी महर्षि दयानन्द के समय वा उनसे पूर्व की पाण्डुलिपियाँ उपलध होती हैं। महर्षि स्वयं अपने जन्मचरित्र में लिखते हैं- ‘‘और मुझको यजुर्वेद की संहिता का आरभ करा के उसमें प्रथम रुद्राध्याय पढ़ाया गया……। इस प्रकार 14 चौदहवें वर्ष की अवस्था के आरभ तक यजुर्वेद की संहिता सपूर्ण और कुछ अन्य वेदों कााी पाठ पूरा हो गया था। ’’ दयानन्द ग्रन्थ माला भाग 2. पृष्ठ 768 महर्षि के इन वचनों से ज्ञात होता है कि वेद अपने यहां पहले से विद्यमान रहे हैं।

दक्षिण के ब्राह्मणों में जो वेद कण्ठस्थ करने की परपरा आज भी है और महर्षि के समय में वा उनसे पूर्व भी थी। कण्ठ किये हुए वेद तो थे ही। जो वेद कण्ठस्थ करते थे निश्चित रूप से ये उनके पास वेद संहिताएँ रही होंगी। इसलिए यह कहना कि वेद महर्षि ने जर्मन से मंगवाये उससे पहले यहाँ वेद नहीं थे सर्वथा अनुचित है।