संसार में सुख के साथ-साथ दुःख भी भोगने को मिलता है। कारण कि :-
(1) पहली बात- इसका एक कारण प्रकृति है। प्रकृति जो बेसिक मैटीरियल (मूल द्रव्य) है। प्रकृति से इस संसार को बनाया गया है।
स प्रकृति के तीन पार्टिकल्स (अवयव-कण) हैं। एक है- सत्त्व गुण, दूसरा है- रजो गुण, तीसरा है- तमोगुण।
स संसार को बनाने वाले इन तीनों कणों की प्रापर्टीज (विशेषताएँ) अलग-अलग हैं। सत्त्व गुण का स्वभाव हैं-सुख देना। रजो गुण का स्वभाव है- दुःख देना। तमो गुण का स्वभाव है- मूर्खता, पागलपन पैदा करना।
अब देखिए, प्रकृति रूपी मैटीरियल ही ऐसा है कि उसमें सुख भी मिलता है, दुःख भी मिलता है, और मूर्खता भी पैदा होती है। तो भगवान इसमें क्या करे? तीनों पार्टीकल्स में अच्छा केवल एक ही है-सत्त्व गुण। रजो गुण बेकार है, क्योंकि वो दुःख देता है। और तमोगुण भी बेकार है, क्योंकि वो पागलपन और नशा पैदा करता है। तीन कण में से दो तो खराब हैं, केवल एक ही अच्छा है। तैंतीस प्रतिशत मैटीरियल अच्छा है, षड़सठ प्रतिशत तो बेकार है। इसलिए उसमें दुःख तो मिलना ही मिलना है।
स भगवान ने तो इतनी अच्छी कलाकारी दिखाई कि, इस बेकार मैटीरियल से इतनी बढ़िया दुनिया बना दी। ऐसी प्यारी दुनिया, कि अधिकांश लोग इस दुनिया को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
स भगवान ने इतनी अच्छी दुनिया बना कर कह दियाः- तुमको संसार का सुख लेना हो, ले लो। जब तक इसमें दुःख समझ में नहीं आए, तब तक संसार का सुख भोगो। और जब समझ में आ जाए, तब इसको छोड़ देना। फिर मेरे पास आ जाना। मैं मोक्ष का बढ़िया आनन्द दे दूँगा।
(2) दूसरी बात- भौतिक सुखों में दुःख होने का दूसरा कारण हमारे कर्म हैं। हमने ‘सकाम कर्म’ किये। ‘सकाम कर्म’ अर्थात् सांसारिक सुख को लक्ष्य बनाकर अच्छे और बुरे कर्म किये। जब हमारे कर्म ही अच्छे और बुरे हैं, तो फल भी दोनों (सुख व दुःख) ही होंगे। केवल सुख फल कैसे हो सकता है? इसलिये संसार में सुख के साथ-साथ दुःख भी मिलता है। यदि केवल सुख चाहिए, तो मोक्ष में जाओ। वहाँ केवल सुख मिलता है।
(3) तीसरी बात- यदि आप कहते हैं कि, ईश्वर सर्वशक्तिमान् है, वो ऐसा संसार बना दे, जिसमें दुःख हो ही न। इसका उत्तर यह है कि, सर्वशक्तिमान का अर्थ यह नहीं कि ईश्वर नियम के विरु(, जो चाहे सो कर दे। यदि आप ऐसा मानते हैं कि ईश्वर जो चाहे, सो कर सकता है, तो मैं आपसे पूछता हूँ कि, क्या ईश्वर बिना प्रकृति (उपादान कारण) के भी जगत् को बना सकता है? नहीं।
जैसे ईश्वर बिना प्रकृति के जगत् को नहीं बना सकता। ऐसे ही वह प्रकृति की विशेषताओं (सत्त्व-सुख देना, रज-दुःख देना, तम-नशा उत्पन्ना करना आदि) को भी नहीं बदल सकता। इसीलिए वह दुःख-रहित, केवल सुखमय, संसार को नहीं बना सकता।