जिज्ञासा- सत्यार्थप्रकाश के अष्टम समुल्लास में वर्णित मनुष्य जाति की आदि सृष्टि त्रिविष्टप अर्थात तिबत में हुई, जिसमें श्रेष्ठ विद्वान् लोग आर्य और मूर्ख अनार्य (अनाड़ी) कहलाये। आर्य और अनार्य में सदा लड़ाई बखेड़ा होने के कारण आर्य लोग सर्व भूगोल में उत्तम इसाूखण्ड को जानकर सृष्टि की आदि के कुछ काल पश्चात् तिबत से सीधे इस देश में बस गये, जिसका नाम आर्यावर्त हुआ। इससे पूर्व इस देश का क ोई भी नाम नहीं था और न कोई आर्यों से पूर्व इस देश में बसते थे। अतः आर्य जाति का उद्गम व आदि उत्पत्ति-स्थल तिबत है और सभवतः वही हमारे चारों वेद का ईश्वरीय ज्ञान ऋषियों को प्राप्त हुआ। कृपया उक्त तथ्यों के प्रमाण से अवगत कराने का कष्ट करें। आज दिन भी तिबत में हमारे तीर्थ-स्थल कैलाश, मानसरोवर स्थित हैं। जहाँ प्रतिवर्ष हजारों भारतवासी तीर्थ यात्रा व दर्शन हेतु जाते हैं। इस तरह सारा तिबत हमारा आदि जन्म स्थल है। अतः सारा तिबत हमारा (भारत का) है। चीन उस पर जबरन काबिज है।
समाधान– महर्षि दयानन्द ने मानवोत्पत्ति तिबत पर कही है। महर्षि प्रश्न पूर्वक लिखते हैं- ‘‘मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई?
उत्तर – त्रिविष्टप अर्थात् जिसको तिबत कहते हैं।’’ आपने महर्षि के इस स्थल को लेकर प्रश्न पूछा है कि इसका आधार है या नहीं। इस विषय में जैसी जानकारी मुझे ‘सत्यार्थ भास्कर’ से प्राप्त हुई है, वैसा यहाँ लिखता हूँ।
जैसा बिना बीज के, निर्जीव रेत में जड़ और अंकुर नहीं फूटते। बीजाी अपने आप ही आप नहीं निकलता, किन्तु खोज करके लाया जाता है और अनुकूल स्थान पर बोया जाता है, जहाँ जलवायु पौधे के अनुकुल होता है, उसका खाद्य पर्याप्त मात्रा में मिलता है और आंधी-ओले से उसे सुरक्षित रखा जा सकता है। माली पहले एक क्यारी में पौध तैयार करता है फिर वहाँ से पौधे ले-लेकर यथास्थान सारी फुलवारी में रोपता है और आवश्यकतानुसार बाहर भी भेजता है। तात्पर्य यह है कि बीज सर्वत्र पैदा नहीं होता, एक ही स्थान से अन्यत्र फैलता है। इसी बीज क्षेत्र न्याय के अनुसार मनुष्य भी किसी एक ही स्थान पर पैदा हुआ और फिर संसार भर में फैल गया। प्रारभ में मनुष्य भी किसी एक ही स्थान पर पैदा हुआ और फिर संसार भर में फैल गया। प्रारभ में मनुष्य भी ऐसे स्थान पर हुआ होगा, जहाँ का जलवायु उसके अनुकूल हो, खाद्य सामग्री सुलभ हो और जहाँ वह अधिक से अधिक सुरक्षित रह सके। मनुष्य ही नहीं, पशु, पक्षी, वनस्पति आदि के लिए भी ऐसा ही स्थान उपयुक्त होगा। आदि सृष्टि के लिए उपयुक्त स्थान की योग्यता –
- जो सबसे ऊँचा स्थान हो, 2. जहाँ सर्दी-गर्मी जुड़ती हो, 3. जहाँ मनुष्य के खाद्य फल वनस्पति आदि प्रचुरता से उपलध हों, 4. जिसके आसपास सब रंग-रूपों के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण हो, 5. जिसका नाम सबके स्मरण का विषय हो।
अब इन पाँचों बिन्दुओं को विस्तार से देखते हैं-
- 1. हिमालय निर्विवाद रूप से सबसे ऊँचा स्थान है। कहते हैं कि पहले सपूर्ण पृथिवी जलमग्न थी। उस जल से सबसे पहले वही भूमि निकली उसी में वनस्पति उत्पन्न हुई और उसी पर सबसे पहले मनुष्यादि प्राणियों की सृष्टि हुई।
2.संसार में ऋतुएँ चाहे कितनी कही जाएँ, किन्तु सर्दी और गर्मी दो उनमें मुय हैं। यही कारण है कि समस्त भूमण्डल में सर्द और गर्म दो ही प्रकार के देश पाये जाते हैं। कुछ प्रदेश दोनों के मिश्रण से बने पाये जाते हैं, तो भी दोनों में से एक की प्रधानता रहती है। कश्मीर, नेपाल, भूटान और तिबत आदि प्रदेश बसे हुए हैं, इनके निवासी उसी सर्दी-गर्मी का अनुभव करते हैं। इसलिए मानव-सृष्टि के लिए हिमालय ही सर्वाधिक उपयुक्त स्थान ठहरता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य के आदि युग में मानसरोवर के आसपास का क्षेत्र शीतोष्ण जलवायु युक्त था। भारतीय प्राचीन साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है।
- 3. मनुष्य का सर्वाधिक खाद्य दूध और फल है- पयः पशूनां रसमोषधीनाम्। दूध पशुओं से और फल वृक्षों से मिलते हैं। जब मनुष्य दूध और फल के बिना और पशु वनस्पति के बिना नहीं रह सकते तो मनुष्य ऐसे देश में उत्पन्न नहीं हो सकता, जहाँ ये पदार्थ उपलध न हों। हिमालय ऐसा स्थान है, जहाँ मनुष्य के लिए अपेक्षित समस्त पदार्थ सहज उपलध है।
- 4. मूल स्थान के आसपास ऐसी विस्तृत भूमि होनी चाहिए, जहाँ सब रंग-रूपों के विकास की स्थिति हो और जहाँ रहकर मनुष्य संसार भर में रहने की योग्यता प्राप्त करके पृथिवी में सर्वत्र फैल सके। हिमालय से लगता भारत ऐसा देश है, जहाँ सब छहों ऋतुएँ वर्तमान रहती हैं। इस सर्वगुण सपन्न देश में सब रंग रूप के आदमी निवास करते हैं। ऐसे देश के सामीप्य के कारण भी यही प्रतीत होता है कि हिमालय (तिबत) पर ही मनुष्य की आदि सृष्टि हुई।
- 5. सभी देशों में बसने वालों को किसी न किसी रूप में हिमालय की स्मृति बनी हुई है। भारतीय आर्यों को हिमालय से और ईरानी आर्यों को भारत से आने की स्मृति आज भी बनी हुई है। चरक संहिता के प्रमाण से सिद्ध है कि आर्य लोग हिमालय (तिबत) से ही भारत आये थे और बीमार होकर एक बार फिर अपने स्थान हिमालय को लौट गये थे। इतना ही नहीं, कुछ समय बाद उनके फिर लौटकर भारत में बसने का उल्लेख मिलता है। चरक संहिता में लिखा है-
ऋषयः खलु कदाचिच्छालीना यायावराश्च ग्रायौषध्याहाराः सन्तः सापन्निका मन्दचेष्टाश्च नातिकल्याश्च प्रायेण बभूवुः। ते सर्वा समिति कर्त्तव्यतानामसमर्थाः सन्तो ग्रायवासकृतमात्मदोषं मत्वा पूर्वनिवासमपगतग्रायदोषं शिवं पुण्यमुदारं मेध्यगयसुकृतिभिर्गङ्गाप्रभवममरगन्धर्व-किन्नरानुचरितमनेक रत्ननिचयमचिन्त्याद्भुतप्रभवं ब्रह्मर्षिसिद्धचरणानुचरितं दिव्यती र्थैषधिप्रभवमतिशरव्यं….. महर्षयः।। चिकित्सा स्थान. 4/3
इन चरक वचनों से मानव हिमालय पर था, बाद में मैदानी क्षेत्र में बस गया, यह वर्णन है। इनसे सिद्ध हो रहा है कि मानवोत्पत्ति सृष्टि के आरभ में हिमालय पर ही हुई।
हिमालय पर प्राणियों के शरीरांश बहुतायत से पाये जाते हैं। पृथिवी पर ऐसा कोई स्थान नहीं है जो हिमालय स्थित प्राणियों के शेषांगों से अधिक पुराने चिह्न दे सके। इससे भी प्रमाणित होता है कि हिमालय पर मनुष्य से पहले उत्पन्न होने वाले और उनके जीवनाधार वृक्ष और गौ आदि पशु पूर्वातिपूर्व काल में उत्पन्न हो गये थे, अतएव हिमालय आदि सृष्टि उत्पन्न करने की पूर्ण योग्यता रखता है। (हिमालय पर)
प्रारभ में आर्य हिमालय तिबत में ही उनका मूल उत्पत्ति स्थान तिबत रहा, बाद में निचले मैदानी क्षेत्र आर्यावर्त में आकर बस गये। आर्यावर्त की सीमा महर्षि मनु ने लिखी है-
आ समुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात्।
तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्तं विदुर्बुधाः।। मनु. 2.22
अर्थात्- पूर्व समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र पर्यन्त विद्यमान उत्तर में हिमालय और दक्षिण में स्थित विन्ध्याचल का मध्यवर्ती देश है, उसे विद्वान् लोग आर्यावर्त कहते हैं। इसी मनु के श्लोक के आधार पर महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के आठवें समुल्लास में आर्यावर्त देश की सीमा निर्धारण की है- ‘‘हिमालय की मध्य रेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जितने प्रदेश हैं, उन सबको आर्यावर्त इसलिए कहते हैं कि यह आर्यावर्त देश देवों और विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहलाया।’’ आर्यावर्त की सीमा में हिमालय भी है और तिबत हिमालय पर है, इस आधार पर आप कह सकते हैं कि तिबत हम आर्यों का स्थान है। इस लेख में चरकादि का प्रमाण दिया है। ये प्रमाण आर्यों का मूल स्थान हिमालय को सिद्ध करते हैं। महर्षि का तो प्रत्यक्ष वचन है ही। यह तो निश्चित है कि तिबत पर चीन ने बलात् अधिकार जमा रखा है। जबकि अधिकार हम भारतीयों का होना चाहिए। ऐतिहासिक दृष्टि से भी और हमारी भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि से भी। अलम्।
– आचार्य सोमदेव, ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर