बहुतायत आर्य समाजों में यज्ञ के पश्चात् ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन…..’’का पाठ किय जाता है। शंका संया 1- यह श्लोक है या कि मन्त्र है? किसी आर्ष ग्रन्थ से उद्घृत किया गया है?

समाधान 1- यज्ञ के बाद प्रायः यज्ञ प्रार्थना व अन्य श्लोक, गीत आदि गाये जाते हैं, जा रहे हैं। अनेक बार समय का आाव होने पर भी ये प्रार्थना श्लोक आदि यज्ञ के समय को बढ़ा देते हैं, जिससे जो लेगा अपने व्यस्त जीवन में से समय निकालकर यज्ञ करना चाहते हैं तो वे लोग इस लबी प्रक्रिया को देख पीछे हट जाते हैं।

आपको बात दें कि इस यज्ञ प्रक्रिया को ऋषि दयानन्द जितना सरल बना सकते थे, उतना सरल बनाकर गये हैं। इस सरलतम विधि से यज्ञ करते हैं तो अति व्यस्त व्यक्ति भी नित्य प्रति यज्ञार्थ 15-20 मिनट निकाल सकता है। महर्षि दयानन्द ने यज्ञ की पूर्ण आहुति के बाद कुछ करने को नहीं लिखा है, हाँ संस्कार विशेष में ‘वामदेव’ गान की तो बात महर्षि कहते हैं। फिर भी जिसके पास समय है, वह ये यज्ञ प्रार्थना आदि कर सकता है, इसके करने से कोई विशेष पुण्य मिलेगा अथवा न करने से पाप हो जायेगा ऐसी कोई बात प्रतीत नहीं होती।

अब आपकी बात पर आते हैं- आपने जो ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन…..’’ विषय में पूछा है कि यह मन्त्र है या श्लोक? तो हम आपको बता दें कि यह किसी वेद का मन्त्र नहीं है। यह तो पुराण का श्लोक है। गरुड़ पुराण  में श्लोक कुछ पाठ भेद से दिया गया है। पुराण में यह श्लोक इस रूप में है-

सर्वेषां मंगलं भूयात् सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भागभवेत्।।

– ग. पु. अ. 35.51

पुराण में ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ के स्थान पर ‘‘सर्वेषां मंगलं भूयात्’’ है। आपकी जिज्ञासा इस श्लोक के कविताशं पर है। आप ‘‘कोई न हो दुःखारी’’ का अर्थ ‘‘क ोई न हो दुःख का शत्रु’’ ऐसा निकाल रहे हैं अर्थात् इस अर्थ के अनुसार सभी दुःखी होवें, ऐसा अभिप्राय आयेगा। इस प्रकार का अर्थ करने में आपका हेतु है ‘पुजारी’ शद इस पुजारी शद का अर्थ आप पूजा का शत्रु कर रहे हैं और इसमें महर्षि दयानन्द का साक्ष्य भी दे रहे हैं। हम आपको बता दें ‘पुजारी’ शद का अर्थ तो ‘‘पूजा करने वाला’’ ही है। इसी अर्थ को ‘पुजारी’ शद लिए है, कहा जा रहा है। महर्षि ने जो अर्थ ‘पूजा का शत्रु’ किया है वह आजकल के पूजा करने वालों पर विनोद में (मजाक में) व्यंग किया है। मात्र वहाँ महर्षि विनोद में यह अर्थ कर रहे हैं, न कि यथार्थ में। यदि महर्षि से कोई यथार्थ में इसका अर्थ पूछता तो महर्षि ‘पूजा करने वाला’ इस अर्थ को ही कहते बताते क्योंकि इस शद का अर्थ ही यह है।

आपने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए ‘मुरारि’ शद दिया है, यह पहली  बार आपने ठीक लिखा किन्तु इससे आपकी बात सिद्ध न हुई तो इसको बिगाड़ कर ‘मुरारी’ लिख दिया, जो कि अयुक्त है। कहीं भी किसी भी कोश में आपको ‘मुरारि’ (मुर नामक दैत्य को मारने वाला= कृष्ण) के स्थान पर ‘मुरारी’ नहीं मिलेगा। इसलिए जिस बात को आप सिद्ध करना चाहते हैं, वह सिद्ध न होगी।

आपने यह भी प्रतिबन्ध लगा दिया की मात्रा का भेद न करें। आप भाषा विज्ञान शद विज्ञान को जानेंगे-समझेंगे तो ऐसा भ्रम नहीं होगा। जो शद जैसा है, वह अपने उस स्वरूप के अनुसार, प्रकरण और प्रसंग अनुसार अर्थ देता है। ऐसा ही यहाँ भी समझें।