प्रभु कैसे ज्ञान देता है?ः- परोपकारी के एक अंक में बताया था कि मेरे साठ वर्ष के ऊपर के सार्वजनिक जीवन में उदयपुर के आर्य पुरुष श्री प्रकाश जी श्रीमाली ने घर के बच्चों, बड़ों सबकी शंकायें पूछकर लिखलीं और पहली बार मुझे उनके प्रश्नों का उत्तर देने का सुखद अनुभव हुआ। प्रधान जी के दस वर्ष के पौत्र ने ईश्वरीय ज्ञान के आविर्भाव पर प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछकर अपने संस्कारों व परिवार के वातावरण की मुझ पर अमिट छाप लगा दी।
उसका पूरक प्रश्न था कि सर्वव्यापक प्रभु बिना वाणी के हृदय में कैसे ज्ञान देता है?
स्वामी सत्यप्रकाश जी का उत्तर – स्वामी सत्यप्रकाश जी के श्रीमुख से सुना अनूठा उत्तर जब मैंने दिया तो सारा परिवार झूम उठा। उस बालक की समझ में भी वेद का सिद्धान्त आ गया। स्वामी जी कहा करते थे- ‘‘आदि सृष्टि में प्रभु ने ऋषियों को कैसे ज्ञान दिया? कहा, जैसे वह आज देता है। आप एक ग्राम चीनी यहाँ रख दें। थोड़ी देर में कई चींटियाँ पंक्तिबद्ध यहाँ आ जायेंगी, परन्तु चीनी सरीखे नमक का एक बोरा यहाँ रख दें, एक भी चींटी पास नहीं आयेगी। चीनी व नमक का यह भेद उनको किसने सिखाया, पशुओं को स्वाभाविक ज्ञान उसी ईश्वर की देन है। उस प्रभु ने जीवन बिताने के लिए आवश्यक ज्ञान दिया है। ईश्वरीय ज्ञान के अनादित्व, ईश्वर के स्वरूप, उसकी दया व न्याय, कर्मफल सिद्धान्त, पाप का क्षमा होना, जीव की कर्म करने की स्वतन्त्रता, मांसाहार आदि पर जिस शैली में पं. चमूपति जी ने लिखा है, उसे जानने, समझने व समझाने का समाज में कोई सामूहिक प्रयास नहीं हुआ। पं. चमूपति जी की पुस्तकों को इस्लाम की विवेचना और आक्षेपों का उत्तर मात्र समझा गया।