मुक्ति किसे मिलेगी?

इस विषय पर श्री स्वामी जी और सोमदेव जी तो लिखते ही रहते हैं। एक प्रेमी ने इस विषय में एक प्रश्न पूछा है, तो आस्तिक वेदाभिमानी होने से कुछ निवेदन करने का मुझे भी अधिकार है। उत्कृष्ट शंका समाधान में कहते हैं, यह घोषणा की गई कि मुक्ति केवल संन्यासी को ही मिल सकती है। प्रश्नकर्ता  ने इसके लिए वेद तथा ऋषि का प्रमाण माँगा है।

प्रश्नकर्ता की सेवा में नम्र निवेदन है कि स्वाध्याय तो कुमार अवस्था से ही करता चला आया हूँ। बहुत कुछ पढ़ा है और उससे भी अधिक सुना है, परन्तु मेरे सुनने व पढ़ने में तो उत्कृष्ट समाधान की बात की पुष्टि के लिए कभी कोई प्रमाण नहीं आया। स्वामी आत्मानन्द जी, वेदानन्द जी, प्रसिद्ध योगी महात्मा हरिराम जी, श्रद्धेय उपाध्याय जी, आचार्य उदयवीर जी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

ऋषि-जीवन से मैं उपरोक्त कथन के तीन प्रमाण दे सकता हूँ। इनमें से एक स्वामी सर्वानन्द जी भी दिया करते थे। स्वामी सत्यानन्द जी आदि तीनों प्रमाण दिया करते थे। गृहस्थ में जाना यदि मुक्ति में बाधक व पाप है तो फिर गृहस्थ को धरती का स्वर्ग, सब आश्रमों का आधार क्यों कहा गया? ओ३म् के जप से ही मुक्ति हो जायेगी, यह कथन क्या मिथ्या है? आचार्य उदयवीर की कोटि के महापण्डित ने ऐसा लिखा है। मुक्ति सद्ज्ञान, सत्कर्मों व उपासना से ही होती है। सन्त तुकाराम जी ने भी लिखा है कि सत्कर्मों के बिना मुक्ति नहीं। स्वामी दर्शनानन्द जी महाराज ने तो ‘सच्चिदानन्द’ के जप से मुक्ति की प्राप्ति को सम्भव बताया है। उपनिषदों में, दर्शनों में, मनुस्मृति में कहीं नहीं आता कि संन्यासी को ही मुक्ति मिल सकती है।

यह भी कहा जाता है कि चारों वेदों का, दर्शनों का, उपनिषदों का ज्ञान मुक्ति के लिए आवश्यक है। अरे भाई! परमात्मा ने तो सर्वकल्याण के लिए चार वेदों का प्रकाश किया। दर्शन आदि देना, क्या ईश्वर भूल गया था? इन्हें पहले ही दे देता। मेरा मत है कि उत्कृष्ट समाधान का कथन एक अति है।