इसी प्रकार गृहाश्रमविधि में या दुर्हार्दो युवतयो…… मन्त्र के अर्थ करते हुए अन्त में लिखते हैं- ‘…..वृद्ध स्त्रियाँ हों, वे इस वधू को शीघ्र तेज देवें। इसके पश्चात् अपने-अपने घर को चली जावें, और फिर इसके पास कभी न आवें।’ यहाँ कभी न आवें का भाव समझ में नहीं आया।

(ग) गृहाश्रमप्रकरण में महर्षि ने जो अथर्ववेद का यह मन्त्र दिया है-

या दुर्हार्दो युवतयो याश्चेह जरतीरति।

वर्चो न्वस्यै सं दत्ताथास्तं विपरेतन।।

अर्थ- (याः) जो (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाली अर्थात् दुष्टात्मा (युवतयः) जवान स्त्रियाँ (च) और (याः) जो (रह) इस स्थान में (जरती) बूढ़ी=वृद्ध स्त्रियाँ हों, वे (अपि) भी (अस्थै) इस वधू को (नू) शीघ्र (वर्चः) तेज (संदत्त) देवें (अथ) इसके पश्चात् (अस्तम्) अपने-अपने घर को (विपरेतन) चली जाएँ और फिर कभी इसके पास न आवें।

यहाँ प्रकरण विवाह और गृहाश्रम का है, जब नववधू से बहुत-सी स्त्रियाँ मिलने आती हैं, तब उनमें बहुत-सी कुलीन और कुछ मन्त्र में वर्णित दुष्ट हृदय वाली भी होती हैं। यहाँ उन दुष्ट हृदय वाली स्त्रियों की ओर संकेत किया है। यदि ऐसी स्त्रियाँ वधू के पास आवें तो वधू उनको महत्त्व न देवे। जब वधू उनको महत्त्व न देगी, तब उनका मान-समान न होगा अर्थात् उनका तेज ले लिया जायेगा और वहाँ लौट, वापस न आवेंगी। जब हम किसी को महत्त्व नहीं देते, तब सामने वाला उपेक्षित होकर श्रीहीन हो जाता है उसका तेज ले लिया जाता है। ऐसा यहाँ भी कुछ इसी प्रकार का है। मन्त्र में निर्देश किया है कि दुष्ट हृदय वाली स्त्रियाँ कुलीन स्त्रियों के पास कभी न आवें। जब उनके साथ उपेक्षा का बर्ताव किया जायेगा, तब वे उनके पास भी न आवेंगी। यही अभिप्राय प्रतीत हो रहा है। इस मन्त्र क विषय में विस्तार से जानने के लिए पं. मनसाराम जी  वैदिक तोप की पुस्तकें ‘‘पौराणिक पोप पर वैदिक तोप’’ पृष्ठ 366 से देखा जा सकता है।