चारों वेद ज्ञान के भण्डार हैं, यह ठीक है, चारों ही वेदों का बराबर महत्व है। वेदों के अपने विषय हैं- ज्ञान, कर्म, उपासना, विज्ञान, इनमें से किसी को सभी प्रिय हो सकते हैं और किसी को एक या दो। हो सकता है, जिस समय कृष्ण जी ने यह कहा, उस समय उनको उपासना प्रिय हो, जो कि सामवेद का विषय है।
आपको बता दें कि साम नाम केवल सामवेद का ही नहीं है, अपितु चारों वेदों में जो ऋचाएँ स्वर सहित गाई जाती हैं, उनका नाम साम है। इस आधार पर केवल सामवेद ही विभूति नहीं है, अपितु चारों वेदों में गायी जाने वाली सभी ऋचाएँ विभूति हैं। श्रीकृष्ण जी योगीराज थे, योगीजन उपासना प्रिय होते हैं, उपासना की दृष्टि से उन्होंने सामवेद को अधिक मह व दिया होगा। अस्तु।