स्व-स्वामी संबंध अर्थात् मैं इस शरीर का स्वामी नहीं हूँ। यह बात तो ठीक है, लेकिन मैं अपने मन का स्वामी हूँ, यह कैसे ठीक हुआ?

स्वामी’ का एक अर्थ होता है ‘मालिक’। जबकि दूसरा अर्थ होता है – कार्य में उपयोग करने का अधिकारी, यानि ‘ऑपरेटर’। एक होता है – ‘ऑपरेटिंग राइट’ और दूसरा होता है – ‘ओनिंग राइट’। मालिक होना और कार्य का अधिकारी होना, इन दोनों में बहुत अंतर है।
स एक सेठ ने बहुत बड़ी फैक्ट्री लगाई। बहुत सारे श्रमिक, कुछ क्लर्क, कुछ ऑफीसर और एक मैनेजर रख लिया। उस प्रबंधक (मैनेजर) को यह अधिकार दे दिया कि यह तुम्हारा ऑफिस है, यह मोटर-गाड़ी है, यह टेलीफोन है, यह स्टेशनरी है, यह फर्नीचर है, तुम इन सबका उपयोग करो। हमारी फैक्ट्री का प्रबंधन करो।
जिस सेठ ने फैक्ट्री लगाई है, वह उसका मालिक है। और जो उसका सहायक है, प्रबन्धक है, वो है उसका ‘ऑपरेटिंग मैनेजर’। वो केवल उन वस्तुओं का प्रयोग करने का अधिकारी है।
वास्तव में वो प्रबंधक उनका मालिक नहीं है, लेकिन उसको अधिकार दिया गया है कि वो इन सब चीजों का फैक्ट्री के प्रबंध के लिए प्रयोग कर सकता है। जैसे उन सारी चीजों का असली मालिक तो सेठ है। उसी ने सारा प्रबंध करके, फैक्ट्री सेटअप करके, ऑफिस बनाकर के मैनेजर को दिया। ठीक उसी प्रकार से जब यह कहा जाता है कि ‘मैं इस शरीर का मालिक नहीं हूँ’ तो इसका अर्थ है कि ”मैं सेठ की तरह नहीं हूँ, बल्कि उस मैनेजर की तरह हूँ।”
जब यह कहा जाता है कि ”मैं अपने मन रूपी साधन का स्वामी हूँ,’ तब भी अर्थ वही है, कि ‘मैं आत्मा नामक मैनेजर, मन का प्रयोग करने का अधिकारी हूँ।” तो प्रश्न हुआ – कि फिर सेठ कौन है? उत्तर- ईश्वर। सेठ ने फैक्ट्री लगाकर मैनेजर को प्रबंधन करने के लिए दी। ऐसे ही ईश्वर ने हमें शरीर, मन आदि बनाकर प्रयोग करने के लिए दिए।
जब बाहर का कोई दूसरा आदमी ऑफिस में कुर्सी तोड़ने लगता है, तब मैनेजर कहता है – ”ऐ! कुर्सी मत तोड़ना, यह मेरी कुर्सी है।” वो किस अधिकार से ऐसा कह रहा है? वो ऑपरेटिंग मैनेजर है, इसलिए ऑपरेट करने के अधिकार का प्रयोग कर रहा है। वह उपयोग करने का मालिक है, वास्तव में मालिक नहीं है। जैसे मैनेजर उस ऑफिस की वस्तुओं का अपनी इच्छानुसार प्रयोग करता है। इसी प्रकार से यह जीवात्मा आपरेटिंग मैनेजर है। इसलिए वो सब उपयोग करेगा, क्योंकि उसका अधिकार ईश्वर ने जीवात्मा को दिया है। मालिक यानि ईश्वर के अभिप्राय के अनुसार ही, वो इन सब चीजों का प्रयोग करेगा। दोनों वाक्यों का तात्पर्य एक ही है। दोनों परिस्थितियों में स्मरण रहे कि हम इन वस्तुओं का प्रयोग करने के अधिकारी हैं। लेकिन हम इसके असली मालिक (ओनर) नहीं हैं।

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