स्वामी सत्यपति जी ने इतने अच्छे कर्म किए, फिर भी उन्हें रोगों से क्यों पीड़ित होना पड़ रहा है?

उन्होंने अपनी ओर से तो अच्छे कर्म किए। पर क्या दूसरों ने भी उनके साथ अच्छे कर्म किए? क्या उनको वैसी सारी अनुकूलताएं मिलीं, जैसी मिलनी चाहिए? नहीं मिलीं। बहुत सारे कारण होते हैंः-
स अपने कारण से भी कहीं-कहीं गलतियाँ होती हैं। व्यक्ति अपने खराब कर्मों के कारण रोगी या दुःखी हो सकता है। भारत- पाकिस्तान जब से डिवाइड हुआ, तब से स्वामी सत्यपति जी ने अपना जीवन बदला। उसके बाद तो उन्होंने अच्छे-अच्छे काम किए, इसमें कोई संशय नहीं है। पर उसके पहले का जीवन गुरुजी बताते हैं,पहले कुछ अनपढ़ थे, स्कूल में गये नहीं, पशु चराते थे और बचपन में कुछ गलतियाँ, कमियाँ हो सकती हैं। कुछ उसका परिणाम है।
स दूसरों के अन्याय से उसको परेशानी भोगनी पड़ सकती है। जैसे स्वामी दयानंद ने अच्छा काम किया, वेद का प्रचार किया। फिर भी कितने लोगों ने उनको पत्थर मारे, जहर खिलाया, साँप फेंके, कितने आरोप लगाए। ये कोई उनके अच्छे कर्मों का फल थोड़े ही था। यह तो ईर्ष्यालु लोगों का अन्याय था। कितनी बार लोगों ने जहर पिला दिया धोखे से। इस प्रकार दूसरों के अन्याय से भी हमको परेशानी होती है, कष्ट होता है, रोग आ जाते हैं, दुःख आ जाते हैं।
कुछ बाद में जो स्वामी सत्यपति जी को खाने-पीने की
सुविधा मिलनी चाहिए थी, वो ठीक तरह से नहीं मिली।
स हो सकता है कोई पैतृक-दोष भी हो। जो आनुवांशिक (जेनेटिक( बोलते हैं, हेरीडिटी से सम्बन्धित। हमारे पैतृक-दोष के कारण भी कुछ रोग और दोष आ सकते हैं। कुछ वो कारण भी हो सकते हैं। यह जो हेरीडिटी से आ रहा है, यह प्रारब्ध है। ऐसा नहीं होता कि पिछले जन्म के कर्मों का फल आज अचानक से ईश्वर यूँ चिपका दें। प्रारब्ध का जो फल है, वो हेरीडिटी से मिलेगा, पैतृक रोगों के रूप में मिलेगा, वहीं से आएगा जेनेटिकली।
स कहीं प्राकृतिक कारणों से भी हमको रोग और दुःख आ सकते हैं। और बहुत सारे कारण हैं।
इस जन्म के दुःख के तीन कारण है :- अपनी गलतियाँ, दूसरों के द्वारा किया गया अन्याय और प्राकृतिक दुर्घटनाएं। आनुवांशिक को मिलाकर, दुःख के चार कारण हो सकते हैं। इनमें से कौन सा कारण कितना रोग या दुःख उत्पन्ना कर रहा है, यह पूरा-पूरा जानना-समझना और कहना बहुत कठिन है।

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