हर एक की स्वाभाविक आयु अलग-अलग है। क्योंकि हर एक के कर्म अलग-अलग हैं, इसलिए हर एक का फल भी अलग-अलग है। इसलिए हर एक के शरीर में शक्ति अलग-अलग भरी है।
स परमात्मा ने जन्म के समय हमारे शरीर में जितनी शक्ति भर दी, वो शक्ति जब तक चलेगी, बस तब तक हमारी उमर है। वो शक्ति कोई सत्तर साल में खर्च करेगा, कोई अस्सी साल तक, कोई सौ साल तक खर्च करेगा।
स आयुर्वेद आयु ( जीवन) के बारे में बताता है। आयुर्वेद में एक सौ एक प्रकार की मृत्यु लिखी हुई है। और लिखा है कि उसमें से केवल एक मृत्यु स्वाभाविक (काल मृत्यु) है। केवल एक मृत्यु है स्वाभाविक। वह हमारे कर्म के फल से होती है और वो अत्यंत वृ(ावस्था में होती है। जब शरीर की सारी शक्ति खत्म हो जाती है, तब जीवात्मा शरीर छोड़ देता है, यही है स्वाभाविक मृत्यु।
जैसे मान लीजिए, एक व्यक्ति ने अपनी टॉर्च में दो बैटरी सेल डाल रखें हैं। वो टार्च को थोड़ा-थोड़ा प्रतिदिन प्रयोग करता है, धीरे-धीरे बैटरी सेल की शक्ति घटती जाती है और घटते-घटते एक दिन बिलकुल खत्म हो जाती है। अब आगे बैटरी सेल से वो टॉर्च नहीं जलती। जैसे बैटरी सेल की शक्ति धीरे-धीरे खत्म हो जाती है, यह उसकी ‘स्वाभाविक-मृत्यु’ (नेचुरल-डेथ) है। इसी प्रकार से शरीर की शक्ति धीरे-धीरे खर्च होते-होते, अत्यंत वृ(ावस्था में सारी शक्ति खत्म हो जाती है, बिल्कुल बैटरी सेल की तरह, उसका नाम है- स्वाभाविक मृत्यु (नेचुरल डेथ)।
स बाकी सौ प्रकार की मृत्यु अस्वाभाविक, आकस्मिक, अकाल-मृत्यु या एक्सीडेंटल डेथ है। यह पहले से लिखी हुई (डिसाइडेड) नहीं है। अगर कोई उस बैटरी सेल के ऊपर हथौड़ा मार दे, और तोड़ डाले, तो यह बैटरी सेल की अकाल मृत्यु (एक्सीडेन्टल डेथ) है। स्वाभाविक मृत्यु के पहले सौ प्रकार से मृत्यु हो सकती है। कोई जहर पी ले, कोई पंखे पर लटक जाए, कोई नदी में कूद जाए, कोई पिस्तौल से गोली मार ले, कोई बिजली का तार पकड़ ले, कोई ट्रेन के नीचे कट जाए, कोई प्लेन-क्रेश में मारा जाए, कोई ट्रेन-एक्सीडेंट में मारा जाए, कोई रोड-एक्सीडेंट में मारा जाए, कोई आतंकवादी गोली मार दे, कहीं पहाड़ से खाई में गिर जाए, पता नहीं कितने तरीकों से मर सकता है व्यक्ति। ये सब की सब दुर्घटना से अकाल मृत्यु यानि एक्सीडेंटल-डेथ हैं। यह पहले से निश्चित नहीं। इसलिए सड़कों पर लिखा रहता है कि – “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी”। इसलिए सावधानी से चलो, दुर्घटनाओं से बचो। इस प्रकार हमारी आयु को घटाना-बढ़ाना हमारे हाथों में है।