शास्त्रों में यह बात कही गई है कि यह संसार, लौकिक सुख के लिए और मोक्ष प्राप्ति के प्रयोजन से बनाया गया है। योगदर्शन में भी कहा गया है कि जो संसार का सुख है, वो शु( सुख नहीं है। उस सुख में दुःख मिश्रित है। इसमें थोड़ा विरोधाभास जैसा प्रतीत होता है। यह प्रश्न है।
इसका समाधान यह है कि :-
स एक व्यक्ति को भूख लगी थी, उसने अच्छी तरह से पेट भरकर खाना खा लिया। दूसरा व्यक्ति अभी भूखा बैठा है, उसने अभी खाया नहीं। दोनों के सामने फिर से भोजन रख दिया जाए, तो दोनों व्यक्ति अलग-अलग व्यवहार करेंगे। जो खा चुका है, वो तो नहीं खाएगा। और जिसने नहीं खाया, वो खाएगा। वही भोजन, एक जैसा भोजन, एक व्यक्ति खा रहा है, लेकिन दूसरा नहीं खा रहा है। क्योंकि उन दोनों की आवश्यकता अलग-अलग है। जो खा चुका, उसका पेट भर गया, इसलिए अब वो नहीं खाएगा। और जिसको भूख लगी है, खाना नहीं खाया है, वो खाएगा।
स इसी प्रकार से संसार में जो सुख है, वो दुःख से मिश्रित है, यह बात बिल्कुल सत्य है। लेकिन हर व्यक्ति का ज्ञान-विज्ञान का जो स्तर है, वो अलग-अलग है। एक व्यक्ति कहता है कि मुझे सुख चाहिए। इन्द्रियों से जो भोगा जाता है, मुझे तो वो लौकिक सुख चाहिए। जैसे – खाना, पीना, घूमना, फिरना आदि, इन चीजों से जो सुख मिलता है, वो मुझे चाहिए। इससे स्पष्ट है कि उस व्यक्ति को संसार में केवल सुख ही दिखता है, दुःख दिखता ही नहीं।
स यद्यपि संसार में सुख भी है और दुःख भी है। लेकिन उसको केवल सुख ही दिखता है। अब यहाँ पर दृष्टिकोण का अन्तर है। जिसको संसार में सुख ही दिखता है, वो उस सुख को भोगेगा। लेकिन जिसका ज्ञान बदल गया, उसको दुःख भी दिखने लगा तो वो भोगना बंद कर देगा। अब वो बोलेगा-”ये नहीं चाहिए। मुझे शु( सुख चाहिए, लेकिन यह सुख, दुःख मिश्रित है। यह बात मुझे समझ में आ गई।” इसलिए अब वो उस सुख को नहीं भोगेगा।
स जब लोग कहते हैं कि हमको प्राकृतिक सुख चाहिए, तो भगवान तो फिर
देने वाला है न। वो तो यह सृष्टि बनाकर देगा ही। शास्त्रों में यह जो कहा है कि लौकिक-सुख को भोगने के लिए यह संसार बनाया गया। उसका अर्थ है कि हम सांसारिक सुख-दुःख को भोगने वाले, सकाम कर्म कर चुके हैं। उन कर्मों का फल भोगना है। आपने ऐसे कर्म किए। इसलिए उसका सुख भोगो, खाओ-पियो, घूमो-फिरो, सभी इन्द्रियों का सुख लो। पिछले कर्मों का फल भोगने के लिए यह संसार बनाया। जैसा कर्म है, वैसा ही तो ईश्वर फल देगा। अच्छे कर्म किए, उसका सुख ले लो, बुरे कर्म किए उसका दुःख भी भोगो। और खाते-पीते, भोगते आपको जब इस सांसारिक सुख में दुःख दिखने लगे, तब इसको छोड़ देना और मोक्ष को पकड़ लेना। तब आपका लक्ष्य बदल जाएगा। पर जब तक आपको इसमें दुःख नहीं दिखता, तब तक यही आपका लक्ष्य है।
स एक उदाहरण से बात और समझ में आएगी। मान लीजिए, अहमदाबाद में एक बहुत अच्छी हलवाई की दुकान से कोई बढ़िया सी मिठाई लेकर आए और प्लेट में आपके सामने रख दे। और बोले-”लो जी खाओ, बड़ी स्वादिष्ट, सुगंधित और देखने में भी सुन्दर मिठाई है।” आपको उसमें सुख दिखता है, इसलिए अब आपने उसे खाने के लिए हाथ बढ़ाया। इतने में उस दुकान का एक नौकर, दौड़ता-दौड़ता आया, और कहने लगा- ”ठहरो….ठहरो….ठहरो, जो मिठाई आप हमारी दुकान से लाए हैं, उस मिठाई में थोड़ा सा पोटैशियम सायनाइड मिला है।” अब बताइए, क्या आप मिठाई खा सकते हैं ? अब आपको क्या दिखने लग गया? अब आपको उसमें दुःख दिखने लग गया। पहले सुख दिख रहा था। प्लेट वही, मिठाई वही, केवल आपका विचार, आपका ज्ञान और आपकी दृष्टि बदल गई। पहले जो चीज आपको सुखदायी दिख रही थी, वही अब दुःखदायी दिख रही है। इसलिए अब आप उसे नहीं भोगेंगे। अब आप कहेंगे-यह दुःख मिश्रित मिठाई है, हमें यह नहीं चाहिए। हो सकता है-आप तीव्रता से, उग्रता से उसका नाम ही बदल दें। आप कहेंगे- यह मिठाई नहीं है, यह तो जहर है। कोई कहेगा-”भाई ! जहर क्यों बोलते हो, यह मिठाई ही तो है।” आप कहेंगे-”श.. श…. मिठाई का नाम मत लो, इसे जहर बोलो।”जहर बोलेंगे, तो इच्छा नहीं होगी, छूट जाएगी। मिठाई बोलेंगे, तो खाने की इच्छा होगी। फिर खाएँगे, फिर परिणाम भोगना पड़ेगा।
इस प्रकार जिस व्यक्ति की मिठाई खाने की इच्छा है, उसको पता नहीं कि इसमें पोटैशियम सायनाइड है, वो खाएगा और मरेगा। जिसको मालूम है कि इसमें पोटैशियम सायनाइड है, न खाएगा, न मरेगा, वह तो बच जाएगा।
संसार के, इन्द्रियों से भोगे जाने वाले, जो भी लौकिक-सुख हैं, ये दुःख से मिश्रित हैं। इनमें दुःख का जहर मिला हुआ है। जिसको वो जहर नहीं दिखता है, जिसको वो दुःख नहीं दिखता है, वो इनका सुख भोगेगा, और इसलिए उसे दुःख भी भोगना होगा। वो मिठाई भी खाएगा और जहर भी खाएगा।
स भगवान ने तो उनको सावधान कर रखा है-”ऐ भाई, इनके पीछे मत पड़ो, नहीं तो तुम्हें परिणाम में दुःख भोगना पड़ेगा। एक सुख के बदले चार-चार दुःख भोगने पड़ेंगे।” अब लोग न पढ़ें, न सुनें, इस बात पर ध्यान न दें, तो भगवान क्या करे? उसका दोष थोड़े ही है, यह लोगों का दोष है।
स यदि वेद-शास्त्रों को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि उसमें मोक्ष को ही अंतिम लक्ष्य बताया है, कोई और लक्ष्य बताया ही नहीं।अब मोक्ष वाले निष्काम कर्म करो, तो ईश्वर आपको मोक्ष का सुख भी देंगे।
स लोगों की योग्यता कम है, लोगों के ज्ञान का स्तर कम है, इसलिए उन्हें ऐसा लगता है कि खाने-पीने में बड़ा सुख है। इसलिए वे खाने-पीने के, भौतिक-सुखों के पीछे पड़ जाते हैं।
एक और उदाहरण देता हूँ। जब हम छोटे बच्चे थे, तो हमारी खुशी के लिए हमारे माता-पिता क्या करते थे? छोटे-छोटे खिलौने लाकर देते थे। बच्चा उन खिलौनों से खेल सकता है, और उसमें खुश हो सकता है। मगर बीस साल के जवान को वही गुड्डे-गुड़िया, वगैरह दो, तो क्या वह उनसे खेलेगा, और उनसे खुश हो जाएगा? नहीं होगा न। वे खिलौने छोटे बच्चे को प्रसन्ना कर सकते हैं, युवा और वृ( व्यक्ति को प्रसन्ना नहीं कर सकते। इसी तरह से जो ज्ञान की दृष्टि से छोटा है, ज्ञान का स्तर जिसमें कम है, जिसको संसार में सुख दिखता है, उसको तो ये संसार की वस्तुएँ सुख दे सकती हैं, बिल्कुल खिलौनों की तरह।जिसका ज्ञान विकसित हो गया, वो बीस साल का युवा व्यक्ति जैसा हो गया। खाना-पीना, घूमना-फिरना, गपशप मारना, संगीत सुनना, इसमें जो सुख ले रहे हैं, यह तो बच्चों की खिलौनों वाली बात है। हमारी उम्र बीस साल की हो गई, अब ये खिलौने हमको खुश नहीं कर सकते। अब तो हमको भगवान का सुख चाहिए। यह दुनिया का सुख तो बच्चों के खिलौने वाला जैसा सुख है। यह हमको नहीं चाहिए। हमको ये चीजें ज्यादा आकर्षित नहीं कर सकतीं। यह ज्ञान के स्तर की बात है।
स जिस-जिस व्यक्ति को यह समझ में आ जाता है कि ये संसार के सुख, खिलौनों की तरह हैं। अब मुझे ये नहीं चाहिए, मैं इनसे थक गया हूँ, मुझे तो ईश्वर का मोक्ष वाला सुख चाहिए। वह सांसारिक सुख भोगना छोड़ देता है। जब सांसारिक सुख छोड़ देता है, तो उसके साथ जो दुःख मिल रहा था, वह भी छूट जाता है। फिर वो ईश्वर को पकड़ता है और समाधि लगाकर मोक्ष में चला जाता है।
स इस तरह ईश्वर ने पिछले कर्मों का फल भुगवाने के लिए और मोक्ष की प्राप्ति कराने के लिए यह सृष्टि बनाई।