अब इस प्रश्न का क्या उत्तर दें ? परन्तु जब उच्च शिक्षित व्यक्ति व परिवार ऐसा प्रश्न उठायें तो कुछ समाधान करना प्रत्येक आर्य का कर्त्तव्य है I हम महर्षि दयानन्द जी द्वारा इस प्रश्न का उत्तर पाठकों की सेवा में रखते हैं I सर्वकामनाएं ऐसे पूर्ण होती हैं I
१. “जिसके सुधरने से सब सुधरते और जिसके बिगड़ने से सब बिगड़ते हैं इसी से प्रारब्ध की उपेक्षा पुरुषार्थ बड़ा है I”
२. फिर लिखा है “ क्योंकि जो परमेश्वर की पुरषार्थ करने की आज्ञा है उसको जो कोई तोड़ेगा वह सुख कभी न पावेगा”
३. “जो कोई ‘गुड मीठा है ‘ ऐसा कहता है उसको गुड प्राप्त वा उसको स्वाद प्राप्त कभी नहीं होता I और जो यत्न करता है उसको शीघ्र वा विलम्ब से गुड मिल ही जाता है “
४. “जो मनुष्य जिस बात की प्रार्थना करता है वैसा ही वर्तमान करना चाहिए “
५. “अपने पुरुषार्थ के उपरान्त प्रार्थना करनी योग्य है “
वेदोपदेश आर्ष वचनों के प्रमाण तो हमने दे दिए पोंगापंथी टोटके और अनार्ष वचनों को हम जानते हैं परन्तु उनकी शव परीक्षा यहाँ नहीं करेंगे I धर्म कर्म मर्म हमने ऋषी के शब्दों में दे दिया है .
परोपकारी अक्टूबर (द्वितीय) २०१४