सीखने वाला व्यक्ति हर घटना से सीखता है, फिर चाहे वह सुखदायक हो या दुःखदायक। इसलिए सुख को याद भी रखो और भूल भी जाओ। इसी प्रकार दुःख को याद भी रखो और भूल भी जाओ। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने हमें दुःख दिया, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि इसने हमारा नुकसान किया है। अतः भविष्य में इससे सावधान रहा जाए। यदि इस दृष्टि से याद रखें, तो ठीक है। पर यह सोचकर याद नहीं रखना चाहिए कि वह बड़ा खराब है, यदि मौका मिला, तो मैं इससे बदला जरूर लूँगा। इस प्रकार के दुःख को याद नहीं रखना चाहिए। इससे द्वेष पैदा होता है। इसलिए इसे भूल जाना ही बेहतर है।
इसी प्रकार यदि हम संसार की वस्तुओं को यह सोचकर भोगेंगे कि इसमें बड़ा सुख है और यह हमें बार-बार प्राप्त होना चाहिए, तो ऐसा करना गलत है। इस प्रकार सोचने पर हमें राग हो जाएगा और हम माया के जंजाल में फँस जायेंगे। इसलिए सुख को इस रूप में याद रखो कि हमने पदार्थों का उपभोग किया और स्वस्थ जीवन जिया। इसी का नाम सामान्य सुख है।
जीवन में केवल सामान्य सुख याद रखना चाहिए, बस। बाकी जो इंद्रिय-सुख है, उसे भूल जाना ही बेहतर है। ऐसा करने पर ही ‘वैराग्य’ होगा और ‘मोक्ष’ की ओर बढ़ना संभव हो पाएगा।