शुभ कर्म निष्काम भावना से किस प्रकार किए जाते हैं? किराने का व्यापारी अपनी दुकानदारी निष्काम-भावना से किस प्रकार कर सकता है?

जो कर्म ‘भौतिक-सुख’ की प्राप्ति के लिए किए जाते हैं, वे ‘सकाम-कर्म’ होते हैं। और जो कर्म ‘मोक्ष-सुख’ की प्राप्ति के लिए किए जाते हैं, वे ‘निष्काम-कर्म’ होते हैं।
स सवाल है कि किराने का व्यापारी अपनी दुकान पर जो सामान बेचता है, वो धन कमाने के लिए बेचता है, या मोक्ष प्राप्ति के लिए बेचता है? निःसंदेह धन की प्राप्ति के लिए। तो उसका यह सकाम-कर्म हुआ।
स सकाम कर्म ‘कंडीशनल कर्म’ हैं। मतलब, इतना रुपया दोगे, तो माल देंगे, इतना रेट नहीं दोगे, तो माल नहीं देंगे। आप इतनी फीस दोगे तो पढ़ाएंगे, नहीं दोगे तो नहीं पढ़ाएंगे, यह सकाम-कर्म है। हमारा उद्देश्य धन कमाना है, फीस लेना है। इस तरह अगर ट्यूशन फीस लेते हैं, तो वो सकाम-कर्म है।
स अगर फ्री में पढ़ाते हैं, तो निष्काम-कर्म हैं। हम क्यों फ्री में पढ़ा रहें हैं, क्योंकि हमको मोक्ष चाहिए, धन की चिंता नहीं है। जीने के लिए भगवान दो रोटी देता है, यही बहुत है। अब तक जीवन जी लिया, आगे भी जी लेंगे। भगवान खूब दे रहा है, आगे भी दे देगा। धन के लिए काम नहीं करना है, सम्मान के लिए काम नहीं करना है, भौतिक सुख के लिए काम नहीं करना है। अगर मोक्ष की प्राप्ति के लिए काम कर रहे हैं तो यह ‘निष्काम-कर्म’ है।
स इसलिए व्यापारी आदि जो लोग हैं, वे तो सकाम-कर्म ही कर पाएंगे, निष्काम-कर्म तो नहीं कर पाएंगे। ऐसा तो नहीं कर पाएंगे कि सामान रखा है, जिसको लेना है, ले जाओ। जितना धन रखना है, रख जाओ। ऐसे तो दुकान नहीं चल पाएगी।
स व्यापार आदि में निष्काम-कर्म करना कठिन है। हाँ, विद्या पढ़ाने में निष्काम-कर्म हो सकता है। विद्या पढ़ाने में कोई हिम्मत वाला ऐसा हो कि कहे -”अच्छा भई, आओ बैठो, पढ़ाएंगे। जिसको कुछ देना हो, तो दे देना, नहीं देना हो, तो मत देना, कोई कंडीशन नहीं है, कोई फीस नहीं है।” उसमें तो चल सकता है।
स अगली बात-व्यापारी ने पैसे कमा लिए सौ रुपये। उसमें से तीस-चालीस रुपए खा-पी लिए, खर्च कर लिए, तीस-चालीस रुपए भविष्य के लिए जमा कर दिए। अब दस-बीस रुपए बच गए, इन्हें वह दान दे दे। इस प्रकार दिया गया दान भी निष्काम-कर्म हो सकता है।
स पूछा है कि गृहस्थ व्यक्ति निष्काम-कर्म कैसे करे? वो इस तरह से कर सकता है। कमाने के बाद जो पैसा दान में देगा, वो सकाम और निष्काम दोनों हो सकता है। यदि वो विद्यालय के लिए दान देते समय कहता है – ”साहब ! मेरे नाम का पत्थर लगाओ। यहाँ लिखो कि मैंने सवा लाख रुपये दान दिया।” तो वह सकाम-कर्म हो जाएगा। और अगर वह कहता है-” मेरा नाम नहीं लेना, बताना भी नहीं, बोलना भी नहीं, लिखना भी नहीं, कुछ नहीं, चुपचाप गुप्तदान”। तो वह निष्काम-कर्म हो जाएगा।
एक मजे की बात बताऊँ – एक व्यक्ति की दोनों तरह की स्थिति थी। मतलब कुछ सकाम, कुछ निष्काम। गुरुजी ने उपदेश दिया – ”भई निष्काम-कर्म करो, मोक्ष में जाएंगे।” यह सुनकर उसने सौ रुपये दान दिया और पर्ची लिखवा दी, गुप्तदान। एनाउंसमेंट होने लगी। माइक पर आवाज आई, सौ रुपये गुप्तदान आया है। जिसने सौ रूपये दिये थे, वो पीछे बैठा था। उसने अपने पड़ोसी से कहा – ”तुम्हें पता है, यह सौ रुपये गुप्तदान किसका है? यह मेरा गुप्तदान है।” इस तरह वो बताना भी चाहता है और गुप्त भी रखना चाहता है। ये बात मिश्रित (मिक्सड) है, न तो पूरी तरह सकाम और न ही निष्काम।
स निष्काम-कर्म का अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि, ‘जिस कर्म को करने के पीछे कुछ भी कामना न हो।’ कुछ न कुछ कामना तो मन में रहेगी ही। दरअसल, दुनिया में सर्वथा-निष्काम कोई भी नहीं हो सकता। मतलब, ऐसा कोई कर्म हो ही नहीं सकता, और कोई व्यक्ति ऐसा कर्म कर ही नहीं सकता कि जिस कर्म के पीछे मन में कोई भी कामना न हो। वस्तुतः कोई न कोई कामना तो जरूर होगी। व्यक्ति को दो में से एक तो चाहिए, या तो मोक्ष चाहिए, या संसार का सुख चाहिए।
स अगर कोई व्यक्ति यह चाहता है कि मैं कुछ भी कामना न करूँ। फिर तो वो काम ही नहीं करेगा। जब इच्छा ही नहीं है, तो काम क्यों करेंगे? सुबह बिस्तर पर पड़े रहेंगे, उठेंगे ही नहीं। व्यक्ति सुबह उठता है, फिर नहाता-धोता है, रोजमर्रा के सारे काम करता है, फिर देश की सेवा करता है, धर्म करता है, प्रचार करता है, व्यापार करता है, लेन-देन करता है। इच्छा चाहे भौतिक-सुख की हो, चाहे मोक्ष-सुख की हो, लेकिन कोई न कोईं इच्छा मन में जरूर होगी।
स महर्षि मनु जी कहते हैं कि – यह ‘आँख झपकाना’ भी बिना इच्छा के संभव नहीं है। इतना सामान्य सा कार्य है, जब यह भी बिना इच्छा के नहीं होता, तब अन्य कार्यों (यज्ञ करना, दान देना, व्यापार करना आदि कर्मों) में पूर्ण-निष्कामता (इच्छाहीनता) कैसे संभव है?
स यदि केवल मोक्ष की इच्छा से आपने अच्छे कर्म किए हैं तो वे ही ‘निष्काम कर्म’ की श्रेणी में आएंगे। मोक्ष वाले कर्म न तो बुरे होते हैं और न मिश्रित। वे तो केवल शु( ही होते हैं, शुभ कर्म ही होते हैं।
स भौतिक सुख की इच्छा से, चाहे आपने अच्छे कर्म किए, चाहे बुरे किए, चाहे मिश्रित किएऋ तीनों प्रकार के कर्म सकाम-कर्म कहलाएंगे। इस तरह सकाम कर्म तीन प्रकार के यानी अच्छे, बुरे और मिश्रित होते हैं।
अतः टोटल चार तरह के कर्म हुए, एक तो निष्काम कर्म, जो शु(, शुभ कर्म, अच्छे कर्म होते हैं और तीन प्रकार के सकाम कर्म, जो शुभ, अशुभ और मिश्रित होते हैं।

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