प्रेम और राग में अंतर है। प्रेम का अर्थ है, रुचि, आकर्षण। ईश्वर में प्रेम होना चाहिए, ईश्वर में रुचि होनी चाहिये, ईश्वर में आकर्षण होना चाहिए। लेकिन जो राग है, राग में गड़बड़ है।
स राग में क्या गड़बड़ है? राग में आसक्ति (अटैचमेंट( है, वो अटैचमेन्ट अविद्या से पैदा होती है। जो रुचि, जो आकर्षण ‘अविद्या’ के कारण पैदा होती है, उसको बोलते हैं-‘राग’। और जो रुचि, जो आकर्षण ‘विद्या’ (तत्त्व ज्ञान( से पैदा होती है, उसको बोलते हैं-‘प्रेम’।
स प्रेम सबसे करना चाहिए। गाये से, घोड़े से, पशु-पक्षी, मनुष्य, ईश्वर सबसे प्रेम करना चाहिए। प्रेम करने का विधान है। अहिंसा का मतलब है, ‘सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना।’
स प्रेम सबसे करना चाहिए, पर राग किसी से भी नहीं करना चाहिए। धन से, पुत्र से, परिवार से, संपत्ति से, मोटर-गाड़ी, सोने-चांदी आदि किसी भी चीज से राग नहीं करना चाहिए। राग, दुःख-दायक है। प्रेम, दुख दायक नहीं है। क्योंकि राग ‘अविद्या’ के कारण उत्पन्न होता है, और प्रेम ‘तत्त्व-ज्ञान’ के कारण उत्पन्न होता है। इसलिए दोनों में अंतर है।