वृक्ष साँस लेता है, वृक्ष जीवित रहता है, और मिट्टी, पानी खुराक भी लेता है, धूप भी लेता है। और फिर उसके बाद जैसे मनुष्यों से आगे मनुष्य पैदा होते हैं, गाय-घोड़े से गाय-घोड़े पैदा होते हैं, वैसे ही वृक्षों से आगे वृक्ष भी पैदा होते हैं। वैसे ही वनस्पतियों की भी नस्ल से आगे वैसी ही नस्ल चलती हैं। उनकी पीढ़ी (जनरेशन( भी आगे चलती है। संतति-उत्पत्ति भी होती है। जैसे आलू से आलू होता है, टमाटर से टमाटर होता है, गेहूँ से गेहूँ होता है। ये सारे लक्षण जीवन को सि( करते हैं।
और यदि जीवन है, तो वहाँ आत्मा है। जैसे मनुष्य जीवित रहता है, सांस लेता है, वैसे ही वनस्पतियाँ भी सांस लेती है, अतः उनमें भी जीवन होता है। इनमें आत्मा होती है, ऐसा ही मानना चाहिये।