पूछना शायद ऐसा चाहते हैं कि मोक्ष की कामना भी तो एक कामना है? यदि मोक्ष की कामना से कर्म किया गया, तो फिर वह निष्काम-कर्म कैसे हुआ? कामना तो उसमें भी है। उत्तर हैः-
स महर्षि दयानंद जी ने )ग्वेदादि भाष्य भूमिका में परिभाषा लिखी है कि – ”परमेश्वर प्राप्ति या मोक्ष प्राप्ति को लक्ष्य बनाकर जो कर्म किए जाते हैं, उसका नाम ही निष्काम कर्म है।”
स बिना कामना के तो कर्म हो ही नहीं सकता, वह असंभव है। व्यक्ति जो भी क्रिया करता है, वो कामनापूर्ण ही होती है। यह बात ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लिखी है। कामना तो जरूर है।
स कामनाओं में अंतर है। अगर लौकिक-सुख की कामना से किया तो वह सकाम-कर्म है और मोक्ष सुख की कामना से कर्म किया तो निष्काम-कर्म है। ऐसा जानना चाहिए।