व्यक्ति किसी डेढ़ साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर जान से मार देता है। वो पकड़ा जाता है। जज उसकी सजा फांसी के रूप में देता है। यह हिंसा है या अहिंसा?

इसका उत्तर यह है, कि यह अहिंसा है। हमेशा याद रखें- जो न्याय है, वह अहिंसा है। और जो अन्याय है, वह हिंसा है। अगर जज उसको मृत्युदण्ड देता है, तो बहुत अच्छा करता है। यह न्याय है, अहिंसा है। हमारा शास्त्र यह कहता है, कि उसको यह दण्ड सड़क पर, चौराहे पर देना चाहिए। आजकल की भाषा में बोलें, तो दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में बहुत से लोगों को बुलाना चाहिए। पचहत्तर हजार लोग उसमें बैठ सकते हैं। सबके सामने उसको फांसी दो। और उसका लाइव टेलीकास्ट करो। जैसे पूरे देश में क्रिकेट मैच का लाइव टेलीकास्ट करते हैं, वैसा उसका प्रसारण होना चाहिए। पूरे भारत के लोगों को दिखाओ, कि ऐसे अपराध करने वालों को क्या दण्ड दिया जाता है। ऐसे पाँच-दस लोगों को फांसी मिल जावे, तो पन्द्रह दिन के अन्दर ऐसे अपराध बंद हो जाएँगे। फांसी मिलेगी पन्द्रह लोगों को, और लाखों लोग इससे सुधर जाएँगे। महर्षि मनु जी का, वेद का यह संविधान है कि अपराधी को कठोर दण्ड देना चाहिए। एक-दो, पाँच-पन्द्रह को मिलेगा, लेकिन करोड़ों लोग सुधर जाएँगे। इसलिए वह न्याय है, अहिंसा है।

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