वेद में विज्ञान है। लेकिन वेद पढ़े बिना कुछ देश या लोग वैज्ञानिक उन्नति कर रहे हैं, तो वेद पढ़ने की वैज्ञानिक दृष्टि से क्या आवश्यकता है?

वेद की भाषा भी ईश्वर ने बनायी और उसमें व्याकरण के नियम भी साथ में थे। वेद में सारी सत्य विद्याओं का उपदेश है। महर्षि दयानंद जी ने लिखा है, वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तकें हैं। वेद में व्याकरण है, गणित है, भूगोल है, खगोल है, नौका विद्या, विज्ञान विद्या, वायरलेस विद्या, तार विद्या सब है।
स एक पुस्तक है-)ग्वेदादि, भाष्य भूमिका। इस पुस्तक को पढ़िये? आप को पता लगेगा कि वेदों में कैसी-कैसी विद्या है। सब तरह की सत्य-विद्या वेद में बतायी गयी है। फिर आगे )षियों ने एक-एक विद्या को छाँट-छाँट करके अलग-अलग ग्रंथ बना दिये, ताकि लोग आसानी से पढ़ सके, समझ सकें।
स देखिये, ये लोग जो समझ रहे हैं, कि वेद पढ़े बिना ही वैज्ञानिक लोग उन्नति कर रहे हैं, यह भ्रांति है। कोई भी वैज्ञानिक बिना वेद पढ़े विज्ञान की खोज नहीं कर सकता। )ग्वेदादि भाष्य भूमिका आदि ग्रंथों में महर्षि जी लिखते हैं, कि संसार में जितना भी सत्य फैला है, वह सब वेदों में से गया है। ‘कोई भी व्यक्ति वेद पढ़े बिना विद्वान नहीं हो सकता। अगर ईश्वर ने वेद न बनाये होते और वेदों को पढ़कर मनुष्य विद्वान न हुए होते तो कोई भी व्यक्ति नयी खोज-नया आविष्कार नहीं कर सकता। जैसे-मैंने अभी निवेदन किया। सृष्टि के आरभ में ईश्वर ने चार वेदों का ज्ञान चार )षियों को दिया। उन्होंने अन्य मनुष्यों को पढ़ाया । उन्होंने फिर अन्यों को पढ़ाया। इस प्रकार से पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ते पढ़ते आये। तब बु(िमान हुये। हमने बहुत कुछ गुरुओं से, अपने शिक्षकों से, अध्यापकों से पढ़ा।
स भाषा भले ही अंगेजी हो, जर्मन हो, फ्रेंच हो, लेटिन हो, जो भी हो, हमने वेद ही पढ़ा है। जो-जो सत्य विद्या पढ़ी, वो सब वेद है। भाषा बदल जाने से विद्या नहीं बदल जाती है। हिन्दी भाषा में गणित पढ़ाइये 5ग्8त्र40 ठीक है। अब इसको अंग्रेजी में पढ़ाइयें-”5 पदजव 8 मुनंस जव वितजल” । यहां पर भाषा बदल गई, लेकिन क्या गणित बदल गया? गणित तो वही है, चाहे आप हिन्दी में पढ़ाओ, अंग्रेजी में पढ़ाओ, चायनीज में पढ़ाओ, चाहे जपानी में पढ़ाओ, किसी भी भाषा में पढ़ाओ। तो जितने भी लोग सारी दुनिया भर में सत्य विद्या पढ़-पढ़ा रहे हैं, उनकी भाषाऐं अलग-अलग हैं। लेकिन वो सारी विद्या वेद में से गयी है। इसलिए दूसरी भाषाओं में दूसरी पुस्तकों के रूप में वो वेद ही पढ़ा रहे है। और गुरु से बिना पढ़े कोई साइंटिस्ट नहीं बन सकता। हजारों साल तक जंगली जीतियाँ, जंगली ही रहीं। उन्होंने कोई भी आविष्कार नहीं किया। कोई उनमें बु(ि का विकास नहीं कर पाये। अब उनमें से कुछ लोग नगर में आये या उनके लिये शिक्षा का प्रबंध किया गया, तो वो पढ़-लिखकर बु(िमान हो गये। जिस भी भाषा में व्यक्ति पढ़ता है, अगर वो सत्य पढ़ता है, सच्ची विद्या ही पढ़ता है, तो वो वेद ही पढ़ रहा हैं। भाषा बदल जाने से वेद नहीं बदलता। इसलिये संसार में जितने भी वैज्ञानिकों ने जितने भी आविष्कार किये, वे सब अपनी-अपनी भाषा में वेद = (सत्य विद्या( पढ़कर ही किये हैं ।

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