वेद के होते हुए भी ‘गीता’ का उपदेश देने का क्या प्रयोजन है?

गीता बहुत अच्छी पुस्तक है, उसमें बहुत सारी बातें ठीक हैं। वे वेद व्यास जी की लिखी है। उसमें श्रीकृष्ण जी का उपदेश है। जो व्यक्ति कर्तव्य से विमुख हो गया, उसको कर्तव्य परायण बनाने के लिये ग्रन्थ है। व्यक्ति उसको पढ़ के जोश में आयेगा और अपना काम शुरू कर देगा। बस गीता का इतना ही प्रयोजन है।
स गीता का उपदेश किसने दिया था? श्रीकृष्ण जी ने। किसको दिया था? अर्जुन को। कहाँ पर दिया था? यु( के मैदान में। क्यों दिया था? अर्जुन बेचारा ढ़ीला पड़ गया था। ये सारे चाचा-मामा, ताऊ सामने खड़े हैं। इनको मारूंगा, तो मुझे पाप लगेगा, मुझे तो नरक में जाना पड़ेगा। मैं नहीं लडूंगा। वो बेचारा घबरा गया, उसको भ्रान्ति हो गई, उसने हथियार छोड़ दिये।
स इस स्थिति में श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश दिया। क्या उपदेश दिया? अर्जुन देख, इस समय तेरी बु(ि काम नहीं कर रही। तुझे भ्रान्ति हो गई है। तू यह समझता है कि ये चाचा-मामा, ताऊ सारे मार डालूंगा, तो पाप लगेगा। तुझे पाप नहीं लगेगा। मैं ठीक होश में हूँ और जो कहता हूँ, मेरी बात सुन। तेरी बु(ि इस समय ठीक काम नहीं कर रही है। तू इनको मार, तुझे कोई पाप नहीं लगेगा।
स क्यों मार? क्षत्रिय का धर्म क्या है? जो अन्याय के विरू( लड़ता है, वो क्षत्रिय कहलाता है। जो अन्यायी का विनाश करे, वो क्षत्रिय है। अब ये सारे जितने लोग खड़े हैं, सब अन्याय के पक्ष में हैं, तो इनको मारना तेरा धर्म है। अब तू अपने धर्म का पालन नहीं करेगा, तो लोग क्या कहेंगे, कि अर्जुन तो कायर था, मैदान में पीठ दिखाकर भाग गया, हथियार छोड़कर भाग गया। क्षत्रिय तो अपने धर्म का पालन करता है। अन्यायकारियों को मारना, यह क्षत्रिय का धर्म है। तू क्षत्रिय है, उठा अपने तीर-तलवार और मार इन लोगों को। फिर तुझे क्यूं लगता है, कि मैं इन चाचा-मामा, ताऊ को मारूंगा, तो मुझे पाप लगेगा।
स अब यह तो प्रासंगिक बात आ गई कि चाचा-मामा, ताऊ, गुरू, रिश्तेदार जो भी हैं, ये तो आत्मायें हैं। रिश्ता किन से है, आत्माओं से है, या शरीर से है? रिश्ता तो आत्माओं से है, और आत्मा तो मरती नहीं। फिर तू क्यों डरता है, किसको मार डालेगा, कोई नहीं मरने वाला। यह तो प्रासंगिक बात थी, जो उसकी भ्रान्ति दूर करने के लिये कहना पड़ी। और लोगों ने इसी को ऊंचा चढ़ा दिया। आत्मा अजर-अमर है, इसको जान लो, इसका साक्षात्कार करो, इसी से मुक्ति हो जाती है। यह कोई ‘ मुक्ति प्राप्ति के लिये उपदेश नहीं था। यह तो एक ढ़ीले-ढ़ाले क्षत्रिय को जोश दिलाने वाला ग्रन्थ था। और कृष्ण जी ने बड़ी बु(िमत्ता से उपदेश दिया और वे अपने कार्य में सफल हो गये। अर्जुन की भ्रान्ति दूर हो गई और उसने कहा, ”ठीक है गुरूजी, बात मेरी समझ में आ गई। मैं लडूंगा। योगेश्वर, मेरी बु(ि ठीक हो गई, अब सारी भ्रान्ति दूर हो गई। अब आप जो कहते हो, मैं वही करूंगा। लाओ, मेरा हथियार कहाँ है।” तो यह थी गीता। यह इतिहास का ग्रन्थ है, क्षत्रियों का ग्रन्थ है। उस भावना से गीता को पढ़िये।
स आपको पता है कि गीता कहाँ से निकली? ‘उपनिषद’ में से। उसके महत्व में यही तो लिखा है न। गीता जो है, उपनिषद का सार है। और उपनिषद कहाँ से आये? वो वेद का सार हैं। इस तरह गीता तो सार का भी सार है। सार का सार पढ़ेंगे, तो थोड़ी जानकारी होगी। ओरिजनल टैक्स्टबुक पढ़ेंगे, तो आपकी नॉलेज अच्छी होगी। वेद ओरिजनल टैक्स्टबुक है, वो ईश्वर ने दिया। और उसका सार उपनिषद् है। और उसका भी सार गीता है।
स यदि मोक्ष में जाना हो, तो उसके लिये दर्शन है, उपनिषद है, वेद हैं, इन ग्रन्थों को पढ़िये। तब आपका मोक्ष होने वाला है।
स ‘टैक्स्टबुक’ पढ़ने से अधिक अच्छी जानकारी होती है या ट्वेन्टी इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन पढ़ने से ज्यादा अधिक जानकारी होती है? ‘टैक्स्टबुक’ पढ़ने से अच्छी नॉलेज होती है। गीता कोई टैक्सबुक है क्या? गीता तो ‘ट्वेन्टी इम्पॉर्टेन्ट क्वेश्चन’ सीरीज है। ओरिजनल टैक्स्टबुक को पढ़िये, वो ‘वेद’ है। वेद पढ़िये, फिर आपका नॉलेज अच्छा होगा और फिर आप मोक्ष में जा सकते हैं।
स कुछ गड़बड़ बातें बाद में लोगों ने इसमें मिक्स कर दीं। उनको अलग कर दीजिये और जो अच्छी बातें हैं, उन्हें स्वीकार कीजिये।

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