आदि सृष्टि में भगवान ने चार )षियों को चार वेदों का ज्ञान दिया। पहले धरती से वनस्पतियाँ, कीड़े-मकोड़े तैयार हुए, बाद में मनुष्य उत्पन्न हुए। उनमें भी जो सबसे अधिक बु(िमान थे, उनका नाम था )षि। इन चार )षियों के नाम थे- 1. अग्नि, 2. वायु, 3. आदित्य, 4. अंगिरा। इन चार में से एक-एक )षि )षियों को ईश्वर ने एक-एक वेद का ज्ञान दिया।
ईश्वर सर्वव्यापक (व्उदपचतमेमदज( है। वह )षियों के हृदय में भी था। आपको अपने ही अन्दर कुछ बातचीत करनी है, कुछ योजना बनानी है, तो आप बिना जबान हिलाये, मन में शब्दोच्चारण कर सकते हैं। उन चार )षियों के अन्दर बैठे हुए ईश्वर ने चार )षियों को वेद का ज्ञान दे दिया। जैसे आपको अपने आपसे बात करने के लिए चमड़े की जबान की जरूरत नहीं पड़ती, वैसे ही अपने अन्दर बात करने के लिए ईश्वर को बाहर से कान में बोलने की जरूरत नहीं पड़ती।
चार )षियों ने ईश्वर से मंत्र सीख लिये। उनके अर्थों का चित्र भी देख लिया। जिस तरह सिनेमा में पर्दे पर चित्र देखते हैं, उसी तरह मन रूपी पर्दे (स्क्रीन( पर आँख बंद करके सारे अर्थ समझ लिये।
जैसे वेद में कहा है कि- खेती करो। खेती कैसे करें, उसकी पिक्चर भगवान ने मन रूपी स्क्रीन पर बनाई। जैसे आप टेलीविजन में देखते हैं- हल बनाना, हल को बैल से जोड़ना, हल चलाना, फिर पानी डालना, घास काटना, फसल काटना। अगर भगवान यह पिक्चर नहीं दिखाते, सिर्फ वेद मंत्र पढ़वाते, मंत्र रटाते, उसका शाब्दिक अनुवाद करवाते तो भी इतने मात्र सिखाने से बात समझ में नहीं आती, जब तक कि उसका चित्र अर्थ सहित नहीं समझाया जाये। जैसे कि कक्षा में बच्चे को जब क, ख, ग सिखाते हैं। ”क” से कबूतर अपने बच्चे को रटाते हैं। फिर कबूतर लिखकर बना देते हैं। अगर कबूतर का फोटो नहीं दिखाया तो बच्चा कभी नहीं समझ पायेगा, कि कबूतर किसको कहते हैं। ऐसे ही भगवान ने सूर्य का चित्र दिखा दिया, अग्नि जलती हुई दिखा दी और बता दिया कि यह सूर्य है, यह अग्नि है। और चार )षियों की ड्यूटी लगा दी, कि भाई, मैंने तुम्हें सिखा दिया, अब आगे इन हज∙ारों लोगों को तुम सिखाओ। तब से यह पढ़ने-पढ़ाने की परम्परा चल रही है।