(कुछ ब्रह्मसमाजी सज्जनों से लाहौर में प्रश्नोत्तरअप्रैल, १८७७)
जब स्वामी जी लाहौर में थे तो एक दिन समाज के मकान में जो
अनारकली में था, ब्रह्मसमाज के लोग मिलकर आये और स्वामी जी से कहा
कि वेदों में मूर्तिपूजा का वर्णन स्थान—स्थान पर है । पण्डित भानुदत्त
ब्रह्मसमाजियों की ओर से स्वामी जी से बातचीत कर रहे थे । विशेष रूप
से उस श्रुति की भी चर्चा चली जिसमें गग, यमुना शब्द आते हैं । इस
पर आक्षेप यह था कि वेदों में गग, यमुना की पूजा भी लिखी है ।
स्वामी जी ने कहा कियदि आप लोग समस्त प्रकरण पढ़ लेते तो
यह शटा न करते । यहां पर गग यमुना नाम दो नाडि़यों का है और यह
स्थान योगाभ्यास का है । यहां पर नदियों से कुछ प्रयोजन नहीं है और इन शब्दों
के साथ विशेषकर इस प्रकार के विशेषण हैं जो नदियों पर कदापि लागू नहीं
हो सकते । उन्होंने और बहुत से प्रश्न व्याकरणादि के किये जिनका पूरा—पूरा
उत्तर ब्रह्मसमाजियों को मिल गया ।(लेखराम पृष्ठ ३२२, ३२६, ३३१)