वृक्ष में भी आत्मा है तो वनस्पति खाना, प्रयोग में लाना ठीक नहीं है, उसे हम किस अधिकार से दण्डित करें?

देखिये! वनस्पति, पेड़-पौधों में हम यह मानकर चलते हैं, कि इनमें जीव है, आत्मा है। कारण कि, उसके सारे जीवन व्यवहार से ऐसा पता चलता है। वनस्पति भी सांस लेते हैं, इनमें भी रीजेनरेशन होता है। जैसे मनुष्य में होता है, गाय, घोड़ों, पशु-पक्षियों में होता है, वैसे ही पेड़-पौधों में भी होता है। इसलिए हम मान लेते हैं, कि इनमें जीवात्मा है।
अब रही बात यह, कि पेड़-पौधों को, वनस्पतियों को, फल-फूल, अनाज को खाये, काटें, तो इसमें पाप लगता है या नहीं लगता है? तो इसका उत्तर यह है, कि इसमें पाप नहीं लगता।
बहुत से लोग शंका करते हैं, कि क्यों जी! गाय-घोड़े में आत्मा है, उसको मार के खाते हैं, तो उसमें तो पाप लगता है। इन पौधों में भी आत्मा है। जब इनको काट कूट कर खायेंगे, तो इनमें पाप क्यों नहीं लगता। मैंने कहा कि साइंस के सि(ान्तों पर तो यह प्रश्न ही नहीं उठा सकते, कि पेड़-पौधों में आत्मा होती है, इनको काट के खायें, तो हमको पाप लगेगा कि नहीं लगेगा। विज्ञान के सि(ान्तों के अनुसार तो आत्मा की सत्ता का कोई उल्लेख उनकी किताबों में नहीं है।
आध्यात्मिक शास्त्रों (वेद आदि( के आधार पर आपका प्रश्न हो सकता है, कि इनमें आत्मा मानते हैं, तो इनको खायेंगे, तो पाप लगेगा कि नहीं लगेगा? जिस किताब के आधार पर आपका प्रश्न है, उसी किताब से उसका उत्तर भी मिलेगा। तो क्या उत्तर मिलेगा? यर्जुवेद में लिखा है- ‘गोधूमाश्च, यवाश्च तिलाश्च, माशाश्च”- गेहूं खाओ, तिल खाओ, उड़द खाओ, जौ खाओ, घी-दूध खाओ, दही खाओ, मक्खन खाओ, मलाई खाओ, मिठाई खाओ, गाय का घी खाओ, दूध पियो। ”सं सिंचामि गवां क्षीरम्” भगवान कहते हैं- गाय का दूध पियो, घी खाओ, मक्खन खाओ, गेहूं का प्रयोग करो, सब अनाज का प्रयोग करो। ”रसम् ओषधीनाम्” औषधियों का रस निकाल-निकाल करके पियो। हमने कहा कि हमारा जो
धर्मशास्त्र है, वह तो हमको छूट देता है, कि औषधियों का प्रयोग कर सकते हैं, वनस्पतियों का प्रयोग कर सकते हैं। जब कानून हमें इजाजत देता है, वो हमें छूट देता है, कि इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसलिये सब्जी-भाजी, गेहूँ-चावल खाना अपराध नहीं है, कोई पाप नहीं है, कोई हिंसा नहीं है। और जो भेड़-बकरियों में आत्मा है, उसको मार के खायेंगे, तब उसमें पाप है। क्योंकि किताब- (वेदादि( में लिखा है- ”अविं मा हिंसीः” भेड़ को मत मारो, ”अजाम् माँ हिंसीः, गां मां हिंसीः बकरी,” गाय को मत मारो। ”शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे” दो पांव वाले मनुष्यों का कल्याण हो, चार पांव वाले गाय आदि प्राणियों का कल्याण हो। उनको मारके नहीं खा सकते।”मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्” तो हमारे शास्त्र में लिखा है- गाय-घोड़ों को नहीं मारो, उनको मारेंगे, तो पाप लगेगा। और वनस्पतियों को खाओ, उनको खायेंगे, तो कोई पाप नहीं लगेगा। ईश्वर के कानून का पालन करना पाप नहीं है। ईश्वर के कानून का उल्लंघन करना पाप है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *