वन्य पशु-पक्षी अपना जीवन स्वच्छन्दता से जीते हैं। इसके बावजूद क्या वे दुःखी हैं अथवा क्या ईश्वर ने इन्हें सृष्टि-नियमन के लिए बनाया है?

इन दो प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित हैंः-
स ईश्वर ने इन्हें सृष्टि नियमन के लिए भी बनाया है, और कर्म फल देने के लिए भी बनाया है। सृष्टि की व्यवस्था, नियंत्रण, संतुलन भी चलता रहे और जीवात्माओं को उनके कर्मों का फल भी दिया जाए, ये दोनों ही कारण हैं।
स अगला प्रश्न है कि क्या वे दुःखी हैं? हाँ, वे दुःखी तो हैं ही।
स यहाँ प्रश्न उठता है- यह कैसे पता चला, कि वे दुःखी हैं? उत्तर है – सुख का कारण है-बु(ि। जिस मनुष्य की बु(ि अच्छी और अधिक होती है, वो सुखी रहता है। जिसकी बु(ि खराब और कम होती है, वो दुःखी रहता है। इसी प्रकार से बाकी प्राणियों में तो बु(ि कम है, इसलिए वे उतने सुखी नहीं हैं। उनकी बहुत सी समस्याएं हैं।
स मनुष्य को जो बु(ि उपलब्ध है, जितना पुरुषार्थ करके वह उस बु(ि का विकास कर सकता है, उतनी बु(ि दूसरे प्राणियों के पास नहीं है। वे न तो अपनी बु(ि का उतना विकास कर सकते हैं, न ही अपनी समस्याओं को सुलझा सकते हैं। उनको एक बँधे-बँधाए रूटीन में जीना होता है।
कभी कोई आक्रमण करता है, कभी कोई और आक्रमण करता है। बेचारों को हर समय जान बचाने की टेंशन होती है। इसलिए वो दुःखी तो रहते ही हैं।
स एक व्यक्ति ने मुझसे प्रश्न किया – आप कैसे कह सकते हैं, कि कुत्ता, गौ आदि पशु अधिक दुःखी हैं, और मनुष्य ज्∙यादा सुखी है। मैंने उत्तर दिया – मान लीजिए, मोहन ने राजेश से पूछा – आपको मासिक वेतन कितना मिलता है? राजेश ने कहा :- 20,000 रुपये मासिक। मोहन- मैं आपको 25,000 रुपये मासिक दूँगा, क्या आप मेरी कम्पनी में काम करेंगे? हाँ या न? राजेश ने कहाः- हाँ। फिर मोहन ने राजेश से पूछा- मैं आपको 15,000 रुपये मासिक दूँगा, क्या आप मेरी कम्पनी में काम करेंगे? हाँ या न ? राजेश ने कहा :- न। इससे क्या समझ में आया? जब व्यक्ति को लाभ दिखता है, तो वह ‘हाँ’ बोलता है। जब हानि दिखती है, तो वह ‘न’ बोलता है। इसी तरह से मैंने उस व्यक्ति को यह दृष्टान्त सुनाकर पूछा- क्या आप अगले जन्म में कुत्ता बनना चाहेंगे ? हाँ या न? वह व्यक्ति बोला-न। इससे सि( हुआ कि कुत्ता, गौ आदि बनने में दुःख अधिक है। और मनुष्य बनने में सुख अधिक है।

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