(पादरी और मौलवी से प्रश्नोत्तर रावलपिण्डी मेंनवम्बर, १८७७)
(७ नवम्बर, सन् १८७७ से २९ दिसम्बर, सन् १८७७ तक)
स्वामी जी ७ नवम्बर, सन् १८७७, बुधवार तदनुसार कार्तिक सुदि २,
संवत् १९३४ को रावलपिण्डी में पधारे और सेठ जामसन जी व्यापारी की
कोठी पर ठहरे । इसी कोठी में एक दिन स्वामी जी ने व्याख्यान के पश्चात्
कुछ विशेष व्यक्तियों से बातचीत करते हुए कहा कि हिन्दुओं की दशा पर
अत्यन्त खेद है, वे अन्य मतों की पुस्तक नहीं देखते और मेलों में जब कभी
कोई पादरी और मौलवी उन को कहता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री से
व्यभिचार किया तो झट स्वीकार कर लेते हैं । ब्रह्मा जी की बात तो किसी
विश्वसनीय ग्रन्थ में नहीं है परन्तु बाईबिल में लूत पैगम्बर का अपनी बेटियों
से व्यभिचार करने का वर्णन है । वह यदि बतलावें तो पादरी तथा मुसलमान
कदापि सामने आकर बात न कर सकें । उस समय एक पादरी तथा एक
मौलवी मिशन स्कूल के बैठे हुए थे । उन्होंने घर में आकर सम्मति की कि
यह बात स्वामी जी ने झूठ कही है, कल उन पर आक्षेप करेंगे । वे लोग
दूसरे दिन आये और आक्षेप किया, पुस्तकें साथ लाये। व्याख्यान की समाप्ति
पर जब स्वामी जी बैठे तब उन्होंने कहा कि कल जो आपने कहा था कि
लूत ने अपनी लड़कियों से व्यभिचार किया है यह बात झूठ है । स्वामी जी
ने कहा किहम को ज्ञात था कि तुम को इस बात की लज्जा आयेगी। वे
लोग पुस्तकें लेकर पास बैठ गये । स्वामी जी ने कहा कि यह तुम्हारी लड़कपन
की बात है तुमको प्रथम यह चाहिये था कि घर में दीपक जलाकर अपनी
चारपाई की दशा का ज्ञान प्राप्त कर लेते ताकि तुम को इस सभा में लज्जित
न होना पड़ता परन्तु वे न समझे । तब स्वामी जी ने कहा किअरे तुलसिया!
हमारी बाईबिल लाओ । वह लाया और स्वामी जी ने निकालकर बतलाया
(बाईबिल उत्पत्ति पर्व, आयत ३० से ३८ तक) जिस में स्पष्ट रूप से लिखा
है । फिर वे अत्यन्त लज्जित हुए परन्तु साथ ही यह कहा कि शराब के
नशे में था । लाला शिवदयाल जी ने कहा कि चाहे कुछ भी हो परन्तु उस
को यह विदित था कि मेरी स्त्री मर चुकी है और मैं चिरकाल से विना स्त्री
के हूं और ये मेरी लड़कियां हैं। पाप से किसी दशा में भी उसका छुटकारा
नहीं हो सकता । जिस पर वे लज्जित होकर चले गये और कहा कि निस्सन्देह
यह हमारा अपराध था, यदि घर में देख लेते तो आपको कष्ट न देते ।
(लेखराम पृष्ठ ३६१—३६२)