आप अपनी जीवन रक्षा के लिये कीड़े-मकोड़े आदि प्राणियों को मारते हैं। दरअसल, वह हिंसा तो है ही। उसका थोड़ा बहुत दोष भी लगेगा। यह अलग बात है कि आप खेती करते हैं, बहुत सा अनाज उत्पन्न करते हैं, उससे बहुत से प्राणियों की रक्षा करते हैं, उससे पुण्य भी मिलेगा। पर जितना-जितना प्राणियों को दुःख देते हैं, उतना-उतना हिंसा भी मानी जायेगी।