राजनीतिज्ञों की अहिंसा किस कोटि में रखनी चाहिए?

आपके घर का व्यक्तिगत सवाल हो तो ठीक है। जैसे कि एक व्यक्ति ने आपको झापड़ मार दिया, आपके साथ धोखा कर दिया, उसे आप सहन कर सकते हैं। पर समाज के लिये, देश के लिये आप इस तरह से काम नहीं कर सकते हैं। देश किसी एक व्यक्ति की जागीर नहीं है। पहले इस बात को अच्छी तरह समझना।
राजनीति के नियम अलग हैं, और आध्यात्मिक-क्षेत्र के नियम अलग हैं। अन्याय को सहन करना, ब्राह्मण के लिए गुण है। लेकिन अन्याय को सहना करना, क्षत्रिय के लिए दोष है। इसलिए दोनों के नियम अलग-अलग हैं। अन्याय को अगर क्षत्रिय (सेना( सहना शुरु कर दें तो अहिंसा की रक्षा नहीं हो सकेगी।
अगर विदेशी शत्रु हमारे देश में घुस जायें और वो कहें कि हम तो तुम्हारे देश में शासन करेंगे। और हम कहें- ‘हाँ-हाँ ठीक है, तुम कर लो मगर हम तुमसे लडेंगे नहीं, हम तुमको कुछ नहीं कहेंगे, तुम हमारे देश में शासन कर लो, हम तुम्हारे गुलाम बनके रहेंगे, तुम हमारी शिक्षा, धर्म, माँ और बहनों को भ्रष्ट करोगे तो भी हम तुमसे लड़ेंगे नहीं क्योंकि हम तो अहिंसावादी हैं, हमे तो अहिंसा का पालन करना है।’
‘राजनीति’ एक अलग चीज है, ‘आध्यात्म’ एक अलग चीज है। अंहिसा, सत्य, आदि के जो उपदेश चल रहे हैं, यह आध्यात्मिक क्षेत्र की बातें हैं। गांधी जी की जो अहिंसा है, इस तरह की अहिंसा राजनीतिक क्षेत्र में नहीं चलती है। यह जो अहिंसा की बात है, आध्यात्मिक-क्षेत्र की बात है, राजनैतिक क्षेत्र इससे अलग है। उसमें तो राजनीति के नियमों से ही चलना पड़ता है। राजनीति में तो न्याय चलता है। वहाँ पर दण्ड चलता है। राजनीति में ऐसा थोड़े चलता है। यह तो हमारा देश है, हम इसके मालिक हैं। तुम यहाँ से बाहर निकलो। कोई किसी को हाथ जोड़कर यह कहे कि- अच्छा जी, तुम चले जाओ। क्या ऐसे कोई चला जाता है? केवल हाथ जोड़ने से अंग्रेज नहीं चले गए। यह ध्यान रखने वाली बात है कि जब क्रांतिकारियों ने अपने दल बनाये और धड़ाधड़ काकोरी-कांड किये और जबरदस्त सेनायें बनाईं, आजाद हिन्द सेना बनायी और अंग्रेजों को यहां रहना फायदेमंद नहीं लगा, तब जाकर अंग्रेजों का दिमाग ठिकाने आया। देश आजाद ऐसे ही नहीं हुआ। बहुत से देशभक्तों ने अपना जीवन बलिदान किया। तब जाकर के हमारा देश स्वतंत्र हुआ। सत्य, अहिंसा की जो आध्यात्मिक चर्चा है, यह आध्यात्मिक क्षेत्र में ठीक है। राजनीति के क्षेत्र में ऐसा इस रूप में नहीं चलता। वहाँ तो न्याय चलता।
जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हो गया, और यह निर्णय हो गया, कि हिन्दु लोग इधर आ जायेंगे और मुस्लिम-लोग उधर चले जायेंगे। तो भी गांधी जी ने कह दिया, कि चलो ‘कोई बात नहीं’, इनको इधर ही रहने दो। यह ‘कोई बात नहीं’ राजनीति में नहीं चलता। वहां तो, न्याय चलता है। चलो, ‘कोई बात नहीं’, यह नियम आध्यात्मिक क्षेत्र में चलता है। राजनीति में इस नियम को लागू करने का परिणाम अच्छा नहीं होता। गाँधीजी की जो अच्छी बात है,ं वो अच्छी बात सीख लो तो कोई बात नहीं। पर जो दोष हैं, उनको छोड़ देना चाहिये। उसको नहीं अपनाना चाहिये।

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