विक्षिप्त अवस्था में थोड़ा सत्त्व गुण होता है, जिसके कारण कुछ स्थिरता होती है।
स आप सोचेंगे स्थिरता तो तमोगुण से होती है, और हमने कहा कि- विक्षिप्त अवस्था में स्थिरता सत्त्वगुण से होती है। दरअसल, तमोगुण की स्थिरता अलग प्रकार की है। तमोगुण की स्थिति में मन में विचार आता है, कि ‘घंटी बज गई, उठो भई उठने का समय हो गया है, और तमोगुण के प्रभाव से व्यक्ति कहता है- पड़े रहो, थके हुए पड़े रहो, सोते रहो, उठना ही नही, जल्दी नहीं है, रोज ही तो उठते हैं, एक दिन नहीं उठेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा।’ पड़े रहो वाली, यह जो स्थिरता है, वो तमोगुण की है।
स सत्त्वगुण के कारण से जो स्थिरता होती है, वो अलग है। उसका नाम है- एकाग्रता, यानी एक विषय में मन का टिक जाना। मन एक जगह पर ज्ञानपूर्वक टिका रहे, वो स्थिरता सत्त्वगुण की है। दोनों में यही अंतर है।
स सत्त्वगुण के कारण जब मन एक विषय में टिक गया, तो कुछ देर के बाद रजोगुण बीच में कूद पड़ा और जो टिका हुआ मन था, उसको उखाड़ दिया। वो विक्षिप्त अवस्था हो गई या तमोगुण बीच में कूद गया, तो उसके प्रभाव से आलस्य आ गया, नींद आ गई या उसके कारण कोई और गड़बड़ी खड़ी हो गई।
स जब सत्त्वगुण के कारण जो मन टिका हुआ था, वो उखड़ जायेगा, उसको हम विक्षिप्त अवस्था बोलते हैं।
स सार यह निकला कि विक्षिप्त अवस्था कभी रजोगुण के कारण, और कभी तमोगुण के कारण भी होती रहती है।