क्यों जी, कारण बनने में क्या दिक्कत है मन को। अच्छा ये बताईयेः- खीर, पुड़ी, हलवा जड़ है या चेतन? जड़ है न। तो ये चीजें आप खाते-पीते हैं, उसमें सुख लेते हैं, तो वो आपके बंधन का कारण बनती है। जब ये खीर-पुड़ी, हलवा, मिठाई आदि जड़-वस्तुएँ आपके बंधन का कारण हो सकती हैं, तो मन भी जड़ है, वो बंधन का कारण क्यों नहीं हो सकता? एक शास्त्र में तो लिखा ही है ‘मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। इस बात का अभिप्राय यह मत समझना कि जड़-वस्तु हमको अपनी स्वतंत्रता से बांध लेती है। शायद प्रश्न पूछने वाले इस भावना से पूछ रहे हैं, कि जड़-वस्तुएँ हमको कैसे बाँध लेगी? जड़-वस्तु होकर के भी हमें बाँध लेती है, पर वो हमें बाँधने में पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है। यदि हम बंधना चाहें, तो वो हमको बाँध सकती है। यदि हम नहीं बंधना चाहें तो नहीं बाँध सकती।
उदाहरण- एक व्यक्ति ठंडी के मौसम में सो रहा था। उठने का समय हो गया, और वो उठ नहीं रहा था। तो उसके घर के दूसरे व्यक्ति ने कहा- भई उठो, क्या बात है ऑफिस नहीं जाना है क्या? वो कहता है- जी मैं क्या करूँ, मैं तो उठना चाहता हूँ, पर यह रजाई मुझे नहीं छोड़ती। अब बताईये, रजाई नहीं छोड़ती या वो रजाई को नहीं छोड़ रहा। और बोलता क्या है, यह रजाई मुझे नहीं छोड़ती। ठीक इसी तरह से मन सीधा-सीधा बंधन का कारण नहीं है। न मन सीधा-सीधा मोक्ष का कारण है। बंधन और मोक्ष का कारण सीधा-सीधा तो जीवात्मा है। जीवात्मा अगर मोक्ष में जाना चाहे, तो मन उसको मोक्ष में जाने के लिए पूरा सहयोग देगा। और जीवात्मा बंधन में ही रहना चाहता है, वो मोक्ष में जाना ही नहीं चाहता, तो फिर मन उसको बंधन में डाल देगा। मन का कोई दोष नहीं है। मन एक जड़ वस्तु है, फिर भी वो इस नाम से कह दिया जाता है। जैसे यह कह दिया जाता है, कि मेरी तो इच्छा है, पर यह रजाई मुझे नहीं छोड़ रही। जैसे वो मोटी सी बात कह दी, ऐसे ही ये मोटी सी बात है। मन का संचालन आत्मा के अधीन है। आत्मा चाहेगा, तो मन से बंधन अथवा मोक्ष दोनों कर सकता है।