इसका समाधान हैः-
स यदि मनुष्य पुरुषार्थ करता है और उसका फल नहीं मिलता या कम मिलता है, तो निःसंदेह फल देने वाला दोषी है।
स यहाँ समाज ने आपको पूरा फल नहीं दिया। नहीं दिया तो कोई बात नहीं, आपका कर्म बेकार नहीं जाएगा। अगर समाज ने, राजा ने, पंचायत ने, आपको कर्म का पूरा फल नहीं दिया और आपका फल बच गया, तो अंत में आपका फल ईश्वर देगा। उस पर पूरा-पक्का विश्वास करें। आपको फल मिलेगा, फल कहीं नहीं जाएगा।
स लोग क्या सोचते हैं? हमने अच्छे काम किए, इतनी समाज की सेवा की, इतना दान दिया, इतना पुण्य किया और हमको फल तो मिला ही नहीं। अच्छे कर्म का फल नहीं मिला तो शोर मचाते हैंः- देखो साहब! हमारा कर्म बेकार गया, हमारा फल नहीं मिला।
स वे यह नहीं सोचते कि उन्होंने जो बुरे कर्म किए, उसका फल भी तो नहीं मिला। जो गड़बड़ की, जो गलती की, उसका दंड अभी नहीं मिला, तो क्या आगे भविष्य में मिलेगा या नहीं मिलेगा? उसके बारे में आप शोर नहीं करते कि दण्ड क्यों नहीं मिला अभी तक?
अगर बुरा फल मिलेगा तो अच्छा भी मिलेगा। दोनों मिलेंगे, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।
स आपको अच्छा फल चाहिए कि बुरा? अच्छा चाहिए न। इसलिए अच्छा काम करो, बुरा काम नहीं करना, नहीं तो दंड मिलेगा। बार-बार दोहराता हूँ कि – “दंड के बिना कोई सुधरने वाला नहीं है।” दंड को हमेशा याद रखें, तो ही सुधार होगा।