(पं० महीधर व पं० जीवनराम शास्त्री से शास्त्रार्थ राजकोट में
जनवरी १८७५)
महाराज के उपदेशों से लाभ उठाने अनेक लोग उनके पास आते
थे । कोई—कोई किसी विषय पर वाद—प्रतिवाद भी करते थे । एक दिन पं०
महीधर और जीवनराम शास्त्री उनके साथ मूर्तिपूजा और अद्वैतवाद पर शास्त्रार्थ
करने आये । पण्डित महीधर ने पहले मूर्तिपूजा सिद्ध करने का प्रयास किया,
परन्तु स्वामी जी ने शीघ्र ही उन्हें निरुत्तर कर दिया । फिर उन्होंने वेदान्त
पर बातचीत की । स्वामी जी ने उनसे कहा कि यदि आप ब्रह्म हैं तो अपने
शरीर के साढ़े तीन करोड़ लोमों में से एक को उखाड़ कर पुनः स्थापित
कर दीजिये । ब्रह्म सर्वज्ञ और आप अल्पज्ञ हैं, फिर आप ब्रह्म कैसे हो
सकते हैं ? इस पर पं० महीधर कुछ न कह सके और निरुत्तर हो गये ।
(देवेन्द्रनाथ १।३१७, लेखराम पृ० २५३)